सामग्री पर जाएँ

समीक्षा/पुनर्विचार याचिका

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

भारत में सर्वोच्च न्यायालय / उच्च न्यायालय के किसी भी बाध्यकारी निर्णय की समीक्षा एक समीक्षा/पुनर्विचार याचिका के द्वारा की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के किसी भी आदेश से किसी भी प्रकट गलती पर व्यथित पक्ष पुनर्विचार याचिका फ़ाइल कर सकते हैं। पूर्वनिर्णय (नजीर) के मूल सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, अदालतें आम तौर पर मजबूत मामले के बिना किसी पूर्वनिर्णय को अपरिनिर्धारित (उलट) नहीं करती हैं। समीक्षा का प्रावधान पूर्वनिर्णय/नजीर के कानूनी सिद्धांत का अपवाद है। [1] [ सत्यापित करने के लिए उद्धरण की आवश्यकता है ]

भारतीय संविधान के भाग 5 के 137वे अनुच्छेद के अनुसार अनुच्छेद 145 के तहत बनाए गए किसी भी कानून और नियम के प्रावधानों के अधीन भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पास सुनाए गए किसी भी फैसले (या आदेश) का पुनर्विलोकन/समीक्षा करने की शक्ति होगी। सुप्रीम कोर्ट नियम, 1966 के तहत ऐसी याचिका निर्णय या आदेश की तारीख से 30 दिनों के अंदर दाखिल की जानी चाहिए। यह भी सिफारिश की गई है कि याचिका को मौखिक तर्कों और बहस के बिना न्यायाधीशों की उसी पीठ को प्रसारित किया जाना चाहिए जिसने समीक्षा के लिए फैसला (या आदेश) दिया था। [2][3]

कोर्ट के लिए हर पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करना आवश्यक नहीं है।[3] न्यायालय समीक्षा याचिका तभी स्वीकार कर सकता है जब उसे निम्नलिखित पर्याप्त आधारों के हिसाब से फ़ाइल किया गया हो:

  1. नए और महत्वपूर्ण विषय या साक्ष्य की खोज, जो उचित तत्परता के बाद भी जानकारी में नहीं थी या डिक्री पारित होने या आदेश दिए जाने के समय उनके द्वारा प्रस्तुत नहीं की जा सकी थी।
  2. रिकार्ड में स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाली किसी गलती या त्रुटि के कारण
  3. कोई भी अन्य पर्याप्त कारण

और तो और, पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद भी, सुप्रीम कोर्ट अपनी प्रक्रियाओं के दुरुपयोग के निवारण के लिए और न्यायहानि का निरोग करने के लिए आरोग्यकारी याचिका पर विचार कर सकता है।[3]

जबकि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश XLVII, नियम 1(1) के अनुसार एक सिविल पुनर्विचार याचिका समावेदित की जा सकती है, एक दांडिक पुनर्विचार याचिका केवल रिकॉर्ड में स्पष्ट गलती के आधार पर ही समावेदित की जा सकती है। (स्रोत: सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 और दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973) [4][5]

प्रमुख मामले

[संपादित करें]

दहेज प्रताड़ना का मामला

[संपादित करें]

आईपीसी 498ए की समीक्षा याचिका : 23 अप्रैल 2018 को, भारतीय उच्चतम न्यायालय ने सभी तर्क सुनने के बाद और अदालत के पहले पूर्वादेश के खिलाफ फ़ाइल की गई समीक्षा याचिका पर अपने फ़ैसले को बाद में दिये जाने के लिए रिज़र्व कर दिया। इस पूर्वदेश ने आईपीसी 498ए के प्रावधान के तहत तुरंत गिरफ़्तारी को गैरकानूनी घोषित किया था। 14 सितंबर 2018 को, उच्चतम न्यायालय ने इस पूर्वादेश को रद्द किया और उपयुक्त मार्गदर्शक सिद्धांत बनाने के काम को संसद पार छोड़ दिया।

2जी स्पेक्ट्रम मामला

[संपादित करें]

