सदस्य वार्ता:Rajendraprasadvyas

पृष्ठ की सामग्री दूसरी भाषाओं में उपलब्ध नहीं है।
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

प्रिय Rajendraprasadvyas, हिन्दी विकिपीडिया पर आपका स्वागत है!

निर्वाचित सूची उम्मीदवार का सिम्बल
निर्वाचित सूची उम्मीदवार का सिम्बल

विकिपीडिया एक मुक्त ज्ञानकोष है जो विश्वभर के योगदानकर्ताओं द्वारा लिखा जा रहा है।
कुछ भी लिखने से पहले कृपया सहायता के निम्नांकित पृष्ठों को ध्यान से पढ़ें:

किसी भी वार्ता/संवाद पृष्ठ, चौपाल या अन्य कहीं भी जहां सदस्यों के मध्य वार्ता होती है, पर अपना सन्देश छोड़ने के बाद अपना हस्ताक्षर अवश्य छोड़े। इसके लिए अपने सन्देश की समाप्ति पर --~~~~ लिख दें।

हम आशा करते है कि आपको विकिपीडिया से जुड़ने में आनन्द आएगा।

हिन्दी ०१:५६, ११ मार्च २०१० (UTC) तुरियं ते धाम् जिवन मे तिन अवस्था से हम गुजरते है । इसिक अनुभव है । तो शिव महिम्न स्तोत्र मे यह कौनसि अवस्था कि बात है ! तुरिय शब्द जो है । वो ज्योतिषशस्त्र मे चौथे स्थान को तुरिय कहा है । अर्थात यहा चोथे कि बात है । तिन अवस्थाये १ निद्रा २ जाग्रत ३ यह संसार !!आश्चर्य यह है की हम सब निद्रा के धाम से यह संसार में आते रहते है !इसका सबको अनुभव है । कमाल तो देखो जब गहन निद्रामे लिन होते है तब किसीकी भी चिंता नहीं रहती आग लगे या लोटरी लगे !! कुछ फर्क नहीं बनता !! इसी लिए निद्रा भगवती देवी !! ऐसा भी देवी के स्तोत्र में है ! इसीका उपियोग डाक्टर भी कर लेते है जिससे दर्दी को शांति मिले। और गम में डूबा शराबी बनकर घूम लेता है !! यह सब आरटीफिसियल निद्रा प्राप्त करके उपाय कर लेते है ! वैसे निद्रा देवी ही है । निद्रा में से बार बार संसार में आते है । इसीलिए तो जब मर जाते है तब कहते है चिर निद्रा में चला गया !किन्तु वैसे नहीं है। निद्रा में है जो वह वो संसारी के लिए जिन्दा है । उसको निष्क्रिय होते हुए भी उसकी हाजरी तो गिन ही लेते है । कारण वो जागने वाला है !!


निद्रा जगत के अलावा एक जगत होता है वो है स्वप्न जगत !! स्वप्न में मिनीटो में कई दुनिया भी घूम लेते है । आक्स्मिक दुःख आनंद सब संसार की भाति उसमे अनुभव कर लेते है ! कमल की यह भी दुनिया है । इसी दुनिया से जब जागते है तो अच्छा स्वप्न खोने का दुःख होता है और बुरा स्वप्न टूटने से आनंद होता है । इसीसे तो बना है स्वप्न शास्र भी !! बस यह तिन अवस्था में घुमते रहते है हम और जो इसी के आलावा चौथी दुनिया है जिसको संस्कृत में तुरीय शब्द कहा है !! यह दुनिया है ऐसी बात शिव महिम्न स्तोत्र में तुरीयं ते धाम ... कह कर प्रभु की दुनिया कही है !!यहा कवि पुश्पदन्त ने यह तुरिय कह्कर प्रभु का स्थान बताया है ।