सदस्य वार्ता:Deviram bhalavi

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चुनाव के समय महिलाओं पर अपशब्द कहने वालों को हमेशा के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगानी चाहिए। -एड. आराधना भार्गव आप लोगों को लग रहा होगा दूरदर्शन, रेडियों तथा अखबार में महिलाओं के खिलाफ अपशब्द कहना इतना बड़ा अपराध तो नही है कि उन्हें पूरे जीवन चुनाव लड़ने से वंचित किया जाये। मेरी दृष्टि में जो व्यक्ति चुनाव लड़ रहा है वह समाज का नेतृत्व कर कर है और जो नेतृत्व कर रहा है उसके चरित्र, आदर्श पर सबकी निगाहें होती है, और उनके पदचिन्हों पर देश तथा नौजवान चलता है। चुनाव के दौरान महिलाओं पर अपशब्द कहने के दो बड़े राष्ट्रीय नुकसान है जो छमा करने योग्य नही है। पहला जब महिलाओं पर अपशब्द कहे जाते है तो दूरदर्शन, अखबार तथा रेडियों पर नज़र रखने वालों की नज़र अपने परिवार की महिलाओं पर जाती है, और यहाँ से शुरू होता है, राजनीति बहुत गंदी है राजनीति में अच्छी महिलाऐं नही जाती, महिलाओं को राजनीति से दूर रहना चाहिए। महिलाओं को घर की चार दीवारी के अन्दर ही रहना शोभा देता है ऐसे शब्द हम आये दिन सुनते है तथा जो महिलायें राजनीति करती है उनको सामाज सम्मान जनक दृष्टि से नही देखता। राजनीति में जाने के बाद परिवार की इज्जत उछाली जाती है ऐसा महिलाओं का परिवार महिलाओं से कहने लगता है। इस तरह सामाज के 50 प्रतिशत भाग को विकास की मूलधारा से अलग कर दिया जाता है। लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं का प्रतिशत कम होने का मुख्य कारण महिलाओं पर अशोभनीय शब्दों का उपयोग करना है। वर्ना बताइये देश की बेटियाँ कड़ी मेहनत करके स्वेच्छा से हवाई जहाज उड़ने, लड़ाकू विमान उड़ाने, आईएस और आईपीएस बनने, इंजिनियर और डाॅक्टर बनने, वकील और जज बनने, ओलंपिक खेलों में भारत का पर्चम फहराने तथा गोल्ड मेडल लाने में अपने आप को गौरानवित महसूस करती है। राजनीति में आकर अपना हुनर दिखाने में इसलिए तो पीछे रहती है क्योकि उन्हें लगता है राजनीति में जाने पर उनका अपमान होगा जो राष्ट्र की बहुत बड़ी छति है। दूसरा चुनाव के दौरान महिलाओं को अपशब्द कहने वालों को मात्र 48 घण्टे चुनाव प्रचार करने से रोकने का आदेश मात्र दिये जाने से महिलाओं के साथ हिंसा करने वालों को यह संदेश मिलता है कि उन बड़े लोगों ने सरेआम देश और दुनिया के सामने महिलाओं को भला बुरा कहा तो उनका कुछ नही बिगड़ा तो हमारा क्या बिगड़ेगा ? आपने देखा निर्भया हत्या काण्ड के पश्चात् पूरा देश सड़कों पर निकल आया तब कही जाकर सरकार ने बलात्कार कर हत्या करने पर फांसी की सजा का प्रावधान किया। इसके पश्चात् भी बलात्कार वा हत्या के मामलों में तनिक मात्र भी कमी नही आई बल्कि अपराध और ज्यादा बढ़ गये। देश का नेतृत्व कर रहे लोगों को बहुत सोच समझकर अपने कदम उठाने चाहिए ताकि उनके बोलने से समाज को स्थाई तौर पर हानि ना हो। मेरा आशय चुनाव में महिलाओं को कुछ ना कहा जाये ये नही है सिर्फ महिलाओं के शरीर और कपड़ों को छोड़कर आप उनके कामों पर अपनी बात रखिये जो भी महिला प्रतिनिधि चुनाव में खड़ी है आपकी प्रतिरोधी है संविधान के दायरे में रहते हुए उन्होने क्या काम किया है, क्या नही किया है ? इस पर अपनी बात रखें उनकी कार्यशैली उनकी मनोदशा को चेलेन्ज जरूर करना चाहिए महिलाओं पर अपशब्द कहने वालों के खिलाफ बोलने वालों पर सामाज की कोई पाबन्दी नही जो यह दर्शाता है कि शेष जो बोल नही सके उनकी बोलने वालों के साथ मौन सहमति है। आईये हम सब मिलकर एक ऐसे सामाज का निर्माण करे जिसमें सम्मान पूर्वक महिलाऐं अपना जीवन जी सके तथा राष्ट्र के निर्माण में अपनी अहम् भूमिका निभाकर राष्ट्र की जीडीपी को बढ़ा सकें।

राजनीतिक[संपादित करें]

आज की राजनीती बूढ़ी हो चुकी है अगर जवानों को मौका मिले तो राजनीती एक नया मोड़ ले सकती है देवीराम भलावी (वार्ता) 03:40, 13 नवम्बर 2018 (UTC)[उत्तर दें]