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Guru Ghasidas ji ke Amritvani[संपादित करें]

.:::परमपूज्य बाबा गुरू घासीदास जी का अमृतवाणी:::

जइसन खाहू अन्न, ओइसन होही मन्न ।
जइसन पीहू पानी, ओइसन बोलिहै बानी।

इस अमृत वचन में मानव द्वारा किये जाने वाले संपूर्ण कार्य को बड़ी ही सहजता से कह दिया गया है । यह सत प्रतिशत सत्य है कि हम जिस तरह के भोजन का सेवन करते हैं उसी के अनुरूप हमारा मन, मस्तिष्क ब्यवहार करता है । जितने भी महापुरूष व रिसी मुनि हुये हैं जिन्होने... परमात्मा का आत्म ज्ञान से दर्शन किये है वह सभी शाकाहारी भोजन का ही सेवन किया करते थे । सादा भोजन करने से हमारे मन कि चंचलता कम हो जाती है जिससे हम अपने मन के उपर आसानी से काबू पा सकते है, जिन्होने अपने मन को नियंत्रित करना सीख गया समझ लो वह परमात्मा का दर्शन करने लायक अवश्य हो गया । मन को नियंत्रित किये बिना किसी भी किमत में हम आत्म ज्ञान को प्राप्त नही कर सकते, जिसके बिना हमारा मानव जनम लेना ब्यर्थ है ।

दुसरे पंक्ति में कह गया अमृत वचन "जइसन पीहू पानी, ओइसन बोलिहौ बानी" यहाँ पिने से तात्पर्य मदिरा से, गुस्सा से, अमृत वचन सुनने व ग्रहण करने से, सतसंग करने एवम भक्ति करने से है । अगर हम मदिरा पान करेगें तो अपने आपको काबू में नही रख सकते, जितने भी लोग मदिरा पान करते हैं उन्हे आपने देखा होगा वह बड़बड़ाते रहता है, उसे अपना होश हवाश नही रहता । इसलिए ऐसा किसी भी प्रकार का नशा सेवन मत करो जिससे तुम्हारा नुकशान हो और तुम्हे लोग नाम से नही बल्कि नशेड़ी के नाम से जानने लगे ।

पिना है तो गुस्सा को पियो, कहीं आपने गुस्सा को पिना सीख गये तो समझ लिजिये तुम्हारे सामने दुनियाँ कि सारी चिजें छोटी हो जाएगी । गुस्सा को वश में करने वाला ब्यक्ति कभी भी किसी का अहित नही चाहता दुसरे चाहे उसे लाख तकलीफ दे परन्तु उसके मन में दुसरे को सताने कि भावना जागृत नही होती । हमारा गलत रास्तो को अपनाने का भी मुख्य कारण गुस्सा ही है, जो छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाता है उसका परिवार तो उसका साथ नही देता बल्कि खुद का शरीर भी उसका साथ नही देता ।

गुस्सा और गम एक दुसरे के पुरक हैं, गुस्सा जिसको ज्यादा आता है उसके मन में गम भी ज्यादा रहता है क्योकि वह गुस्से के मारे अंदर ही अंदर जिस पर गुस्सा आया है उसे नुकशान पहुँचाने या बदला लेने का तरकीब सोंचते रहता है । सोंचने में वह इतना डूब जाता है कि नींद तो उनसे कोसो दुर हो जाती है जिस कारण मन में चिड़चिड़ा पन आ जाता है और वह अपने घर वालो के उपर भी गुस्सा होने लगता है । उसके शरीर के अंदर बदला लेने कि अग्नि रात िदन जलते रहता है आप स्वयं सोचिये जब अग्नि जलती है तो उसके आस-पास जो भी रहता है वह जल या मुरझा जाता है । वैसा ही बदले कि अग्नि जब हमारे शरीर के भीतर जलती है तो हमारे शरीर में समाहित अच्छी आदतें भी उस अग्नि के चपेट में आ जाती है जिस कारण हम किसी अच्छे कार्य के बारे में नही सोच सकते ।

इसलिये परमपूज्य बाबा गुरू घासीदास जी अपने संत जन को सावधान करते हुए कहते है कि, ऐसा किसी भी प्रकार के नशा सेवन व आचार-िवचार मत करो, जिससे तुम्हारा मानव जनम लेना ब्यर्थ चला जाय ।

"ऐसे संत शिरोमणी परम् पूज्य बाबा गुरू घासीदास जी को जिन्होने निर्मल ज्ञान का उपदेश दिये, हम उन्हे सत् सत नमन् करते हैं"

आइये साथियो हम इस दिसम्बर माह जिसमे परम पूज्य बाबा गुरू घासीदास जी का इस धरती पर अवतार हुआ था, के पावन महिने में नशा सेवन और मांस भक्षण जैसे बुरे कार्य को त्याग कर एक सच्चे इंसान व गुरू के भक्त होकर उन्हे अपनी सच्ची श्रद्धा सुमन अर्पित करें और मानव होने का परिचय देवें । वैसे भी सतनामी के लिये नशा सेवन और मांस भक्षण सर्वदा वर्जित है ।