सदस्य:Yerkalwarmb/प्रयोगपृष्ठ

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
  भारत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखने से यह पता चलता है कि अंग्रेजी शासन ने जहाँ - जहाँ प्रवेश किया, वहाँ के निवासियों को अपने से अलग करने हेतु उन्हें ‘‘ट्राइब’’ की संज्ञा दी गयी हैं। उसके पूर्व यहाँ के समुदाय के लोगों को ग्रन्थों में उनके अपने नामों से ही जाना जाता था। भारत के प्राचीन ग्रंथों में इनका उल्लेख इनके अपने ही नामोंसे, यथा- भील, कोल, किरात, निषाद इत्यादि के रूप में हुआ है। आज भारत में जनजाति की जनसंख्या 10.43 करोड़ याने 8.6 प्रतिषत है। महाराष्ट्र में इनकी जनसंख्या 1.5 करोड़ याने 9.43 प्रतिशत आदिवासी है। यह जनसंख्या महाराष्ट्र में 45 जनजाति और कई उप जनजातियों में बांटी गई है। इनमें से नांदेड़ जिले में 2,81,695 जनसंख्या हैं। इन में से ग्रामीण भागों में 2,41,712 और शहरी भागों में 29,983 जनसंख्या निवास करती है। उनमें से 8.3 प्रतिशत जनजाति की जनसंख्या है। जो महाराष्ट्र के विभिन्न भागो में निवास करती है।
  आदिवासी मन्नेरवारलु यह जनजाति भारत की एक अतिप्राचीन एवं आदिम जनजाति है। मन्नेरवारलु इस जनजाति के लोग महाराष्ट्र के गोदावरी, पैनगंगा, मांजरा, मन्याड, लेंडी, पूर्णा इन नदियों के सुपीक खोरे के खाडियो में खेती करते हुए इस विभाग में पाए जाते है। मन्नेरवारलु यह जनजाति भारतीय संविधान में कानून 342 के अनुसार अधिकृत किया गया महाराष्ट्र के 45 जनजाति में से एक आदिम जनजाति है। मन्नेरवारलु यह जनजाति ज्यादा तोर पर महाराष्ट्र के मराठवाडा विभाग में और तेलंगाना, कर्नाटक के सीमा भागों में बसी हुई एक जनजाति है। तेलंगाना, कर्नाटक के सीमा भागो के पास में नांदेड, परभणी, जालना और विदर्भ के यवतमाल, चंद्रपूर, गडचिरोली एवं वर्धा इन जिलों में बसी हुई है। तेलंगाना के निजामाबाद और आदिलाबाद इन जिलों में इस जनजाति के लोग पाए जाते हैं। आदिवासी मन्नेरवारलु जनजाति का मुख्य व्यवसाय खेती है, खेती के साथ में जंगल संपत्ती के आधार पर जोड़ व्यवसाय भी किया करते है। जंगल में मिलने वाले डिंक, गोंद, मधु इकट्ठा करके शहरों में जाकर बेचते हैं। इसी के साथ तेंदूपत्ता, चारोली, मोहफुले, लकड़ियां तोड़कर भी बेचते हैं। और बांबू से कलाकुसर के वस्तुए बनाकर बेचते हैं। इसी तरह से जंगल संपत्ती के आधार पर व्यवसाय करते हुए अपनी जीविका चलाते हैं। इस विभाग में दिन प्रतिदिन जंगलों का प्रमाण कम होते जा रहा है सरकार के द्वारा जंगलों की कटाई की जाती है और एक तरफ से नक्सलियों का हस्तक्षेप और दुसरी तरफ से पुलिस वालों का दबाव बढ़ते जा रहा है, इसी तरह इन लोगों के तकलीफों को देख कर और जमींदार लोगों के द्वारा होने वाले लूटमार, वेठबिगारी इन सारी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए इस जनजाति के लोग अपनी बस्ती को छोडकर धीरे-धीरे शहरों की ओर स्थलांतरित होते जा रहे हैं, इसी प्रकार मन्नेरवारलु जनजाति के लोग महाराष्ट्र के औरंगाबाद, पुणे, मुंबई, नासिक, सोलापुर, नागपूर इन शेहरों में बसी हुई असंगठित जनजाति है।
  मन्नेरवारलु इस जनजाति का नृजातीय अध्ययन करते हुए इस जनजाति के प्राचीन इतिहास के बारे में जानना और इस जनजाति का वास्तव्य किस विभाग में है और इस जनजाति की जनसंख्या किस विभाग में बसी हुई है, यह जानना भी बहुत जरूरी है। ‘‘1981 के जनगणना के अनुसार मन्नेरवारलु इस जनजाति के लोग महाराष्ट्र में 100973 इतने थे और 1991 के जनगणना के अनुसार इस जनजाति की जनसंख्या में वृद्धि होकर 135750 इतनी हो चुकी है।’’  मन्नेरवारलु जनजाति एक पिछडी जमाती है, यह जमाती शैक्षणिक, आर्थिक, राजनीतिक तौर पर पिछडी हुई जनजाति है। इस जनजाति के शैक्षणिक, राजनीतिक, आर्थिक, स्थिति बहुत ही दुर्बल है।