सदस्य वार्ता:M.INDHUMATHI/प्रयोगपृष्ठ

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विश्वनाथ नायक:

मदुरै नायक राजवंश का राजा।

विश्वनाथ नायक १६ वीं शताब्दी में दक्षिण भारत के शेहर मदुरै का राजप्रतिनिधि थे। विजय नगरा के साम्राज्य नाश होने के बाद उन्होंने अपने राज्य शुरु किया। राजा विश्वनाथ ही नायक वंश के संस्थापक थे। वह नागमा नायक के पुत्र थे और उनके पिताश्री विजयनगर में कृष्णदेवराय के एक कामयाबी शिष्य थे। पूर्व १६ वीं शताब्दी में चोला के राजा वीरशेकर चोला ने राजा पाण्डिय को हराकर मदुरै शहर को पूर्ण रूप से आक्रमण कर लिया था। ठीक उसी समय राजा पाण्डिय विजयनगर राज्य के सहायता पर सुरक्षित थे और इस समस्या के प्रति उन्होंने यानि कि राजा पाण्डिय ने विजयनगर के अदालत पर पुनर्विचार केलिए प्रर्थना की । राजा के सुरक्षा केलिए कोटिकम नागमा नायक को भेजा गया था। नागमा नायक ने चोला के राजा को आखिरकार जीत भी लिया पर अचनक उन्होंने पाण्डिय को मदद करने से इनकार कर दिया था। बाद में यह सब समस्याओं को दूर कराने केलिए महाराजा विसश्वनाथ नायक ने खुद नागमा के बेटे को चोलों के विद्रोह लड़ाने केलिए बिजवाया जिसने राज्य के खिलाफ़ जाने के कारण अपने ही पिता को दंड देने की निर्णय लिया। उनके निष्टा को सहारना देते हुए नागमा के बेटे को राज्यपाल पद सौंपा गया था। इसी तरह नायकों ने अपने राज्य को १५२९ से शुरु की। आजकल नायक समुदाय के लोग तमिलनाडु के दक्षिण ज़िलों मे रहते है। इस एतिहासिक घटना एक तेलुगू फिल्म के रुप में दसारी नारायण राव के द्वारा निर्देशित किया गया था। इस फिल्म में सुपरस्टार कृष्णा और तमिलनाडु के मशहूर अभिनेता शिवाजी गणेशन ने मुख्य पात्रों में शामिल हुए थे।

तिरुमलई नायक महल:

यह महल १७वीं सदी में राजा तिरुमलय नायक के द्वारा मदुरै में बनवाया गया था। यह नायक वंश के महल राजपुट और द्रविड़ कुल के संस्कारों को प्रकट करनेवाली उत्कृष्ट विलय हैं। आज जो महल बची हैं वहीं एक मुख्य स्ठान हैं जिस पर राजा नायक रहते थे। मूल महल वर्तमान संरचना से बहुत बड़ा और परिसर था। यह मीनाक्षी अम्मन मंदिर से दो कीमी के बाहर स्थित हैं। इस बड़े महल को नायकों ने इतालवी वस्तुकारों के सहायता के माध्यम से निर्मान किया था । राजा नायक चाहते थे कि यह महल सबसे खुबसूरत और प्रताप हो। १८ वीं शताब्दी में इस महल ज्य़ादा तरह से नाश हो गया और सिर्फ़ संलग्न अदालत को ही वहाँ की लोगों बचा सकते थे जिसको स्वर्ग विलास के नाम से पुकारते हैं। यह महल उसकी विशाल स्तंभ केलिए माना जाता हैं। इस स्मारक को दो प्रमुख भागों में बांटा जा सकता हैं जिसमें एक का नाम है स्वर्ग विलास और दूसरे जगह का नाम रंगा विलास हैं। यहाँ की आंगन और नृत्य जगह लोगों के आपस में बहुत प्रसिध्द माना जाता हैं। इस संचरन को अंडों और चूना पत्थर के हिसाब से बनाया गया हैं। भारत की स्वतंत्रता के बाद इस महल को राष्ट्रिय संपत्ति के रुप में घोषित किया गया था और अब इसे तमिलनाडु पुरात्तव विभाग सुरक्षित करते आ रहे हैं।यहाँ पर अधिक्तर लोग सिनेमा शूटिंग करते है सिर्फ़ वो विशाल स्तंभ केलिए। यह महल अच्छी तरह से सुसज्जित है प्रकाश उत्सव केलिए जिसमें सिलपदिकारम दिखाते है दोनों अंग्रेज़ और तमिल में तिरुमलय नायक यह शानदार महल के मालिक मदुरै की सात्वें शासक थे। उन्होंने १६२३ से १६५९ मदुरै को शासन किया था। नायकों ने कला और संस्कृति के प्रति बहुत कुछ अर्पित किये हैं। यह महान राजा ने ही तेप्पकुलम को भी निर्मान किया है जो आजकल लोगों को आकर्षण की चीज़ बन गया। परंपराओं का कहना यह हैं कि जब ईंटों बनाने केलिए खुदाई गई थी स्वाभाविक रुप से एक बड़े गड्ढे का गठन बन गया था। तिरुमलय नायक ने इस छोटे सी गड्ढे को एक सुंदर टैंक बनवा लिया था और केंद्र में आलसी रहने वाली जगह को मंडप बना लिया था। उन्होनें तिरुवनंदपुरम, स्रिविल्लिपुत्तुर तथा अलगर कोविल पर भी ऐसे खुबसूरत इमारतों की स्थापना कि। १९ वीं सदी में महाराजा नायकर ने इस शानदार महल को जीर्णोध्दार कि और उसके वर्तमान स्थिति केलिए ज़िम्मेदार हैं। तिरुमलय नायक महल की वस्तुक्ला इतालवी, इस्लामी, यूरोपीय तथा द्राविड़ शैली का मिश्रण हैं। तिरुमलय नायकर महल सुबह ९ बजे से शाम ५ बजे तक खुला रहता है आगंतुकों केलिए।वहाँ की प्रकाश उत्साह उनके जीवन की उपख्यानों को प्रस्तुत करता हैं। महल रात के समय में ध्वनि एवं प्रकाश का एक सिम्फनी जैसे बदल जाता हैं और हर स्तंभ एक गढ़नेवाला जैसे दिखने लगता हैं। पाण्डियों के राज्य के बाद नायकों ने १५४५ से १७४० तक शासन किया। मदुरै के इतिहास से पता चलता हैं कि वे मूल रुप से विजयनगर सम्राज्य (कर्नाटका के आधार पर) के राज्यपालों थे ।तिरुमलय नायक इस महल को एक इतवाली वस्तुकार के सहायता से इसको बनवाया था।