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प्रतिनव बाणभट्ट मोहनलाल शर्मा पाण्डेय

प्रतिनव बाणभट्ट मोहनलाल शर्मा पाण्डेय (23 सितम्बर 1934 - 29 अक्टूबर 2015 ) संस्कृत भाषा के प्रौढ साहित्यकार ,अपने समय के संस्कृत गद्य-पद्य के मूर्धन्य रचनाकार तथा पौरोहित्य कर्म विशेषज्ञ रहे हैं । आपका जन्म 23 सितम्बर 1934 को अपरा काशी तथा पिंक सिटी नाम से विख्यात जयपुर (राजस्थान,भारत) के प्रसिद्ध गलता तीर्थ के महन्तों के पुरोहित परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम श्री दुर्गालाल जोशी तथा माता का नाम सूरज देवी था।

पौरोहित्य कर्म करने वालों की परम्परा में आपके पिता एवं पितामह श्योदत्त जोशी तथा प्रपितामह गंगाबक्ष जोशी अग्रणी रहे। वंश परम्परा से पौरोहित्य / कर्मकाण्ड में पारङ्गत आपने लगभग पचास यज्ञ करवाये जिनमें दो अष्टोत्तरशत कुण्डीय यज्ञों का आचार्य होना उल्लेखनीय है।  पाण्डेय ने संस्कृत के क्षेत्र में उपन्यास, गद्यकाव्य, खण्डकाव्य आदि विधाओं में बीसियों रचनाएं की हैं। आपने पौरोहित्य-कर्म से सम्बन्धित दशाधिक ग्रन्थों की भी रचना की ।

मोहनलाल शर्मा पाण्डेय का देहावसान 82 वर्ष की आयु में 29 अक्टूबर 2015 तदनुसार कार्तिकमास के कृष्णपक्ष की द्वितीया तिथि को गुरुवार के दिन हुआ।

परिचय[संपादित करें]

पौरोहित्यकर्म प्रधान जोशी वंश में 23 सितम्बर 1934 को जयपुर,राजस्थान में जन्मे मोहनलाल ने 1946 में जयपुर की शिक्षाविभागीय प्रवेशिका  तथा वाराणसी के राजकीय संस्कृत कॉलेज से 1950 में प्रथमा परीक्षा उत्तीर्ण की। संस्कृत साहित्य में सन् 1952 में उपाध्याय परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आपने गौड़ विप्र विद्यालय में अध्यापन कार्य कराते हुए ही स्वयंपाठी छात्र के रूप में संस्कृत साहित्यमें शास्त्री परीक्षा सन् 1962 में प्राचीन राजनीतिशास्त्र विषय में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् आपने अपरा काशी के रूप विख्यात जयपुर के महाराज संस्कृत कालेज से 1964 में संस्कृत साहित्य विषय में आचार्य उपाधि प्राप्त की। कालेज में आपने पं.जगदीश शर्मा साहित्याचार्य, पं.गंगाधर द्विवेदी तथा आशुकवि हरि शास्त्री से साहित्यशास्त्र का अध्ययन किया। यहीं पर आपने विशेष रूप से व्याकरणशास्त्र का ज्ञान पं.सूर्यनारायण शास्त्री, पं.रामेश्वरप्रसाद दाधीच तथा प्रोफेसर दुर्गादत्त मैथिल के सान्निध्य में और पं.पट्टाभिराम शास्त्री जी एवं पं.नन्दकिशोर दाधिमथ से न्यायशास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया।

 आशुकवि हरि शास्त्री ने आपको काव्य रचना की प्रेरणा दी, फलस्वरूप छात्रजीवन के दौरान ही आपने काव्य रचना प्रारम्भ कर दी और प्राचीन राजनीतिशास्त्र के पाठ्यक्रम को श्लोकबद्ध कर कण्ठस्थ किया। आपकी अनेक मौलिक रचनाएं की।
  वंश परम्परागत पौरोहित्य-विद्या  संस्कार से आपने पं.ग्यारसीलाल वेदाचार्य से विधिवत् वेद का अध्ययन किया तथा श्रौत-स्मार्त यज्ञों के पारंगत विद्वान् राजब्रह्मा पं. रामकृष्ण चतुर्वेदी से कर्मकाण्ड के कार्य में दक्षता प्राप्त की। पौरोहित्य कर्म के लिए भी आपने सैंकडों श्लोकों की रचना की जो आपके ग्रन्थों में यथास्थान प्रकाशित हैं।


