सदस्य वार्ता:R.B.Dhawan

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गौ माता और सनातन धर्म- (Dr.R.B.Dhawan)

पौराणिक मान्यता के अनुसार देशी गाय के दुग्ध, दही,घी तथा गोमूत्र व गोमय (गोबर) में अनेक गुण बताए गए हैं, केवल इतना ही नहीं, शास्त्रों में गाय समूह के एक साथ एक स्थान (गौशाला) में रहने से मनुष्य के अनेक शारीरिक व मानसिक दोष दूर हो जाते हैं। ग्रहदोष, मानसिक व्यग्रता, भूत-प्रेत (वायरस जनित रोग) गाय की गंध से ही दूर भागते हैं। गौशाला जाने अर्थात् गौ सेवा करने से मन शांत होता है। गौशाला में बैठकर मंत्र साधना करने से शीघ्र व सरलता से मंत्रसिद्धि प्राप्त होती है, परंतु याद रहे यह सब गुण देशी गाय के ही वर्णित किसे गये हैं। देशी गाय की इन्ही विशेषताओं के कारण ही इसे गौ माता माना गया है। कुछ और विशेषताएं:-

1. देशी गाय जिस जगह खड़ी रहकर सांस लेती है, वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं ।

2. सनातन ग्रंथों में देशी गाय में तैंतीस करोड़ देवी देवताओं का वास बताया गया है ।

3. जिस जगह देशी गाय प्रसन्नता पूर्वक रभांने लगे उस स्थान पर देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं ।

4. जो व्यक्ति देशी गाय की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की ग्रहदोष की विपदाओं को गौ माता हर लेती है ।

5. देशी गाय के खुर में नागदेवता का वास होता है, जहां देशी गाय विचरण करती है उस जगह सांप बिच्छू नहीं आते ।

6. पौराणिक मान्यता के अनुसार देशी गाय के गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है ।

7. देशी गाय के मूत्र में गंगाजी का वास होता है।

8. देशी गाय के गोबर से बने उपलों का रोजाना घर दूकान मंदिर परिसरों पर धूप करने से वातावरण शुद्ध होता है सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

9. देशी गाय के एक आंख में सुर्य व दूसरी आंख में चन्द्र देव का वास कहा गया है ।

10. देशी गाय को अन्नपूर्णा देवी या कामधेनु कहा गया है । यह मनुष्य की हर मनोकामना पूर्ण करने वाला जीव है ।

11. देशी गाय के दुग्ध में सुवर्ण तत्व पाया जाता है, जो रोगप्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि करता है।

12. देशी गाय की पूंछ में हनुमानजी का वास होता है । किसी व्यक्ति को बुरी नजर हो जाये तो गौ माता की पूंछ से झाड़ा लगाने से नजर उतर जाती है ।

13. देशी गाय की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है । उस कुबड़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है । रोजाना सुबह आधा घंटा गाय की कुबड़ में हाथ फेरने से जटिल रोगों का नाश होता है ।

14. देशी गाय का दूध अमृत समान ‌है।

15. देशी गाय के दूध घी मख्खन दही गोबर गोमुत्र से बना पंचगव्य हजारों रोगों की दवा है । इसके सेवन से असाध्य रोग मिट जाते हैं ।

16. देशी गाय को घर पर रखकर सेवा करने वाला सुखी आध्यात्मिक जीवन जीता है । उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती ।

17. तन मन धन से जो मनुष्य गौ सेवा करता है । वो वैतरणी गौ माता की पुछ पकड कर पार करता है। उन्हें गौ लोकधाम में वास मिलता है ।

18. देशी गाय के गोबर से शुद्ध ईंधन तैयार होता है ।

19. देशी गाय को माता की तरह सभी देवी देवता व मनुष्य आराध्य मानते हैं।


20. जिस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली में गुड़ को रखकर देशी गाय को जीभ से चटायें गौ गीय की जीभ हथेली पर रखे गुड़ को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा जग जाती है ।

