सदस्य वार्ता:Pradeep Kumar Arya

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Latest comment: 12 वर्ष पहले by Pradeep Kumar Arya

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

वक्त की तकदीर स्याही से लिखी नहीं जाती

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़ कर भाग लेने वाले वीर सेनानियों की जब जब याद आती है तभी उन सभी क्रान्तिकारियों व षहीदों की याद में मस्तक झुक जाता है, जो अपनी चढ़ती जवानी को अपनी मातृभूमि पर न्यौछावर कर गये।

उन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में से एक है सुभाष चन्द्र जिनका नाम बड़े ही सम्मान के साथ नेताजी कहकर लिया जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ही एक ऐसे क्रातिंकारी हैं जो अपने बाहुबल षोर्य एवं पराक्रम से अन्य देषों में जाकर आजाद हिन्द सेना की कमान संभाल कर भारत माता की गुलामी की जंजीर काटने में सफल हुए।

नेताजी त्यागी, परम उत्साही महान वीर एवं कट्टर देषभक्त हैं हर मुष्किलों का सामना करने की क्षमता नेताजी में थी। आज भी उस महापुरुष का नाम लेते ही भारत वासियों का सिर श्रद्धा से नतमस्तक हो जाता है।

वीर षिरोमणि सुभाष चन्द्र का जन्म 23 जनवरी 1897 ईÛ में बंगाल के ‘कोड़ोनिया’ नामक गांव में हुआ था। इनके पिता जी श्री जानकी नाथ जी बसु सरकारी वकील थे और सरकार ने उन्हें सम्मान में राय बहादुर की उपाधि दे रखी थी।

नेताजी बचपन से ही उन्नत तेजस्वी एवं कुषाग्र बुद्धि रहे। आप के स्वाभिमानी व्यक्तित्व की झलक विद्यार्थी जीवन में ही प्रकट हो गई थी। जब आप कलकत्ता के प्रेसीडैंसी कालेज में पढ़ते थे। उन दिनों एक ‘ओटन’ नामक अंग्रेज प्रोफैसर ने भारतीयों के लिये कई अपमानजनक बातें कह दी थी। लेकिन यह अपमान वीर सुभाष से सहन नहीं हो सका और खड़े होकर प्रोफैसर को होष में आने को कहा। लेकिन सत्ता में मदहोष प्रोफैसर ने उल्टा कुत्ता बास्टर्ड़ की गाली दी, जो कि भारतीयों का अपमान एवं उपहास थी तथा अंग्रेजों के षासन होने के घमण्ड़ का सूचक थी। यह सुनकर वीर सुभाष चन्द्र का खून खौल उठा और प्रोफैसर का गला पकड़ कर कहा ‘हम कुत्ते हैं इसलिये कि तुम्हारे गुलाम हैं। लुटेरे, गोरे बन्दर यह गाली किस मुहॅ से दी?’ और एक झन्नाटेदार थप्पड़ प्रोफैसर के मुहॅ पर दे मारा। बस यह थप्पड़ क्या था मानों अंग्रेजी सरकार को खुली चुनौती थी। 1857 की आजादी की लड़ाई के बाद अंग्रेजों के मुहॅ पर भारत का पहला तमाचा था।

पहली बार सुभाष चन्द्र बोस पर तब संकट का बादल मण्ड़राया जब अंग्रेजों ने उन्हें ‘खतरनाक हिन्दुस्तानी’ घोषित कर कलकत्ता की जेल में ड़ाल दिया और कुछ समय पष्चात अंग्रेज सरकार ने यह भी घोषित कर दिया कि सुभाष चन्द्र की मृत्यु हो गई। पर सुभाष चन्द्र बोस अंग्रेजों की जेल से वेष बदल कर निकल चुके थे। अंग्रेज सिपाही भी सुभाष की खोज में चारों तरफ निकल पड़े, सिपाही ड़ालश्ड़ाल तो सुभाष पातश्पात। कहीं पठान के वेष में, कहीं हिन्दुस्तानी के वेष में, तो कभी विदेषी अंग्रेजी बनकर सुभाष बाबू अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंकते हुए बच निकले। अंग्रेज तो तब हैरान रह गये जब वीर सुभाष ने 1939 में अपने जीवित होने की घोषणा की और सिंगापुर में जाकर एक विषाल जनसमुह को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारत को आजाद कराने के लिये दो करोड़ ड़ालर की आवष्यकता है। यह अपील सुनते ही कुछ ही क्षणों में मंच पर धन व गहनों का ढ़ेर लग गया। इस से आम जनता की भावना का संकेत मिल चुका था और सुभाष ने नारा दिया ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूॅगा।’ यह आहवान सुनकर अनेकों नौजवानों ने स्वतंत्रता की बलिवेदी पर सर्वस्व न्यौछावर करने का संकल्प लिया। इस तरह सुभाष बाबू ने नौजवानों के दिलों में आजादी के लिये क्रान्ति पैदाकर आजाद हिन्द फौज की कमान संभालते हुए संग्राम का बिगुल बजा दिया।

