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विषय जोड़ेंगद्दी खत्री[संपादित करें]
गद्दी खत्री हिमाचल प्रदेश के जिला चंबा भरमौर नामक स्थान में पाए जाते हैं वर्तमान में यह मुख्यता जिला कांगड़ा में भी पाए जाते हैं और इनका गौत्र भारद्वाज है इनका मुख्य पेशा भेड़ बकरियां को पालने का रहा है। यह अनुसूचित जनजाति में आते हैं। यह राजपूत कहलाते हैं। Thakurkalyan (वार्ता) 19:40, 6 अगस्त 2023 (UTC)
गद्दी राजपूत और उनके गौत्र[संपादित करें]
गद्दी राजपूत हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में पाए जाते हैं इनका मुख्य पेशा भेड़ बकरियां चराने का रहा है इनका इष्ट देव भगवान शिव शंकर है इसके अलावा यह केलंग मराली संधोला की पूजा करते हैं इनकी अपनी अपनी गौत्र के हिसाब से कुलदेविया भी है सती देवी की पूजा भी करते हैं यह हिंदू धर्म को मानते हैं ऐसी मान्यता है कि यह लाहौर व राजस्थान से आए हैं राजस्थान के राजपूतों से इनकी संस्कृति मेल खाती है लेकिन भाषाई भिन्नता देखने को मिलती है। यह अपनी ही जाति के लोगों से शादी करते हैं लेकिन अपने से उच्च ब्राह्मण या अन्य जातियों से शादी नहीं करते हैं और न ही अपनी सारीकी में शादी करते हैं। गद्दी अपनी सरीकी के अलावा अन्य सारीकी से शादी कर लेते हैं लेकिन उनके पूर्वजों की लगभग चार पीढ़ी तक दादा दादी पक्ष ब नाना नानी पक्ष की ओर से रिश्तेदारी का ध्यान रखना होता है। गद्दी राजपूत में मुख्यता बरसैन, ढरनान बढ़जाते भूनंदू खंडोलू चाडक मोगू चगैनू बढान गासनी विहाण क्वींटू डार जुआंर जरियाल साणू पखरेतिये टुटबान मलकान आदि उपजातियां पाई जाती हैं ब भारद्वाज,उत्तम, कौशल ,वशिष्ठ आदि प्रमुख गौत्र पाए जाते हैं। Thakurkalyan (वार्ता) 20:05, 6 अगस्त 2023 (UTC)
गद्दी राजपूत में मृत्यु आदि होने के बाद क्रिया कर्म[संपादित करें]
गद्दी राजपूत में जब किसी अपने की मृत्यु हो जाती है तो उनके क्रिया कर्म 10 13 किए जाते हैं इन दिनों में वे अपनी सरीकी में 13 दिन तक लहुसन प्याज हींग ब मांस शराब का सेवन नही करते हैं और 11या 13 दिन बकरे आदि की बलि देकर ही अपने को शुद्ध करते हैं ऐसी प्रथा चली आ रही है । ह्लांकि नई पीढ़ी ऐसा नहीं करना चाहती है लेकिन घर के बुजर्गों का कहना मान्य और सर्वोच्च माना जाता है। Thakurkalyan (वार्ता) 20:18, 6 अगस्त 2023 (UTC)
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