सदस्य वार्ता:Jethu Singh Bhati/प्रयोगपृष्ठ

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आवड़ चालीसा


दोहा


तू मनसा पूरी करे , सुनता हु दिन रात | मेरी भी पूरी करो , मनसा आवड़ मात ||


चौपाई


जय जय जय आ:वड़ सुर राई | प्रणवउँ माँ मैं शीश नवाई || भक्तो की करती रखवारी | सेवक के हित जन तनुधारी || नानणगढ़ जा खंडर कीन्हों | नूरन पापी को भख लीन्हो || दुष्ट नीच जब करत अनीति | तुरत रुधिर जा उनका पीती || कता सूत जब बिनही काते | सेवक पूजी शीश झुकाते || तब से नाम कही कतियाणी | रूप अहिधर हुई अहियाणी || चौपाई जल अपार हठ हाकड ठानी| विनय सुनी नहीं अति अज्ञानी || आवड़ सजा दई अभिमानी | सात चलु भर पी गई पानी || महिमा फैली चारों ओरा | सेवक यश गावैं मा तोरा || काले गिरी जा मात बिराजी | हुए भक्त गण अतिशय राजी || सेवक पूजी आ महमाई | जय बोली कह गिरिवर राई || डस्यो अहि पिवण जब भ्राता | लगी देर न प्राण बचाता || भाखलिये सुमरी जब आई | प्राण बचाये जा महमाई || मार् यो सावड़ बूगो जाई | धन्य धन्य आवड़ गिरिराई ||

दुष्ट हने की भक्त सहाई | सेवक लाज रखी सुरराई || नृप तणु सांगे पर बैठाई | पूजी तब सप्तामत माई || भादरिया में रह अनदता | लोग कहैं भादरिया माता || तनोतरी तू अति विख्याता | हिन्द फौज नित पुजै माता || जनता में जब-जब दुख आते | रोकर तुमको मात सुनाते || आकर मारै सब दुखदाई | इसलीये भजते सब आई || सेवक गन की तू आधारा | जनता हित घंटाली मारा || हर्षित हों पूजैं सुखदाता | कहैं तहाँ घंटाली माता || तू दुखियों की दुखी तुम्हारे | विपद पड़े तू आन सम्हारे || बीझो दनुज कियो उत्पाता | जन हित मारयो आवड़ माता || दीन दुखी के दुःख नसाये | रोतों को तू मात हँसाये || दुष्ट तेमड़ो अत्याचारी | दुःख दियो जनता को भारी || सुन दुखियों की आरत वाणी | हत्यो तेमड़ो तू सिंहाणी || हर्षित ही सबने यश गाया | जय जय जय हो तेमड़राया || भगत सरण जो तेरी आवैं| सो सुख सम्पत्ति निश्चित पावैं || बुधि बल भगती सुमति दे माता| अर्थ मोक्ष सुख दे दे दाता || सेवक भक्तों की हितकारी | कृपा दृष्टी सब चाहीं तुम्हारी || दीन दुखी की तुम रखवारी | ठहरी जो उनकी महतारी || चरणों में जो चित्त लगावैं | सो जन निश्चित मुक्ति पावै || तुमको ध्यावैं जो मन लगावैं | निश्चित वो अमरापुर जाई || धयान लगा सेवक जो ध्यावै | उनका जनम मरण मिट जावै || मन में कर पुरण विश्वासा| सुयश पढ़े हो हृदय प्रकाशा || तेरे दरशन को जो आवैं | भव बंधन उनके कट जावैं || `शक्त ` आवडा शरण तुम्हारी | लाज रखो कतियाणी हमारी || नित्य पढ़ै आवड़ चालीसा | ताको उत्रति दें भुजबिसा ||


Jethu Singh Bhati 25 जनवरी 2015 (UTC) Bhatijs95@gmail.com

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आवड़ चालीसा[संपादित करें]

. Jethu Singh Bhati (वार्ता) 15:56, 4 जून 2022 (UTC)उत्तर दें