सदस्य:Vidurji tiwari
श्रीनगर किले की ऐतिहासिकता:- सत्रहवीं शताब्दी में छतरपुर नरेश महाराजा छत्रसाल के दत्तक पुत्र महाराजा मोहन सिंह जू देव ने श्रीनगर दुर्ग का निर्माण कराया विंध्य पर्वत श्रंखलाओं के अंतिम छोर एवं उत्तर-प्रदेश की अंतिम सीमा पर मध्य-प्रदेश की सीमा को छूता इस विशाल किले के निर्माण के साथ राजा ने श्रीनगर बस्ती को बसाया था| उत्तर दिशा की ओर किले का मुख्य द्वार व वुर्जे आज भी अतीत की अद्भुत स्थापत्य कला की कहानी वयां करते हैं| हालाँकि किले का पश्चिमी तटबन्ध व दक्षिण में स्थित राजमहल के कुछ हिस्से ज़मीदोज हो गये हैं| लेकिन मुख्य द्वार के बाद राजा का विशालकाय राजदरबार आज भी सुरक्षित है| राजदरबार:- श्रीनगर नरेश महाराजा मोहन सिंह जू देव ने अपने राज्य के नीतिगत निर्णय एवं अपनी प्रजा का सुख-दुःख एवं समस्याएँ सुनने की लिए विशाल राजदरबार का निर्माण कराया जो अपने भौतिक स्वरुप में विशाल है|राजमहल:- किले के भीतर दक्षिण दिशा की ओर विशाल राजमहल स्थित है| इस महल में राजपरिवार के सदस्य निवास करते थे| राजमहल की भव्यता का अंदाजा उसकी बनाबट को देख कर लगाया जा सकता है| इस राजमहल के भीतर एक भारी राजप्रासाद स्थित था जो आज ध्वस्त हो चुका है और पूरा राजमहल ही देख-रेख के अभाव में गिर चुका है| बावली:- बुन्देली कला का प्रतीक श्रीनगर का विशाल किला जो राजसी ठाठ-बाट का प्रतीक था| किले के भीतर राजा ने रानियों के स्नान के लिए दो विशाल बावलियों का निर्माण कराया| इन बावलियों में दोनों ओर से सीढ़ियाँ बनाई गयीं थीं जिनके द्वारा रानियाँ बावलियों में नीचे स्नान करने जाया करतीं थीं| इन बावलियों में एक विशाल स्नानागार का निर्माण भी कराया गया था जिसमें रानियाँ कपड़े बदल सकेंराजमुद्रा:- सत्रहवीं शताब्दी में राजा मोहन सिंह जू देव ने अपनी प्रजा की खुशहाली एवम् समृद्धि के प्रतीक स्वरुप दस ग्राम के चाँदी के सिक्के का निर्माण कराया जिसे श्रीनगरी गुटउआ कहा जाता था| इसके मुख्य भाग पर त्रिशूल का प्रतीक चिहन अंकित थाटकसाल:- श्रीनगर नरेश महाराजा मोहन सिंह जू देव द्वारा किले के बाहर टकसाल की स्थापना की गई जिसमें दस ग्राम का शुद्ध चाँदी का सिक्का ढाला जाता था| इस टकसाल में सिक्कों के साथ-साथ अन्य आयुधों जैसे तोपों की भी ढलाई की जाती थी| इन तोपों को चरखारी के महाराज को भी उपहार स्वरुप दिया गया| आज भी यहाँ पर टकसाल के अवशेष हैं|मूर्तिकला उद्योग:- मूल रूप से श्रीनगर की प्रजा का व्यवसाय कृषि था| राजा ने अपनी प्रजा की उन्नति के लिए अनेक लोगों को राजस्थान में मूर्तिकला के प्रशिक्षण के लिए भेजा और लोगों ने सुरुचि पूर्वक इस कला के हुनर को सीखा जिस करण आज श्रीनगर की अष्टधातु से निर्मित मूर्तियाँ जम्मू-कश्मीर तक में स्थापित हुईं है| राजकीय संरक्षण के अभाव में श्रीनगर का मूर्तिकला उद्योग दम तोड़ रहा है और आज यह कला केवल कुछ ही परिवारों तक सीमित रह गई है| श्रीनगर में निर्मित अष्टधातु की मूर्तियों में रामदरबार, लड्डू गोपाल, राधा-कृष्ण, नृसिंह, नटराज आदि की मूर्तियाँ बहुत ही प्रसिद्ध हैं|अवस्थिति:- श्रीनगर का किला उत्तर-प्रदेश के महोबा जनपद के अंतर्गत कबरई ब्लाक में स्थित है| जिला मुख्यालय से श्रीनगर की दूरी 17 कि.मी. है| जो राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 86 पर स्थित है| श्रीनगर के दक्षिण में 5 कि.मी. की दूरी पर मध्य-प्रदेश की सीमा अवस्थित है| बस मार्ग से श्रीनगर जाना बहुत ही आसान है| परिवहन सेवा 24 घंटे उपलब्ध है| श्रीनगर जाने के लिए उत्तर-प्रदेश एवं मध्य-प्रदेश परिवहन की बसें उपलब्ध हैं| निकटतम रेलवे स्टेशन महोबा जंक्शन है| मध्य-प्रदेश के छतरपुर, खजुराहो और नवगाँव होते हुए भी श्रीनगर पहुंचा जा सकता है|
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