सदस्य वार्ता:Mariyanus123

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                                                               महात्मा ज्योतिबा फूले एक सामाजिक कार्याकर्ता             thumb महात्मा ज्योतिबा फूले   

महात्मा ज्योतिबा फुले जी का पूरा नाम 'ज्योतिराव गोविन्दराव फूले' है। पर इन्हें 'महात्मा फुले' एवं 'ज्योतिबा फुले' के नाम से जाना जाता है। वे एक भारतीय समाजसेवक , लेखक, दार्शनिक और क्रान्तिकारी कार्यकर्ता और उन्नीसवीं सदी के भारत के महान विचारक थे। इन्होंने सितम्बर १८७३ में महाराष्ट्र में "सत्य शोधक समाज" नामक संस्था की स्थपना की।https://navbharattimes.indiatimes.com/education/gk-/-19th-century-reformer-mahatma-jyotiba-phule/articleshow/61829742.cms इन्होंने गरीब महिलाओं और दलितों के उत्थान के लिए अनेक कार्य किए। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित बंटवारे और भेदभाव के विरुद्ध थे। और उन्होंने इस प्रथा को हटाने का निश्च्य किया और लगातार इसके लिये काम करते रहे। उन्होंने ब्राह्मणों के वर्चस्व के खिलाफ लडा और किसानों और अन्य निम्न-जाति के लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। महात्मा ज्योतिबा फुले भारत में महिला शिक्षा के लिए भी अगुवे थे, और उन्होंने जीवन भर लड़कियों की शिक्षा के लिए संघर्ष किया। माना जाता है कि वे अनाथ बच्चों के लिए अनाथालय शुरू करने वाले पहले हिंदू थे।

आरंभिक जीवन:

महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म १८२७ में महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था। https://khabar.ndtv.com/news/career/mahatma-jyotiba-phule-jayanto-life-facts-1835913 एक वर्ष की अवस्था में इनकी माता का निधन हो गया। इनका लालन-पालन एक बाई ने किया। उनके पिता, गोविंदराव पूना में एक सब्जी-विक्रेता थे। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था। मालियों को ब्राह्मणों द्वारा एक नीच जाति के रूप में माना जाता था और सामाजिक रूप से दूर किया जाता था। ज्योतिराव के पिता और चाचा फूलवाले थे, इसलिए परिवार को "फुले"के नाम से जाना जाने लगा। वे माली जाती के थे ज्योतिबा जी ने कुछ समय तक मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढाई छूट जाने के कारण बाद में २१ वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढाई पूरी की। इनका विवाह तेरह साल की उम्र में १८४० में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में एक प्रसिद्ध समाजसेविका बनीं। दलित व स्‍त्रीशिक्षा के क्षेत्र में दोनों पति-पत्‍नी ने मिलकर काम किया।


सामाजिक आंदोलन:

१८४८ में, एक घटना ने ज्योतिबा के जातिगत भेदभाव के सामाजिक अन्याय के खिलाफ खोज निकाली और भारतीय समाज में एक सामाजिक क्रांति को उकसाया। ज्योतिराव को अपने एक दोस्त की शादी में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था जो एक उच्च जाति के ब्राह्मण परिवार से था। लेकिन शादी में दूल्हे के रिश्तेदारों ने ज्योतिबा का अपमान किया। ज्योतिराव ने समारोह छोड़ दिया और प्रचलित जाति-व्यवस्था और सामाजिक प्रतिबंधों को चुनौती देने का मन बना लिया। थॉमस पेन की प्रसिद्ध पुस्तक 'द राइट्स ऑफ मैन' को पढ़ने के बाद, ज्योतिराव उनके विचारों से बहुत अधिक प्रभावित हुए। उनका मानना ​​था कि सामाजिक बुराइयों का मुकाबला करने के लिए महिलाओं और निम्न जाति के लोगों का ज्ञान ही एकमात्र उपाय था।

कार्य क्षेत्र :