प्रमुख ग्रन्थ रचना,सम्पादन एवं प्रकाशन[संपादित करें]

हिन्दी, [[संस्कृत] में :-

संस्कृत में -

  • ‘पद्मिनी (उपन्यास)1999, पाण्डेय प्रकाशन, जयपुर,राजस्थान। यह ऐतिहासिक संस्कृत उपन्यास/गद्यकाव्य चित्तौड़गढ़ की राजमहिषी पद्मिनी,जो मेवाड़ के राजा रत्नसिंह (1302ई.में गद्दीनसीन)की विवाहिता रही, के चरित्र पर अम्बिकादत्त व्यास शैली में रचा गया है। इस उपन्यास पर राष्ट्रपति-सम्मानित मनीषी डॉ. रेवाप्रसाद द्विवेदी ने पढ़ने के बाद अपने पत्र में यों उद्गार प्रकट किये :- 'पद्मिनीकवीश्वराय प्रतिनवबाणभट्टाय पं. श्रीमोहनलालशर्मणे पाण्डेयाय प्रणति:। भवतामुत्तमोत्तमा गद्यकृति: 'पद्मिनी' जनेनाद्य यत्र तत्रान्वशीलि प्रापि च प्रसत्त्यतिशीति:।'
 विद्वान् डॉ हरिराम आचार्य (राष्ट्रपति-सम्मानित) ने इस उपन्यास की शैली को नवीन मारवणी शैली कहा है :- ' ---- न प्राचीना काव्यशास्त्रोक्ता अपितु नवीना प्रसादगुणभूषिता मरुधरोत्था 'मारवणी' शैलीति कथयितुं शक्यते।'
  • ‘पत्रदूतम् ( ऐतिहासिक खण्डकाव्य)1999, विश्वप्रसिद्ध ईराक के खाड़ी युद्ध की घटना पर आधारित। अमेरीकी सेनाध्यक्ष द्वारा अपनी पत्नी को लिखे पत्र में युद्ध का विवरण। इस काव्य में आज की युद्ध प्रणाली तथा शस्त्रास्त्र टैंक,राडार,बम, बुलडोजर आदि शब्दों के लिए संस्कृत भाषिक नवीन शब्दों की संरचना की गई है।
  • ‘नतितति(चित्र खण्डकाव्य)2007, वर्णैक प्रधान मुक्तक चित्रकाव्य। स्तोत्र-साहित्य में नतिपरक भाव प्रधान मुक्तक, इसका प्रत्येक पद्य नागरी वर्णमाला के एक एक वर्ण को नायक बनाकर लिखा गया है, उस पद्य का प्रत्येक शब्द उस वर्ण से ही प्रारम्भ होता है, इस प्रकार एक पद्य एक ही अक्षर में पूरा गुम्फित होने से 'एकाक्षरचित्रम्' भी कहा जाता है। इस दृष्टि से इस कृति का प्रत्येक श्लोक अपने आप में एक लघुकाव्य है। यह काव्य इस दृष्टि से चित्रकाव्य भी है, स्तोत्रकाव्य भी है और मुक्तककाव्य भी। विभिन्न आराध्यों के प्रति प्रणति समर्पित करने से इसका 'नतितति' नाम सार्थक है।
  • ‘संस्कृतकाव्यकौमुदी (खण्डकाव्य) 2010, विषयगत छ: खण्डों में विभाजित इस खण्डकाव्य में प्रणतिततय:, प्रशस्तिका, समस्यासौहित्यम्, राष्ट्रियम् ,वैदुषीवैभवम्, लोकनायका: शीर्षक के अन्तर्गत अनेक उपशीर्षकों में लगभग 500 पद्यों को समाहित किया गया है।
  • 'समस्यासौहित्यम् (खण्डकाव्य) 2012, इस खण्डकाव्य में काव्यकार ने स्वोपज्ञ समस्या-पूर्ति का निर्धारण करते हुए लगभग 500 श्लोकों की रचना कर अनेक शीर्षक एवं उपशीर्षकों में ग्रथित किया है। रचनाकार ने उदार दृष्टिकोण से ओंकार जैसे दार्शनिक सन्दर्भों को लेते हुए देव, गण, देवयोनि, लोकदेवता, लोकतन्त्र, नारीचेतना और विज्ञान प्रौद्योगिकी तक के आधुनिक विषयों का समावेश इस काव्य में किया है।