प्रथम आक्रमण करतेश्हुए अनेक स्थानों पर कब्जा करते हुए सेना आगे बढ़ रही थी लेकिन बीच में ही वर्षा षुरु हो गई जिससे यह लड़ाई बीच में ही रुक गई। जिसके बाद पुनः आजादी की कामना करते हुए अपनी आजाद हिन्द के सेनानियों का उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि साथियो मैं, सुख में-दुख में, दिन में-रात में, हार में-जीत में हर परिस्थितियों में आपके साथ रहॅूंगा, हमारा लक्ष्य दिल्ली है। हमारा आन्दोलन तभी षान्त होगा जब हम लालकिले की चोटी पर तिरंगा फहरायेगें।

इसके बाद आजादी की तमन्ना लिये वीर सुभाष चन्द्र बोस आगे बढ़े, लेकिन दुर्भाग्य से कुछ साथियों के गद्दारी करने से इस बार भी लक्ष्य तक नहीं पहुॅच सके। बारश्बार की असफलता प्राप्त होने पर भी नेताजी ने हिम्मत नहीं हारी, और किसी नई योजना के अनुसार आजादी की खोज में चले गये तथा अदृष्य हो गये।

इस सम्बन्ध में कोई कहता है कि 18 अगस्त 1945 को नेताजी विमान दुर्घटना में मर गये, कुछ लोगों का कहना है कि वो छिपे हुये हैं। वस्तुतः स्थिति क्या है, इस सम्बन्ध में दृढता़पूर्वक कोई नहीं कह सकता, लेकिन नीचे दिये गये तथ्यों के आधार पर यह अवष्य कहा जा सकता है कि 18 अगस्त 1945 को विमान दुर्घटना में नेता जी की मृत्यु नहीं हुई।

1 आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च अधिकारी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सन् 1999 तक राष्ट्र सघ्ंा के यु़द्ध अपराधी क्यों घोषित किये गये? यदि 1945 में मर चुके थे तो उसके बाद 1999 तक युद्ध अपराधी मानना अपने आप में षक पैदा करता है।

2 सन् 1947 के आजादी के समझोते के गुप्त दस्तावेज तथा फाईल प्ण्छण्।ण् नं. 10 पेज नं. 279 को अध्ययन करने से पता चलता है कि 18 अगस्त 1945 को विमान दुर्घटना में नेता जी की मृत्यु नहीं हुई।

3 नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की कथित मृत्यु की घोषणा के उपरान्त नेहरु जी ने सन् 1956 में षाहनवाज कमेटी तथा इन्दिरा गांधी ने 1970 में खोसला आयोग द्वारा जांच करवाई तथा दोनों रिर्पोटों में नेताजी को मृत घोषित किया गया, लेकिन 1978 में मोरारजी देसाई ने इन रिर्पोटों को रद्द कर दिया। तथा राजग सरकार ने भी मुखर्जी आयोग की स्थापना कर पुनः इस प्रष्न का उत्तर तलाषने का प्रयास किया था। लेकिन मुखर्जी आयोग द्वारा जांच रिपोर्ट को वर्तमान कांग्रेस सरकार ने मानने से ही इंकार कर दिया। इस जांच रिपोर्ट में जापान सरकार द्वारा जापान में 18 अगस्त 1945 को कोई दुर्घटना होने की बात को सिरे से खारिज करना इस सन्देह को सच्चाई में बदलता है कि नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को नहीं हुई।

4 सन् 1948 में विजय लक्ष्मी राजदूत ने रुस से वापिस आकर मुम्बई षान्ताक्रुज़ हवाई अड्ड़े से उतरते ही पत्रकारों के सामने कहा कि मैं भारत की जनता को ऐसा षुभ समाचार देना चाहती हॅॅूं जो भारत की स्वतन्त्रता से बढ़कर खुषी का समाचार होगा परन्तु नेहरु जी ने इस समाचार को जनता तथा पत्रकारों को देने से इन्कार कर दिया क्योंकि वह समाचार नेताजी से रुस में मुलाकात होने का संदेष था।

5 भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 4 अगस्त 1997 को दिये गये निर्णय के अनुसार ‘नेताजी के नाम के साथ मरणोपरान्त षब्द रद्द किया जाता है।’ क्या यह सिद्ध नहीं होता कि नेताजी की मृत्यु नहीं हुई ।

6 सेना मुख्याल्य द्वारा आयोजित 1971 की लड़ाई का विजय दिवस का सीधा प्रसारण 16 दिसम्बर 1997 को दिल्ली दूरदर्षन पर सांय 5-47 बजे से लेकर 7-00 बजे तक किया गया जिसमें बताया गया कि 8 दिसम्बर 1971 को भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी सेना की कमान एक बाबा संभाले हुये थे। दो दो सेनाओं की कमान सम्भालने वाला आखिर यह बाबा कौन था। सरकार इस बाबा का रहस्योदघाटन करे।