उन्‍होंने बालिकाओं, विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए काफी काम किया। वे साथ ही किसानों के कल्याण के लिए भी काफी प्रयास किये। उस समय समाज पितृसत्तात्मक था और महिलाओं की स्थिति बहुत अधिक घृणित थी। बच्चों के साथ कभी-कभी पुरुषों की शादी अधिक उम्र की होती थी। ये महिलाएं अक्सर युवा होने से पहले ही विधवा हो जाती थीं और उन्हें बिना किसी पारिवारिक सहायता के छोड़ दिया जाता था। ज्योतिबा को उनकी दुर्दशा देखी नहीं गयी और् उन्होंने १८५४ में समाज के क्रूर हाथों को नष्ट करने से इन दुर्भाग्यपूर्ण आत्माओं को आश्रय देने के लिए एक अनाथालय की स्थापना की। बालिकाओं और स्त्रियों की स्थिती सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा जी ने सन १८४८ में एक स्कूल खोला। उनका यह विद्यायल देश में पहला विद्यालय था। लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने पहले अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बनाया और वह भारत की प्रथम शिक्षिका बन पायी। उच्च वर्ग के लोगों ने आरंभ से ही उनके सभी कामों में बाधा डालने की कोशिश की, पर वे दोनों आगे बढ़ते ही गए। इसलिए उन्होंने उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया। इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुक गया था, पर उन्होंने हार नहीं मानी और शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोले।

उपजिविका:

एक सामाजिक कार्याकर्ता के अलावा वे एक बहुत बडे ब्यापारी भी थे।१८८२ में वे एक ब्यापारी और मुनसिपाल थेकेदार बने। उनके पास ६० एकड की खेती की जमीन पुणे के निकट माजरी में थी। कुछ समय के लिए उन्होने थेकेदार का काम किया जो सरकरी कामोम् के लिये समान भेजा करते थे। १९७६ मे पुणे मुनसिपालिटी के सदस्य के रुप मे उनका चयन हुआ और वे १९८३ तक वहां काम करते रहे।


सत्यशोधक समाज:

१८७३ में, ज्योतिबा फुले ने सत्यशोधक समाज (सत्य के साधकों का समाज) का गठन किया। ज्योतिराव ने हिंदुओं के प्राचीन पवित्र ग्रंथों, वेदों की निंदा की। उन्होंने कई अन्य प्राचीन ग्रंथों के माध्यम से ब्राह्मणवाद के इतिहास का पता लगाया और समाज में "शूद्रों" और "अतिशूद्रों" को दबाकर अपनी सामाजिक श्रेष्ठता को बनाए रखने के लिए ब्राह्मणों को शोषणकारी और अमानवीय कानूनों के लिए जिम्मेदार ठहराया। "सत्य षोधक समाज" का उद्देश्य समाज को जातिगत भेदभाव से मुक्त करना और ब्राह्मणों द्वारा प्रताड़ित निचली जाति के लोगों को मुक्त करना था। ज्योतिराव फुले ब्राह्मणों द्वारा निचली जाति और अछूत समझे जाने वाले सभी लोगों पर लागू करने वाले "दलित" शब्द को बोलने वाले पहले व्यक्ति थे। समाज की सदस्यता जाति और वर्ग की परवाह किए बिना सभी के लिए खुली थी। 1876 तक 'सत्यशोधक समाज' ने ३१६ सदस्यों का दावा किया था। १८६८ में, ज्योतिराव ने अपने घर के बाहर एक सामान्य स्नानागार का निर्माण करने का निर्णय लिया, और लोगों की जाति की परवाह किए बिना सभी के साथ भोजन भी दिया गया।


महात्मा की उपाधी :

गरीबो और असहाय वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा जी ने 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की। उनकी समाजसेवा देखकर १८८८ ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी गयी। ज्योतिबा ने विधवाओं की दयनीय स्थितियों का एहसास किया और युवा विधवाओं के लिए एक आश्रम की स्थापना की। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया, और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। उन्होंने अपने जीवन काल में कई पुस्तकें भी लिखीं जैसे; तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत आदि। महात्मा ज्योतिबा और् उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया। धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने के लिए उन्होंने अपने जीवन भर संघ्रर्ष किया।


देहांत :

महात्मा ज्योतिबा फुले "सामाजिक क्रांति के पिता" माने जाते हैं। १८८८ में ज्योतिबा जी को लकवा आघात हुआ और २८ नवंबर, १८९० को महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले का निधन हो गया।

संदर्भ :

1.https://indianexpress.com/article/who-is/who-is-jyotirao-phule-4957999/

                 2.https://khabar.ndtv.com/news/career/mahatma-phule-1954593