सदस्य:Writer Tejprakash pandey
घायल मन कुछ तो बोला है ,
अंतरतम तक फिर डोला है l
स्वास स्वास तक घुलके देखो ,
उनकी यादो को खोला है l
काली काली पलकें प्यारी ,
कभी मिली थी जो छुप छुप के l
मीठी मीठी यादें संग ले ,
उनके स्वर में फिर बोला है ,
घायल मन कुछ तो बोला है l
भीड-भाड़ फिर चकाचौध में ,
दुनिया के इस कलकल स्वर मे l
धुधली यादे या यूं कहिये ,
अंतर वो कुछ चित्र बनाए l
सावन का वो सम्पुट पाके ,
रंगो को फिर से घोला है l
घायल मन कुछ तो बोला है l
तरको का संजाल बिछाये ,
रिश्तो को हम जो तज आये l
प्रेम मास की शीतलता में ,
रिमझिम रिमझिम सा बरसा है l
घायल मन कुछ तो बोला है l
जीत हार का खेल अनोखा ,
मन की दूरी को जो देखा l
पास पास हो दूर दिखे जब ,
विह्वल होकर फिर चहका है l
घायल मन कुछ तो बोला है l
टूट गए जो नेह के धागे ,
बधे हुए जो अनुबंधो में l
फिर ये कौन छिपा भीतर है ,
जिसको लेकर ये तड़पा है l
घायल मन कुछ तो बोला है l
कहते कहते हम जब चुप थे ,
शब्दों की मर्यादा पकड़े l
रुक रुक कर फिर सहमे स्वर मे ,
दिल से दिल तक जो धड़का है l
घायल मन कुछ तो बोला है l
चंदा की वो प्यारी किरने ,
अब तू छुप जा मेघ घने में l
धरती के कोने -कोने में ,
सावन की अमृत वर्षा ने l
चकोर दादुर पिहु तक को ,
प्यारी कोयल प्यारे दिल को l
धीमे -धीमे हरियाली में ,
प्रिया याद में किलकोला है l
घायल मन कुछ तो बोला है l
- पागल सावन कविता तेज प्रकाश पांडे