सरूंड माता

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सरुंड माता मंदिर, जिसे सरुंड माता और चिलाय माता के नाम से भी जाना जाता है, भारत के राजस्थान राज्य में नीम का थाना से कोटपूतली राजमार्ग पर कोटपुतली के पास सरुंड गांव में स्थित है ।

यूं तो पूरा राजस्थान मंदिरों और लोक देवताओं के स्थानों से भरा पड़ा है, लेकिन हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की खासी भीड़ उमड़ती है। राजस्थान समेत देश के कोने-कोने से हजारों श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आते हैं। महाभारत काल का यह मंदिर ग्राम सरुंड में अरावली पहाड़ी पर स्थित है। जिसे पहुंचने के लिए 284 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर में माता की मूर्ति को पांडवों ने अपने गुप्त काल में स्थापित किया था। मंदिर में स्थापित चिलाय देवी मां की मूर्ति पांडवों और उनके राजवंश तंवर या तोमर राजपूत की कुल देवी का एक रूप है, तंवर राजपूत समाज के लोग मां सरुंड को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं।

मूर्ति एक गुफा में स्थापित है ।

किवदंती है कि 16वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर यह सुनकर ऊंटों पर शराब का जखीरा लेकर आया था पर हर बार मंदिर के आधे ऊपर जाने पर ऊंटों पर रखी शराब खाली हो जाती थी। यह देखकर मुगल बादशाह अकबर को झुकना पड़ा। इसके बाद अकबर ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। मूर्ति पहाड़ी पर एक गुफा में स्थित है। यहां तक ​​पहुंचने के लिए सात द्वारों से होकर गुजरना पड़ता है। पहले यहां एक ही द्वार हुआ करता था। जबकि शेष छह द्वार मुगलकालीन हैं। कहा जाता है कि इन द्वारों का निर्माण अकबर ने करवाया था। यह सिलसिला औरंगजेब के समय भी जारी रहा।

माता के पदचिह्न

मान्यता है कि रात के समय माता रानी सिंह पर सवार होकर स्वयं भ्रमण करती हैं। मंदिर की चढ़ाई के दौरान माता के पदचिह्न आधे आते हैं जबकि मंदिर की परिक्रमा पुजारियों के अनुसार 52 भेरूजी, 56 कलवा, 64 योगिनी, 9 नरसिंह और 5 पीर क्षेत्रपाल के रूप में स्थित है। इसके अलावा 500 साल पुरानी बावड़ी, छतरी और गुफा के बीच में हनुमान जी का ऐतिहासिक मंदिर भी स्थित है।

तीन दिवसीय मेला भरता है

नवरात्रि की सप्तमी से नवमी तक यहां तीन दिवसीय मेला भरता है। साथ ही सप्तमी की रात्रि को जागरण भी किया जाता है। इसके अलावा हर माह की शुक्ल अष्टमी को भी जागरण का आयोजन किया जाता है। मंदिर का वार्षिक उत्सव हर साल वैशाख शुक्ल षष्ठी से नवमी तक लगातार चार दिनों तक आयोजित किया जाता है।