अनूदित ग्रन्थ -

  • 'रसकपूरम् (उपन्यास) 1993, अनूदित ऐतिहासिक संस्कृत उपन्यास/गद्यकाव्य । इस उपन्यास की नायिका 'रसकपूर' के नाम विख्यात नृत्यांगना है, जिसने जयपुर के महाराजा जगत् सिंह की प्रेयसी बन रानियों में प्रमुख स्थान प्राप्त किया और इतिहास प्रसिद्ध नूरजहां के समान ही शासन की बागडोर संभाली। अंग्रेजी, गुजराती आदि आठ भाषाओं में अनूदित एवं मूलरूप में हिन्दी भाषा में लिखित इस उपन्यास के लेखक संस्कृतमनीषी आचार्य उमेश शास्त्री ने संस्कृत अनुवाद के सन्दर्भ में भूमिका लिखते हुए लिखा है :- 'रसकपूर के अनुवाद में मौलिकता है। ऐसा अनुवाद देखने में नहीं आया है। संस्कृत साहित्य के गद्य क्षेत्र की अनूदित कृतियों में सहज रूप से शीर्ष स्थान को प्राप्त करना ही इस शैली की विशेषता और अनुवादक की मौलिकता कही जायेगी।
  • 'रामचरिताब्धिरत्नम् (महाचित्रकाव्य)2003, व्याकरण की प्रौढ शैली में, भट्टिकाव्य के सदृश चौदह सर्गों में रचित इस महाचित्रकाव्य का पाण्डेय द्वारा हिन्दी अनुवाद /व्याख्या 'रत्नप्रभा' नाम से किया गया है। जोधपुर के रहने वाले आशुकवि पं.नित्यानन्द शास्त्री द्वारा रचित इस महाकाव्य के श्लोकों के प्रत्येक चरण के आदि में वाल्मीकीय मूल रामायण के एक एक अक्षर को संयोजित किया गया है , जिसके पुन:संयोजन से यह मूल रामायण का स्वरूप प्राप्त कर लेता है। इस महाकाव्य में व्याकरण शास्त्र के दुरूह प्रयोग तथा उनकी उपमाएं देने के साथ ही अन्यान्य शब्दों का गुम्फन, जिनका अवगम प्रचलित अप्रचलित कोशों की सहायता से ही सम्भव है। राष्ट्रपति-सम्मानित विद्वान् देवर्षि कलानाथ शास्त्री ने महाकाव्य की भूमिका में लिखा है :- '----- इस काव्य के व्याख्या कार्य को जिस श्रम,लगन और वैदुष्य के साथ जयपुर के जाने माने कवि,विद्वान् राष्ट्रपति-सम्मान प्राप्त पं. मोहनलाल शर्मा पाण्डेय ने किया है, --- जिस स्पष्टता और विशदता के साथ हिन्दी व्याख्या कर इसे संस्कृज्ञेतर पाठकों के लिए सुग्राह्य बनाया है, साथ ही उसकी विशेषताओं का विवरण भी दिया है उसके लिए वे संस्कृतजगत् की श्लाघा और कृतज्ञता के सर्वात्मना पात्र बन गये हैं।

सम्पादित ग्रन्थ -

  • स्वातन्त्र्यसहयोगिन: , 1998( स्वतन्त्रता आन्दोलन में संस्कृतज्ञों, संस्केकृतानुरागियों के योगदान एवं उनसे सन्दर्भित साहित्य से सम्बद्ध) प्रकाशक- राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर।
  • राजस्थानगौरवम् , 2001( राजस्थान के संस्कृत विद्वानों का योगदान) प्रकाशक- राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर।

धार्मिक तथा पूजा ग्रन्थ प्रणयन -

  • चतुर्वेदोक्तग्रहशान्ति-पद्धति:, 2013 (ऋक्,यजु:,साम,अथर्व चारों वेदों के मन्त्रों के साथ स्वरचित पद्यों सहित।)
  • विशिष्टव्रतोद्यापनविधि:, 2014 (मन्त्रों के साथ स्वरचित पद्यों सहित।) विभिन्न देवताओं के पूजा-विधान के सम्बन्ध में प्रणीत इन ग्रन्थों में वेद मन्त्रों के साथ साथ पाण्डेय ने स्वरचित पद्यों का संयोजन किया है :-
  • श्रीहनुमत्पूजा-पद्धति:, 2007
  • श्रीरामपूजा-पद्धति:, 2007
  • श्रीगणेशपूजा-पद्धति:, 2007
  • श्रीकृष्णपूजा-पद्धति:, 2008
  • श्रीशिवपूजा-पद्धति:, 2009
  • श्रीदुर्गापूजा-पद्धति:, 2010
  • श्रीसप्तर्षिपूजा-पद्धति:, 2011
  • श्रीभैरवपूजा-पद्धति:, 2012

