सदस्य:WAKAR AHMAD1/प्रयोगपृष्ठ

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हज़रत अली (र०)-

          हज़रत अली इस्लाम से ताल्लुक़ रखते थे.आप हमारे नबी के दामाद भी थे और इस्लाम के चौथे खलीफा भी हैं आप जब बच्चे ही थे तब हमारे नबी पर ईमान ले आये थे.आप बच्चो मैं सबसे पहले हज़रत मोहम्मद (स०अले०) पर  ईमान लेकर आये थे. आप बहुत सादिक़ थे.आप की तखलीक़ खिलक़ते सर्वारे कयेनात स. के साथ पैदाइश ए आदम वा आलम से बहोत पहले हो चुकी थी . इंसानी शक्ल वा सूरत मे आप का ज़हूर वा नुमूद 13 रजब 30 अमूल फील मुताबिक़ 600 ए. यौमे ज़ूमा बा मुक़ाम खाना-ए-क़बा हुआ. आप की वालिदा हज़रत फतेमा बीनते असद और आपके वालिद हज़रत आबुतलिब हैं, आप दोनो तरफ से हाशमी थे, मोवर्रेखीने आलम ने आप के खाना-ए-क़बा मे पैदा होने के मुताल्लिक़ कभी कोई इकतेलाफ ज़ाहिर नही किया बल्कि बिल इकतेलाफ कहते हैं की " लाम युलद क़ब-लहू वाला बा-दाहू मौलूदून फी बतिल हराम " आप से पहले ना कोई खाना -ए-क़बा मे पैदा हुआ है ना होगा. इसके बारे मे उलेमा ने तावातूर का डॉवा किया है की हज़रत फतेमा बीनते असद को जब दर्द-ए-ज़ह की तक़लीफ़ महसूस हुई तो आप बा मशवेरा-ए- रसूले करीम स. खाना-ए-क़बा के करीब गईं और उसका तवफ करने के बाद दीवार से टेक लगा कर खड़ी हो गईं और बरगाहे खुदा की तरफ मुतवज्जेह होकर अर्ज़ करने लगी, ख़ुदाया मई मोमिना हू, तुझे इब्राहिम बनी-ए-खाना-ए-क़बा और इस मौलूद का वास्ता जो मीट बटन मे है, मेरी मुश्किल दूर कर्दे. अभी दुआ के जुमले ख़त्म ना होने पाई थे की दीवार ए क़बा शक़ हो गई और जानबे फतेमा बीनते असद दाखिले क़बा हो गईं. और दीवार जैसी थी वैसी हो गई. विलादत क़बे के अंदर हुई अली (आ.स) पैदा तो हुए लेकिन उन्होने आँख नही खोली, मगर जब तीसरे रोज़ सर्वारे कैनात तशरीफ़ लाई और अपनी आगोशे मुबारक मे लिया तो हज़रत अली ने आँखे खोल दी और जमले रिसालत पर पहली नज़र डाली, सलाम करके तिलावते सोहफे आसमानी शुरू कर दी. भाई ने गले लगाया और यह कह कर " आए अली जब तुम हमारे हो तो मई भी तुम्हारा हू " फ़ौरन मे मे ज़बान दे दी. अल्लामा अरबाली लिखते हैं " ज़बने रिसालत से दाहने इममत मे बारह चश्मे जारी हो गईं " और अली (आ.स) अच्छी तरह सैयरब हो गई. इसी लिए उस दिन को " यौमुत्त्रवियः " कहते हैं, क्योकि तरविया के मानी सैयरबी के हैं।             

अल-गाराज़ हज़रत अली (आ.स) खाना-ए-क़बा से चौथे रोज़ बाहर लाई गई और इसके दर पर हज़रत अली के नाम का तख्ता नस्ब कर दिया. जो हशशां इबने अब्दुल मलिक के ज़माने तक लगा रहा. आप पाक वा पाकीज़ा, तय्यब वा ताहिर और मख़्तून पैदा हुए. आपने कभी बुत परस्ती नही की, और आपकी पेशानी कभी बर के सामने नही झुकी. इसी लिए आपके नाम के साथ " खरमाल्लहो वजुल्ला " कहा जाता है./Hazrat Ali WAKAR AHMAD1 (वार्ता) 16:11, 13 जनवरी 2018 (UTC)