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सामाजिक समरूपता सिद्धान्त

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सामाजिक अस्मिता सिद्धान्त (social identity theory) के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को एक प्रकार का आभासी बोध होता है कि वो कौन है और किस वर्ग का सदस्य है। सामान्यतया यह वर्ग परिवार, समाज, धर्म, राजनीतिक विचारधारा, देश इत्यादि होते हैं । यह बोध होने से व्यक्ति उसी वर्ग की भाँति व्यवहार भी करने लगता है। स्वाभाविक है यह उपयोगी भी है। जिससे व्यक्ति को एक पहचान मिलती है तथा आत्म-सम्मान भी। परन्तु बहुधा इससे एक दोष भी उत्पन्न हो जाता है जिसमें व्यक्ति को अपने समूह या विचारधारा के दोष भी श्रेष्ठ प्रतीत होने लगते हैं तथा अन्य व्यक्तियों की श्रेष्ठता भी दोषपूर्ण एवं तुच्छ। कई व्यक्तियों में यह आभासी प्रक्रिया एक विकृति का रूप धारण कर लेती है जो सदा अन्य व्यक्ति को नीचा दिखाने के लिए मिथ्या तथ्यान्वेषण तक में संलिप्त हो जाते हैं। इसे लोकप्रिय मनोविज्ञान में 'हम बनाम वे' के नाम में भी जाना जाता है।

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

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