प्रमुख सम्मान-पुरस्कार एवं मानद उपाधि[संपादित करें]

यद्यपि स्थानाभाव की सीमाओं से इन्हें मिले अनेकानेक सम्मानों और अलंकरणों की पूरी सूची दी जानी सम्भव नहीं है, परन्तु इन्हें प्राप्त कुछ उल्लेखनीय उपाधियाँ व सम्मान निम्नलिखित हैं-<ref>

  • 'राष्ट्रपतिसम्मान-पत्र, सन् 2000' महामहिम राष्ट्रपति, भारत द्वारा संस्कृत वैदुष्य के लिए अलंकृत एवं पुरस्कृत।
  • 'श्रीवाणी अलंकरण, सन् 2009' रामकृष्ण जयदयाल डालमिया श्री वाणी अलंकरण न्यास, नई दिल्ली द्वारा 'पद्मिनी' उपन्यास पर लोकसभाध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार के करकमलों से।
  • 'वाचस्पति पुरस्कार,सन् 2002' के. के.बिडला फाउण्डेशन, नई दिल्ली द्वारा 'पद्मिनी' उपन्यास पर।
  • 'अखिल भारतीय पुरस्कार, सन् 2000' राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर द्वारा 'पद्मिनी' उपन्यास पर।
  • 'संस्कृत साधना शिखर सम्मान ( Life Time achievement award),सन् 2013' राजस्थान सरकार का संस्कृत-क्षेत्र में राज्यस्तरीय सर्वोच्च सम्मान संस्कृत दिवस पर ।
  • 'माघ-पुरस्कार, वर्ष 1992-93' राजस्थान संस्कृत अकादमी,जयपुर द्वारा 'पत्रदूतम्' खण्डकाव्य पर।
  • 'राज्यस्तरीय विद्वत्सम्मान एवं पुरस्कार,सन् 1995' राजस्थान सरकार द्वारा संस्कृत क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान पर।)
  • 'हारीत ऋषि सम्मान, वर्ष 2000-01' महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन, उदयपुर (राज.)द्वारा।
  • 'भट्ट मथुरानाथ शास्त्री साहित्य सम्मान, वर्ष 2004-05' राजस्थान संस्कृत अकादमी,जयपुर द्वारा विशिष्ट वैदुष्य के लिए।
  • 'विद्यासागर' उपाधि, सन् 2006'
ज्योतिर्मठ-बद्रिकाश्रम एवं शारदा पीठ, द्वारका के जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वरूपानन्द सरस्वती द्वारा जयपुर में चातुर्मास के अवसर पर। 
  • 'शिक्षक-शिरोमणि:, सन् 2012' जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय,जयपुर( राज.) द्वारा संस्कृत अध्यापन के क्षेत्र में शिक्षक दिवस पर।
  • 'प्रथम पुरस्कार,अखिल भारतीय समस्यापूर्ति स्पर्धा, सन् 2001' राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन के अवसर पर राजस्थान संस्कृत साहित्य सम्मेलन, जयपुर द्वारा।
  • 'शास्त्र महोदधि', उपाधि, सन् 1995' महामहोपाध्याय पं. श्री गिरिधर चतुर्वेदी की स्मृति में श्री वैदिक संस्कृति प्रचारक संघ, जयपुर द्वारा।

इनके अतिरिक्त अनेक विभिन्न संस्थाओं से सम्मानित किया गया, जिनमें से कुछ ये हैं :- योग्यता पारितोषिक,संस्कृत शिक्षा विभाग,राजस्थान सरकार(1998-99 तथा 2009), महर्षि पुरस्कार, व्यास बालाबक्ष शोध संस्थान,जयपुर(2007), राजगंगा चैरिटेबल ट्रस्ट,जयपुर(2004-05), जगद्गुरु रामानन्दाचार्य सप्त शताब्दी समारोह समिति,जयपुर(2000) आदि से प्राप्त सम्मान।

परिवारिक जीवन[संपादित करें]