7 28 मई 1964 को प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु की मृत्यु पर बनी सरकारी डाक्यूमैन्टरी फिल्म के लास्ट चैप्टर की फिल्म नं. 816 बी जिसमें साधु के वेष में नेता जी दिखाई दे रहे हैं।


 नेताजी सुभाष  चन्द्र बोस      नेहरुजी की मृत्यु पर षव के पास साधु के वेष में खडे नेताजी

8 नेताजी की तथाकथित मृत्यु 18.08.1945 के बाद मंचुरिया रेड़ियो स्टेषन से 19.12.1945, 19.01.1946, 19.02.1946 को नेता जी द्वारा राष्ट्र के नाम दिये गये सन्देष क्या यह साबित नहीं करते हैं कि नेताजी की मृत्यु का समाचार गलत है।

उपरोक्त तथ्यों को देखते हुये तो हम यह ही कह सकते हैं कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जो कि रहस्यमयी तरीके से रहे, रहस्यमयी तरीके से अंग्रेजों की जेल से निकले, रहस्यमयी तरीके से लड़ाई लड़ी, और रहस्यमयी तरीके से ही अदृष्य होकर आज भी रहस्य बने हुये हैं।

लेकिन आज बड़ा अफसोस होता है प्रायः जब दूरदर्षन पर कोई कार्यक्रम होता है तो देखने को मिलता है जिन्होंने आजादी का उपयोग किया है उनको ज्यादा महत्व दिया जाता है, जिन्होंने आजादी की बलिवेदी पर अपना सर्वस्व न्यौछावर किया उनकी उपेक्षा की जाती है। यह उन षहीदों का निरादर तथा उपहास है। कवि ने ठीक ही लिखा है:-

बदतमीजी कर रहे हैं, आज भंवरे चमन में, साथियो आंधी उठाने का जमाना आगया है। वक्त की तकदीर स्याही से लिखी जाती नहीं, खून में कलम ड़ुबोने का जमाना आ गया है।

आज सुभाष चन्द्र बोस भले ही प्रत्यक्ष रुप से हमारे बीच नहीं हों लेकिन उनका अधुरा स्वपन हमारे बीच में है। अदृष्य होने से पूर्व का वह आहवान कि अखण्ड भारत बनाने के लिए लड़ा जाने वाला तृतीय विष्वयुद्ध जब चरम पर होगा तब मैं प्रकट होउंगा हमें बार बार उनके प्रकटीकरण की इन्तजार करा रहा है। हम अंग्रेजों से तो मुक्त हो गये हैं लेकिन अंग्रेजियत की जंजीरों में आज भी जकड़े हुये हैं। उनके संपूर्ण आजादी के सपने को पूर्ण करने में प्रत्येक भारतवासी को तीसरा स्वाधीनता आन्दोलन में योेगदान करना चाहिए।

प्रदीप कुमार आर्य नेताजी कालोनी,कुरुक्षेत्र। --Pradeep Kumar Arya (वार्ता) 17:04, 3 अगस्त 2011 (UTC)--Pradeep Kumar Arya (वार्ता) 17:04, 3 अगस्त 2011 (UTC)--Pradeep Kumar Arya (वार्ता) 17:04, 3 अगस्त 2011 (UTC)उत्तर दें

विकिसम्मेलन-२०११, भारत[संपादित करें]


नमस्कार Pradeep Kumar Arya,

प्रथम भारतीय विकि सम्मेलन इस वर्ष मुम्बई में १८ -२० नवम्बर २०११ के मध्य आयोजित हो रहा है।
किसी प्रकार की सूचना एवं सहायता हेतु आप हमारी अधिकारिक वेबसाईट, फेसबुक वृत्तांत और छात्रवृति प्रपत्र देख सकते है। (छात्रवृति आवेदन की अन्तिम तिथि १५ अगस्त २०११ है।)

100 day long WikiOutreach के साथ ही अब समस्त गतिविधियाँ शुरु हो रही है।

सम्मेलन में भाग लेने हेतु आमन्त्रण अब शुरु हो गये है, कृपया अपनी प्रविष्टियों को यहाँ जमा करे।(प्रविष्टियां जमा करने की अन्तिम तिथि ३० अगस्त २०११) है।

क्योंकि आप हमारे Wikimedia India community के भाग है इसलिये हम आपको इस सम्मेलन में भाग लेने एवं अपने अनुभव बाँटने हेतु आमन्त्रित करते है। आपके आपके योगदान हेतु धन्यवाद।

हमें आशा है कि आप १८-२० नबम्बर २०११ के मध्य आयोजित इस सम्मेलन में अवश्य भाग लेंगे।