2 मार्च 2012 को, भारत सरकार ने उच्चतम न्यायालय में एक समीक्षा याचिका फ़ाइल की जिसमें न्यायालय के 2 फ़रवरी 2012 के निर्णय के आंशिक पुनर्विचार की मांग रखी गई, जिसमें 122 लाइसेंस रद्द कर दिए गए थे।[6] संघ सरकार ने फ़र्स्ट-कम-फ़र्स्ट-सर्व नीति के ख़िलाफ़ निर्णय पर उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र होने पर सवाल उठाया, लेकिन संचार मंत्री ए राजा के कार्यकाल के दौरान जारी किए गए 122 लाइसेंसों को रद्द करने के निर्णय की समीक्षा का अनुरोध करने से या उसे चुनौती देने से दूर रही। [7] उसी दिन एमटीएस इंडिया में बहुसंख्यक शेयरधारक सिस्तेमा ने भी उच्चतम न्यायालय में समीक्षा याचिका फ़ाइल की।[8] उच्चतम न्यायालय ने 4 अप्रैल 2012 को कुछ सीमित आधारों पर सरकार की समीक्षा याचिका पर सुनवाई करने को स्वीकार किया और बाक़ी 10 याचिकाओं को ख़ारिज किया। कुछ समय के बाद, भारत सरकार ने समीक्षा याचिका वापस लेने के लिए आवेदन किया और इसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।[9]

नीट मामला

[संपादित करें]

18 जुलाई 2013 को, भारतीय उच्चतम न्यायालय की 3-न्यायाधीशों की पीठ ने 2:1 के बहुमत निर्णय के ज़रिये स्नातक मेडिकल/डेंटल पाठ्यक्रमों और स्नातकोत्तर मेडिकल/डेंटल पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय पात्रता व प्रवेश परीक्षा (नीट) को रद्द कर दिया था।[10] इसके कुछ समय के बाद भारत सरकार ने समीक्षा याचिका फ़ाइल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्टूबर 2013 को इस समीक्षा याचिका पर सुनवाई करने की सहमति जतायी। न्यायालय ने 11 अप्रैल 2016 को अपने 18 जुलाई के निर्णय को वापस लिया और सरकार को इस बीच स्नातक और स्नातकोत्तर चिकित्सा और दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए नीट परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी।[11] नीट की वैधता पर एक बार फिर नए सिरे से सुनवाई करने का फ़ैसला उच्चतम न्यायालय ने किया।उच्चतम न्यायालय की एक और 3-न्यायाधीशों की पीठ ने ताज़ा सुनवाई के बाद अपने 29 अप्रैल 2020 के निर्णय से नीट की वैधता को बरक़रार रखा।[12]

वोडाफोन-हचिसन टैक्स मामला

[संपादित करें]

17 फरवरी 2012 को, भारत सरकार ने भारतीय उच्चतम न्यायालय के एक पूर्वदेश की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का समावेदन किया। इस पूर्वदेश ने भारतीय आयकर विभाग के पास वोडाफ़ोन और हचिसन के बीच विदेश में हुए एक सौदे पर 11,000 करोड़ रुपये का कर लगाने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।[13][14][15] 20 मार्च 2012 को, उच्चतम न्यायालय ने एक बंद कमरे में की गई कार्यवाही के दौरान समीक्षा याचिका को यह कहते हुए ख़ारिज किया कि याचिका में कोई गुणागुण नहीं है। [16][17] 

मायावती पर आय से अधिक संपत्ति का मामला

[संपादित करें]