21. देशी गाय के चारो चरणों के बीच से निकल कर परिक्रमा करने से मनुष्य भय मुक्त हो जाता है

22. जब देशी गाय बछड़े को जन्म देती तब पहला दूध बांझ स्त्री को पिलाने से उनका बांझपन मिट जाता है ।

23. स्वस्थ देशी गाय का मूत्र रोजाना दो तोला सात पट कपड़े में छानकर सेवन करने से सारे रोग मिट जाते हैं ।

24. देशी गाय वात्सल्य भरी निगाहों से जिसे भी देखती है उनके ऊपर गौकृपा हो जाती है ।

25. गाय इस संसार का प्राण है ।

26. काली गाय की पूजा करने से शनिग्रह शांत रहते हैं । जो ध्यानपूर्वक धर्म के साथ गौ पूजन करता है, उनको अनेक ग्रह दोषों से छुटकारा मिलता है ।

27. देशी गाय धार्मिक; आर्थिक; सांस्कृतिक व अध्यात्मिक दृष्टि से सर्वगुण संपन्न है ।

रूद्राभिषेक का महत्व[संपादित करें]

रुद्राभिषेक सनातन हिन्दू धर्म की एक सर्वमान्य ग्रह शांति विधि/अनुष्ठान (विशेष पूजा) या पद्धति है, इस अनुष्ठान में शिवलिंग पर विशेष वस्तुओं से अभिषेक (भावपूर्ण स्नान करवाना) किया जाता है। भगवान शिव के सृष्टिरूप लिंग अर्थात शिवलिंग का अभिषेक करना/शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करवाया जाता है। जैसा की वेदों में वर्णित है, शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची नाम हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है। क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात् शिव सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप कर्म ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्राभिषेक करना या शिव आराधना द्वारा उन पाप कर्मों के लिए क्षमा-प्रार्थना अथवा पश्चाताप करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी उपलब्ध है। शास्त्र और वेदों में वर्णित है की शिवलिंग का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है।

रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक कर्म (हमारे द्वारा पूर्वकाल में किये गये प्रकृति विरुद्ध कर्म) के फल जलकर भस्म हो जाते हैं, और साधक में शिवत्व (लोककल्याण की भावना) का उदय होता है, तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद साधक को प्राप्त होता है। उसके उचित मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।

रूद्रहृदयोपनिषद में उल्लेख है कि- सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: । अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं, और सभी देवता रूद्र की आत्मा ही हैं।

कब करें रुद्राभिषेक :- वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है, परन्तु त्रियोदशी तिथि, प्रदोष काल और सोमवार को रुद्राभिषेक करना परम कल्याणकारी होता है। श्रावण मास में किसी भी दिन रुद्राभिषेक किया जा सकता है। यह अद्भुत व् शीघ्र फल प्रदान करने वाला अनुष्ठान है।

अभिषेक का शाब्दिक अर्थ है– स्नान करना अथवा कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र शिवलिंग का अभिषेक अर्थात् शिवलिंग पर रुद्र मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह एक अति पवित्र तथा प्रभावशाली क्रिया है। अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार शास्त्रों में वर्णित हैं, जिनका वर्णन आगे की पंक्तियों में किया जायेगा।

रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं, और रुद्र ही शिव हैं। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे द्वारा किये गये सभी पाप कर्मों के दु:ख रूपी परिणाम को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। और हमारे आचरण को शुद्ध करते हैं।

एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जब अपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है। परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए, और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो उन्होंने हार मान कर शिवलिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए, और इस प्रकार भगवान विष्णु तथा ब्रह्माजी की जिज्ञासा शांत हुई।

एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव परिवार सहित वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे। उसी समय माता पार्वती ने मर्त्यलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगो को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासावश पूछा कि हे नाथ मर्त्यलोक में इस इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है? तथा इसका क्या फल है? भगवान शिव ने कहा– हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है, वह आशुतोष स्वरूप मेरा विविध प्रकार के द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु मेरे स्वरूप लिंग का अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी की विधि से मेरा अभिषेक करता है, उससे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ। जो व्यक्ति जिस भी उचित कामना की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करता है, वह रूद्राभिषेक के लिए उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है, अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए, यदि कोई रोग, दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के द्वारा जल से अभिषेक करना चाहिए।

