सरगुजा के धार्मिक स्थल

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सरगुजा में स्थित प्रमुख धार्मिक स्थल -

महामाया मन्दिर[संपादित करें]

सरगुजा जिले के मुख्यालय अम्बिकापुर के पूर्वी पहाडी पर प्राचिन महामाया देवी का मंदिर स्थित है। इन्ही महामाया या अम्बिका देवी के नाम पर जिला मुख्यालय का नामकरण अम्बिकापुर हुआ। एक मान्यता के अनुसार अम्बिकापुर स्थित महामाया मन्दिर में महामाया देवी का धड स्थित है इनका सिर बिलासपुर जिले के रतनपुर के महामाया मन्दिर में है। इस मन्दिर का निर्माण महामाया रघुनाथ शरण सिहं देव ने कराया था। चैत्र व शारदीय नवरात्र में विशेष रूप अनगिनत भक्त इस मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करते है।

तकिया, सरगुजा[संपादित करें]

अम्बिकापुर नगर के उतर-पूर्व छोर पर तकिया ग्राम स्थित है इसी ग्राम में बाबा मुराद शाह, बाबा मुहम्मद शाह और उन्ही के पैर की ओर एक छोटी मजार उनके तोते की है यहां पर सभी धर्म के एवं सम्प्रदाय के लोग एक जुट होते हैं मजार पर चादर चढाते हैं और मन्नते मांगते है बाबा मुरादशाह अपने "मुराद" शाह नाम के अनुसार सबकी मुरादे पूरी करते हैं। इसी मजार के पास ही एक देवी का भी स्थान है इस प्रकार इस स्थान पर हिन्दू देवी देवता और मजार का एक ही स्थान पर होना धार्मिक एवं सामाजिक समन्वय का जीवंत उदाहरण है।

कुदरगढ[संपादित करें]

कुदरगढ सूरजपुर जिले के भैयाथान के निकट एक पहाडी के शिखर पर स्थित है। यहां पर भगवती देवी का एक प्रसिद्ध मंदिर है, इस मंदिर के निकट तालाबों और एक किले का खंडहर है कहा जाता है कि यह किला विन्ध क्षेत्र के राजा बुलन्द का है कुदरगढ मे रामनवमीं के अवसर पर भारी भीड रहती है और इस समय यहां विशाल मेला लगता है।

पारदेश्वर शिव मंदिर, सरगुजा[संपादित करें]

पारदेश्वर शिव मंदिर प्रतापपुर विकास खण्ड् से डेढ किलोमीटर दक्षिण की ओर बनखेता में मिशन स्कूल के निकट नदी किनारे स्थापित है। इस शिव मंदिर में लगभग 21 किलो शुद्ध पारे की एक मात्र अनोखी "पारद शिवलिंग" स्थापित है।

शिवपुर, सरगुजा[संपादित करें]

अम्बिकापुर से प्रतापपुर की दूरी 45 किलोमीटर है। प्रतापपुर से 04 किलोमीटर दूरी पर शिवपुर ग्राम के पास एक पहाडी की तलहटी में अत्यंत मनोरम प्राकृतिक वातावरण में एक प्राचीन शिव मंदिर है। इस पहाडी से एक जलस्त्रोत झरने के रूप में प्रवाहित होता है। यह झरना शिव लिंग पर गंगाधारा के रूप में प्रवाहित होता हुआ नीचे की ओर बहता है। इस मनोरम दृश्य को देखकर आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति होती है। इसे लोक शिवपुर तुर्रा भी कहते हैं। यह स्थान पवित्र माना जाता है एवं जन सामान्य द्वारा पूजित है। यहां पर महाशिव रात्रि पर मेला लगता है। शिवपुर तुर्रा को 1992में शासन द्वारा संरक्षित घोषित किया गया है।

बिलद्वार गुफा, सरगुजा[संपादित करें]

यह गुफा शिवपुर के निकट अम्बिकापुर से एक घण्टे की दूरी पर है| इसमें अनेक प्राचीन मूर्तियां हैं| इसमें महान नामक एक नदी का पानी निकलता रहता है, वहीं इस नदी का उद्गम भी है| इस गुफा का दूसरा छोर महामाया मंदिर के निकट निकलता है|

देवगढ, सरगुजा[संपादित करें]

अम्बिकापुर से लखंनपुर 28 किलोमीटर की दूरी पर है एवं लखंनपुर से 10 किलोमीटर की दूरी पर देवगढ स्थित है। देवगढ प्राचीन काल में ऋषि यमदग्नि की साधना स्थलि रही है। इस शिवलिंग के मध्यभाग पर शक्ति स्वरुप पार्वती जी नारी रूप में अंकित है। इस शिवलिंग को शास्त्रो में अर्द्ध नारीश्वर की उपाधि दी गई है। इसे गौरी शंकर मंदिर भी कहते है। देवगढ में रेणुका नदी के किनारे एकाद्श रुद्ध मंदिरों के भग्नावशेष बिखरे पडे है। देवगढ में गोल्फी मठ की संरचना शैव संप्रदाय से संबंधित मानी जाती है। इसके दर्शनीय स्थल, मंदिरो के भग्नावशेष, गौरी शंकर मंदिर, आयताकार भूगत शैली शिव मंदिर, गोल्फी मठ, पुरातात्विक कलात्मक मूर्तियां एवं प्राकृतिक सौंदर्य है।