4 अक्टूबर 2012 को, कमलेश वर्मा नामक व्यक्ति द्वारा फ़ाईल की गई समीक्षा याचिका के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने मायावती के ख़िलाफ़ अनुपातहीन संपत्ति (आय से अधिक संपत्ति) मामले में अपने पूर्वादेश का खुले न्यायालय में समीक्षा करने का फ़ैसला किया। [18][19][20] यह मामला 2003 तक जाता है जिस साल सीबीआई ने आय के ज्ञात स्रोतों से ज़्यादा संपत्ति रखने के आरोप में मायावती के ख़िलाफ़ एक मामला दर्ज किया था। मायावती ने अपने ख़िलाफ़ हो रही इस सीबीआई जांच को ग़ैरक़ानूनी बताया।[21] इस अनुपातहीन संपत्ति के मामले को आख़िरकार 6 जुलाई 2012 को भारतीय उच्चतम न्यायालय द्वारा रद्द किया गया (जो की मुक़दमे के खुलने के 9 साल बाद था); न्यायालय ने पाया कि मामला अनधिकृत और अनपेक्षित था।[22] निर्णय के बाद, सीबीआई ने अपील फ़ाइल न करने का फ़ैसला किया।[23]

यह सभी देखें

[संपादित करें]
  1. "When review petition can be filed in high court and supreme court". मूल से 25 अप्रैल 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 नवंबर 2023.
  2. "Jurisdiction of the Supreme Court". Supreme Court of India. मूल से March 6, 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि March 3, 2012.
  3. Handbook on Practice and Procedure and Office Procedure (PDF). उच्चतम न्यायालय, भारत. 2017.
  4. सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (PDF). विधायी विभाग, भारत सरकार.
  5. दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (PDF). विधि विभाग, भारत सरकार. 1973.
  6. "Government, Raja, telcos ask Supreme Court to reconsider 2G order". The Economic Times. 2012-03-05. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0013-0389. अभिगमन तिथि 2023-11-01.
  7. "2G verdict: Auction can't be only way to allot natural assets, government says". The Times of India. 2012-03-03. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-8257. अभिगमन तिथि 2023-11-01.
  8. "2G licences cancellation: Sistema files review petition in Supreme Court - Economic Times". web.archive.org. 2012-05-22. मूल से पुरालेखित 7 जुलाई 2012. अभिगमन तिथि 2023-11-01.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)
  9. "Supreme Court accepts Centre's petition to withdraw review of 2G judgement". India Today (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-11-01.
  10. "Supreme Court quashes common medical entrance test". The Hindu (अंग्रेज़ी में). 2013-07-18. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-751X. अभिगमन तिथि 2023-11-01.
  11. "Supreme Court Recalls Its Controversial 2013 Verdict On Medical Entrance". NDTV.com. अभिगमन तिथि 2023-11-01.
  12. "NEET does not violate minority rights: Supreme Court". The Indian Express (अंग्रेज़ी में). 2020-04-29. अभिगमन तिथि 2023-11-01.
  13. "Govt seeks review of Vodafone tax verdict". Feb 18, 2012. अभिगमन तिथि March 19, 2012.
  14. "Centre seeks review of Vodafone verdict". Feb 18, 2012. अभिगमन तिथि March 19, 2012.
  15. "Govt seeks review of Vodafone tax case verdict". Feb 17, 2012. अभिगमन तिथि March 19, 2012.
  16. "Second slap: SC junks govt's Vodafone review petition". First Post. Mar 20, 2012. अभिगमन तिथि March 20, 2012.
  17. "SC dismisses govt's review petition on Vodafone tax verdict". Indian Express. Mar 20, 2012. अभिगमन तिथि March 20, 2012.
  18. "SC order on Review Petition (CRL.) No(s). 453 OF 2012". Supreme Court of India. मूल से 2 फ़रवरी 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 October 2012.
  19. "SC agrees to hear review of quashing of Mayawati DA case". DNA. 4 October 2012. अभिगमन तिथि 4 October 2012.
  20. "SC to hear review of quashing of Mayawati's assets case". Rediff.com. 4 October 2012. अभिगमन तिथि 4 October 2012.
  21. Hasan, Masoodul (21 April 2010). "CBI probe in DA case illegal: Mayawati". Hindustan Times. मूल से 22 October 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 June 2012.
  22. "Court quashes FIR in Mayawati assets case". The Hindu. Chennai, India. July 6, 2012. मूल से Jul 8, 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-08-25.
  23. "Assets case: Relief for Mayawati as CBI admits defeat". The Indian Express. 1 August 2012. अभिगमन तिथि 1 August 2012.