सदस्य वार्ता:Somaiah98/प्रयोगपृष्ठ

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माँ की बहन को मौसी कहते हैं।

        कल रात हवा में कुछ अलग सी ही बात थी। पता नहि कहा से, पता नही क्यो मेरे दिल में ये खयाल आया कि, हमारे ज़िन्दगी में कित्ने सारे लोग आते है और कित्ने सारे लोग चले भी जाते है। उनमे से कुछ लोग ऐसे भी है जो हमारे साथ हमारि पूरि ज़िन्दगि बिता देते है, हमारे खुशि और घम में भी हमारा साथ देते है। हमारि खुशि को अपनि खुशि और अपने घम को खुद के घम समझ लेते है। हमें इत्ना सार प्यार देते है कि हुमे इस दुनिया से ही प्यार हो जाति है। ऐसे लोगों को हम कई नामों से पहचानते है जैसे कि पापा, माँ, भाई, बहन, दोस्त। लेकिन अक्सर हम ये भूल जाते है कि कई बार उन लोगों से भी बढकर वो एक इन्सान अपनी पूरी ज़िन्दगी डाल देती है ताकि वो हमे प्यार दे। हमे अपना ही बच्चा समझकर हमारे लिए सब कुछ करती है। और वो "मौसी" कहलाती है।
         मौसी रिश्ते मैं तो हमारी माँ कि बहन होती है। लेकिन एक दोस्त से कम नही होती है।
         खेलना-खूदना, हसी-मज़ाक, कही न कही सब में उनका हाथ ज़रूर रेहता है। जब हमें ढाँट मिल रही हो, तो मौसि हमेशा पोहोच जाती है हमारी तरफदारी करने के लिये।
         याह तो सिर्फ कुछ चीज़े है जो मौसियाँ करती है।उनके जैसा प्यार और कोई नहि देता। एक अलग सा ही रिश्ता होता है ये रिश्ता, अपनी भाँजी या भतीजे के साथ। इसका मान रखना हमारा कर्तव्य बन जाता है।
         मैं अंत में बस ये कहना चाहूंगा कि मौसी का प्यार एक माँ के प्यार से कम नही होता और हम भी उन्हे एक माँ से कम प्यार नही देना चाहिए।