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जीवनी: मेरा नाम अपूर्वा.बि.सि हैं। हमारे पिता का नाम बि.चंद्रभूशन हैं। हमारे माता का नाम विनोदा.बि हैं। हमारा जन्म ८ ओक्तोबर २००१ को कर्नाटक के दक्शिण कन्नटक जिले के सुल्या तालुक मैं हुवा। बच्पन से ही हमैं चित्रकला मैं रुचि थि लेकिन उसे सीख नहीं पाये। परंतु इसकी अभ्यास हमेशा करते रहे। हमें आज भी चित्र बनाना अच्छा लगता है। शिक्षा: मुझे किताबे पढ़ना अच्छा लगता हैं। हमारे दसवी तक की शिक्षा सेंट जोसेफ स्कूल मैं हुवा। वहाँ से मैंने अच्छे अंक लेकर उत्तिर्ण हुई। बाद मैं मंगलूरू के शारद विद्यनिकेथन मैं अपने पी.यू.सी पूरा किया। वहाँ पर भी अच्छे अंक लेकर उत्तिर्ण हुई। नीट और चेईई परीक्षा भी अपनी माँ की दबाव पर लिख दी। नीट परीक्षा मैं अच्छा अंक भी मिली। माँ नेडॉ‍ॅक्टर बनने के लिये कहा। परंतु मेरी उसमें रुची नहीं थी तो मैंने ना केहे दी तो घरवाले इंजीनियर बनने के लिये कहा। मेरि दोनों मैं रुची न होने के कारन मैंने ना केहे दी। मेरी रुची संशोधन में थी तो मैंने बेंगलुरु के क्रास्ट यूनिवर्सिटी मैं प्रवेश किया। अब मैं इसि यूनिवर्सिटी मैं बी.एस.सी पढ़ रही हूँ।

     क्रास्ट यूनिवर्सिटी मैं मेरा जीवन  अच्छी काट रही हैं। यहाँ कितबें और पुस्तकालय ही मेरि जि़दगी बन चुकी हैं। हर दिन सबेरे आठ से नौ बजे तक पुस्तकालय में बैठकर पढ़ती हूँ। अब यही मेरी आदत बन चुकी हैं। पुस्तकालय मैं एक अलग सी खुशी मिलती हैं। जब भी समय मिलति हैं तब पुस्तकालय मैं बिताती हूँ। मेरी दोस्त मेरी मज़क उडाते हैं की हर वक्त पुस्तकालय मैं बर्बाद करती हूँ। वे लोग नहीं जानते कि पुस्तकालय मैं कितनी सुकून मिलती हैं।

रुचि:

     मुझे संगीत मैं भी रुचि हैं। इसलिये मैं वयोलिन सीखना चाहती हूँ। मुझे बडे होके काबिल बननी हैं। अपनी माता-पिता का खयाल रखना हैं। अपने पैर पर खडा होना हैं। संशोधन मैं ही आगे बढना हैं। पी.एच.डी प्राप्त करना हैं। यही मेरि आशा हैं। यह सब कुछ इतना आसान नहीं हैं। इसके लिये बेजोढ मेहेनत करनी पडेगी जो मैं जरूर करूँगी। "जहाँ चाह हैं वहाँ राह जरूर हैं"-इसी बात को मन मैं रख के आगे बढू़ंगी। 
      हमैं जानवर बहुत पसंद हैं। मेरे घर मैं दो कुत्ते, दो बिल्ली और चार गाय हैं। मुझे कुत्ते बहुत पसंद हैं क्योंकी वह ईमानदार है। हमेशा जब मैं स्कूल से घर वापस आ जाति थी,मेरा कुत्ता दौड के आकर गले पडता हैं। मेरे सात खेलने लगता हैं और हर सुबह जब मैं स्कूल के लिये निकलती हूँ तो मेरी शू अपने मूँ में चबाकर ले आता हैं। मेरा मन उसके सात खेलकर ढेहल जाता हैं।
     जब हम सातवीं कक्षा मैं पढ़ रही थी तब मेरी शिक्षक ने मुझे तारे और आसमान के बारे मैं बताया था और कहा था की सिर्फ इतना ही नहीं और भी कुछ सीखने को हैं। तब से मुझे संशोधन पर रुची पडी।