रुद्राभिषेक मंत्र :- प्रभावशाली मंत्रो और शास्त्रोक्त विधि से किसी विद्वान ब्राह्मण द्वारा पूजा को संपन्न करवा लेना चाहिए। इस पूजा अनुष्ठान से जीवन में आने वाले संकटो एवं नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा मिलता है।

ॐ नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च ॥ ईशानः सर्वविद्यानामीश्व रः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोय्‌ ॥ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥ अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररुपेभ्यः ॥ वामदेवाय नमो ज्येष्ठारय नमः श्रेष्ठारय नमो रुद्राय नमः कालाय नम: कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमः बलाय नमो बलप्रमथनाथाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः ॥ सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः । भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्‌भवाय नमः ॥ नम: सायं नम: प्रातर्नमो रात्र्या नमो दिवा । भवाय च शर्वाय चाभाभ्यामकरं नम: ॥ यस्य नि:श्र्वसितं वेदा यो वेदेभ्योsखिलं जगत् । निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थ महेश्वरम् ॥ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिबर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात् ॥ सर्वो वै रुद्रास्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु । पुरुषो वै रुद्र: सन्महो नमो नम: ॥ विश्वा भूतं भुवनं चित्रं बहुधा जातं जायामानं च यत् । सर्वो ह्येष रुद्रस्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु ॥

रुद्राभिषेक का उद्देश्य :- शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से किस फल की प्राप्ति होती है, अर्थात जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक किया जाता है उसके लिए किस द्रव्य का प्रयोग करना चाहिए, इस का उल्लेख शिव पुराण में इस प्रकार किया गया है।

1. जल से रूद्राभिषेक :- हर तरह के दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें। सर्वप्रथम भगवान शिव के बाल स्वरूप का मानसिक ध्यान करें, तत्पश्चात तांबे को छोड़ अन्य किसी भी पात्र विशेषकर चांदी के पात्र में ‘शुद्ध जल’ भर कर पात्र पर कुमकुम का तिलक करें "ॐ इन्द्राय नम:।" का जाप करते हुए पात्र पर कलावा बाधें, पंचाक्षरी मंत्र "ॐ नम: शिवाय।” का जप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर जल की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते समय "ॐ तं त्रिलोकीनाथाय स्वाहा।" मंत्र का जप करें, फिर शिवलिंग को स्वच्छ वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें।

2. दूध से रूद्राभिषेक :- शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए दूध से अभिषेक करें। भगवान शिव के ‘प्रकाशमय’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें। इस अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करना चाहिए। विशेषकर तांबे के बर्तन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए। इससे ये सब मदिरा समान हो जाते हैं। तांबे के पात्र में जल या फिर बिना दुग्ध पदार्थों के किसी अन्य वस्तु का तो अभिषेक हो सकता है, परंतु तांबे के साथ दूध का संयोजन उसे विष बना देता है, इसलिए तांबे के पात्र में दुग्ध पदार्थों का अभिषेक वर्जित है।

चांदी के पात्र में ‘दूध’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें "ॐ श्री कामधेनवे नम:।" का जाप करते हुए पात्र पर कलावा बाधें, पंचाक्षरी मंत्र "ॐ नम: शिवाय" का जप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर दूध की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए "ॐ सकल लोकैक गुरुर्वै नम:।" मंत्र का जप करें, फिर शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें। और पुष्प, गंध, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पण करें।