मोहनलाल पाण्डेय का विवाह कम उम्र में ही जयपुर के जौहरी बाजार निवासी, सिताबी गोत्रीय रूपनारायण शर्मा की ज्येष्ठ पुत्री मुन्नी देवी से हुआ। विवाह के समय पण्डित जी की मन्त्रोच्चारण में शिथिलता देख आपने स्वयं की कर्मकाण्ड में प्रवीणता होने से अपना विवाह संस्कार स्वयं ही करवा दिया। विवाह के बाद भी आपने अध्ययन जारी रखा। आपको सर्वप्रथम आश्विन नवरात्र की षष्ठी को कन्यारत्न सरोजबाला की और लगभग तीन वर्ष पश्चात् ऋषिपंचमी के दिन 17 सितम्बर 1958 अपराह्ण में पुत्र की प्राप्ति हुई। इस समय परिवार का पुरुषवर्ग गलता तीर्थ के यज्ञकुण्ड नामक स्नानकुण्ड में ऋषितर्पण कर्म में व्यस्त था। पुत्र प्राप्ति का समाचार मिलने पर शिशु के पितामह पं. दुर्गाप्रसाद के मुख से वाक्य निकला कि हमारे यहां ऋषि ने जन्म लिया है और बालक का नाम ऋषिराज रख दिया जो आगे चलकर प्रो.{डॉ} ताराशंकर शर्मा पाण्डेय हुए, जो जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर में संस्कृत साहित्य विभाग में प्रोफेसर एवं अध्यक्ष के पद पर कार्यरत रहे हैं। बहुत लम्बे अन्तराल के बाद मोहनलाल पाण्डेय के 12 मई 1976 को नृसिंह चतुर्दशी के दिन एक और कन्यारत्न मधुबाला नामक हुआ, वर्तमान में डॉ मधुबाला शर्मा जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर में संस्कृत साहित्य विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है।

मोहनलाल शर्मा पाण्डेय के एक पौत्र सौरभ शर्मा रैवासा इंटरनेशनल इन्फोटेक प्राईवेट लिमिटेड के संस्थापक एवं निदेशक हैं। पाण्डेय के चार दोहित्र - प्रद्युम्न, जनार्दन, माधव एवं राघव तथा दो दोहित्रियां - मणिभूषण और गौरीभूषण हैं।


राजकीय सेवा तथा अन्य पदों पर कार्य[संपादित करें]

मोहनलाल पाण्डेय ने सर्वप्रथम वरिष्ठाध्यापक के रूप में  22 जुलाई 1957 से 04 अक्टूबर 1967 तक जयपुर के गौड़विप्र हायर सैकण्डरी स्कूल में अध्यापन कराया। तत्पश्चात् राजस्थान लोक सेवा आयोग  से चयनोपरान्त राजस्थान सरकार के संस्कृत शिक्षा विभाग के विभिन्न संस्कृत महाविद्यालयों में 1967 से 1982 तक संस्कृत साहित्य के व्याख्याता के रूप में अध्यापन कराया । तदनन्तर पदोन्नति प्राप्त कर राजकीय संस्कृत कॉलेज अजमेर( राजस्थान) के प्राचार्य के रूप में 1982 से कार्य करते हुए 30 सितम्बर 1992 तक सेवानिवृत्त हुए।

सेवा में रहते हुए आपने राजस्थान विश्वविद्यालय,जयपुर, राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड,अजमेर तथा महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, अजमेर की विभिन्न पाठ्यक्रम समितियों के संयोजक/ सदस्य के रूप में कार्य किया।


मोहनलाल शर्मा पाण्डेय अनेक संस्थाओं में विभिन्न पदों पर रहे -

  1. उपाध्यक्ष । राजस्थान संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष षष्ठ महासमिति में 24.03.1998 से तीन वर्ष तथा सप्तम महासमिति में 24.04.2001से तीन वर्ष रहे , (राजस्थान संस्कृत अकादमी से प्रकाशित 'राजतवातायनम्' के अनुसार)।
  2. उपाध्यक्ष, श्री वैदिक संस्कृति प्रचारक संघ, जयपुर( 'रामचरिताब्धिरत्नम्' 2004 तथा 'पत्रदूतम्' 2005 के अनुसार)।
  3. अध्यक्ष, (सन् 2005 से आजीवन) श्री वैदिक संस्कृति प्रचारक संघ, जयपुर। ( ऋषि-प्रज्ञा 2005, नतितति 2007 , संस्कृतकाव्यकौमुदी 2010, समस्यासौहित्यम् 2012, के अनुसार)।
  4. अध्यक्ष , अखिल भारतीय वेदवेदांग ज्योतिष स्वाध्याय संस्थान , जयपुर (रामचरिताब्धिरत्नम्' 2004 तथा 'पत्रदूतम्' 2005 नतितति 2007 , संस्कृतकाव्यकौमुदी 2010, समस्यासौहित्यम् 2012, में दिये गये कवि परिचय के अनुसार)।