3. फलों के रस से रूद्राभिषेक :- अखंड अर्थलाभ व हर प्रकार के कर्ज से मुक्ति के लिए भगवान शिव का फलों के रस से रूद्राभिषेक करें। भगवान शिव के ‘नील कंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ‘गन्ने का रस’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, "ॐ कुबेराय नम:।" मंत्र का जप करते हुए पात्र पर कलावा बाधें, पंचाक्षरी मंत्र "ॐ नम: शिवाय।" का जप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर फलों के रस की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए - "ॐ ह्रुं नीलकंठाय स्वाहा।" मंत्र का जप करें, फिर शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें, और शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें तथा पुष्प, गंध, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पण करें।

4. सरसों के तेल से रूद्राभिषेक :- सर्व ग्रहबाधा शांति हेतु शिवलिंग का सरसों के तेल से अभिषेक करें। भगवान शिव के ‘प्रलयंकर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, फिर ताम्बे के पात्र में ‘सरसों का तेल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें "ॐ भं भैरवाय नम:।" का जप करते हुए पात्र पर कलावा बाधें, पंचाक्षरी मंत्र "ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर सरसों के तेल की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए "ॐ नाथ नाथाय नाथाय स्वाहा।" मंत्र का जप करें, इसके पश्चात शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें।

5. चने की दाल से रूद्राभिषेक :- किसी भी शुभ कार्य के आरंभ होने व कार्य में उन्नति के लिए शिवलिंग पर भगवान शिव का चने की दाल से अभिषेक करें। भगवान शिव के ‘समाधी स्थित’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, फिर ताम्बे के पात्र में ‘चने की दाल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें "ॐ यक्षनाथाय नम:।" का जाप करते हुए पात्र पर कलावा बाधें, पंचाक्षरी मंत्र "ॐ नम: शिवाय।" का जप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर चने की दाल की धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए "ॐ शं शम्भवाय नम:।" मंत्र का जप करें, अभिषेक के उपरांत शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें।

6. काले तिल से रूद्राभिषेक :- तंत्र बाधा निवारण हेतु व बुरी नजर (नकारात्मक प्रभाव) से बचाव के लिए काले तिल से अभिषेक करें। इसके लिये सर्वप्रथम भगवान शिव के ‘नीलवर्ण’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ‘काले तिल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, "ॐ हुं कालेश्वराय नम:।" का जाप करते हुए पात्र पर कलावा बाधें, पंचाक्षरी मंत्र "ॐ नम: शिवाय।" का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर काले तिल की धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए "ॐ क्षौं ह्रौं हुं शिवाय नम:।" मंत्र का जप करें, अभिषेक के उपरांत शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें।

7. शहद मिश्रित गंगा जल से रूद्राभिषेक :- संतान प्राप्ति, वंशवृद्धि व पारिवारिक सुख-शांति हेतु शहद मिश्रित गंगा जल से अभिषेक करें। सबसे पहले भगवान शिव के ‘चंद्रमौलेश्वर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ”शहद मिश्रित गंगा जल” भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें "ॐ चन्द्रमसे नम:।" का जप करते हुए पात्र पर कलावा बाधें, पंचाक्षरी मंत्र "ॐ नम: शिवाय" का जप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर शहद मिश्रित गंगा जल की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें अभिषेक करते हुए "ॐ वं चन्द्रमौलेश्वराय स्वाहा" का जाप करें, उस के उपरांत शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें। अभिषेक के उपरांत शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें।

8. घी व शहद से रूद्राभिषेक :- जटिल रोगों के नाश व लम्बी आयु के लिए घी व शहद से अभिषेक करें। इसके लिये सर्वप्रथम भगवान शिव के ‘त्रयम्बक’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ‘घी व शहद’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें फिर "ॐ धन्वन्तरयै नम:।" मंत्र का जप करते हुए पात्र पर कलावा बाधें पंचाक्षरी मंत्र "ॐ नम: शिवाय” का जप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर घी व शहद की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए "ॐ ह्रौं जूं स: त्रयम्बकाय स्वाहा” का जप करें, बाद में शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें, तथा शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें। R.B.Dhawan (वार्ता) 14:13, 4 जुलाई 2018 (UTC)[उत्तर दें]