पौरोहित्य कर्म[संपादित करें]

पाण्डेय ने पं.ग्यारसीलाल वेदाचार्य से विधिवत् वेद का अध्ययन किया। कुण्डमण्डपाचार्य तथा श्रौत-स्मार्त यज्ञों के पारंगत पण्डित राजब्रह्मा रामकृष्ण चतुर्वेदी से कर्मकाण्ड के कार्य में दक्षता प्राप्त की। पाण्डेय ने सन् 1956 में गंगानगर में भारत-पाक के समीपस्थ बकायन वाला में यज्ञ सम्पन्न करवाया, पूर्णाहूति के साथ ही प्रचुर मात्रा में वृष्टि होने से अकालग्रस्त ग्रामवासी अत्यन्त प्रसन्न हुए। इसके अतरिक्त आपने राज्य से बाहर चित्रकूट, आसाम, इन्दौर आदि स्थानो पर विभिन्न यज्ञ और देवप्रतिष्ठा जैसे कार्य करवाये।

अनेक अनुष्ठानों के साथ ही आपने सन् 1979 जयपुर के चौमूं क्षेत्र के रामपुरा-डाबड़ी ग्राम में तथा 1993 में धाणोता ग्राम में अष्टोत्तरशत कुण्डीय दो यज्ञ अपने आचार्यत्व में सम्पन्न करवाये।


मित्रवर तथा शिष्य वर्ग[संपादित करें]

पाण्डेय जी के मित्रों में संस्कृत के क्षेत्र में विशेष योगदान करने वाले  'भारती' संस्कृत पत्रिका के प्रधान संपादक राष्ट्रपति सम्मानित देवर्षि कलानाथ शास्त्री तथा संपादक पं. प्यारेमोहन शर्मा,  संस्कृत भाषा में बड़े पर्दे की फिल्म 'मुद्राराक्षसम्' के निर्माता आचार्य उमेश शास्त्री, इसी फिल्म के संस्कृत गीतकार डॉ हरिराम आचार्य एवं गिरिजाप्रसाद 'गिरीश'  ,राष्ट्रपति सम्मानित डॉ नारायण शास्त्री कांकर तथा आशुकवि पं. सत्यनारायण शास्त्री,पद्म शास्त्री आदि अनेक संस्कृत के साहित्यकार हैं।

 आपकी शिष्य परम्परा में विश्व हिन्दू परिषद् के केन्द्रीय मार्गदर्शक मंडल के सदस्य तथा राजस्थान क्षेत्रीय संत-प्रमुख अमृतराम रामस्नेही, प्रोफेसर रामेश्वर शर्मा, संस्कृत शिक्षा राजस्थान में सहायक निदेशक डॉ विश्वभर दयाल जोशी तथा डॉ अशोक योगी, संस्कृत के व्याख्याता डॉ बाबूलाल शर्मा, प्रो. ताराशंकर शर्मा पाण्डेय आदि प्रमुख हैं।


मोहनलाल शर्मा पाण्डेय विभिन्न संस्थाओं में रहे -[संपादित करें]


  1. उपाध्यक्ष  राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर के उपाध्यक्ष पद पर षष्ठ महासमिति  में 24.03.1998 से तीन वर्ष तथा सप्तम महासमिति में 24.04.2001से तीन वर्ष रहे।(राजस्थान संस्कृत अकादमी से प्रकाशित 'राजतवातायनम्' के अनुसार)।
  2. उपाध्यक्ष,  श्री वैदिक संस्कृति प्रचारक संघ, जयपुर सन् 2004 तथा 2005 ( 'रामचरिताब्धिरत्नम्' 2004 तथा 'पत्रदूतम्' 2005 के अनुसार)।
  3. अध्यक्ष, (सन् 2005 से आजीवन)  श्री वैदिक संस्कृति प्रचारक संघ, जयपुर।  ( ऋषि-प्रज्ञा 2005, नतितति 2007 , संस्कृतकाव्यकौमुदी 2010, समस्यासौहित्यम् 2012, के अनुसार)।
  4. अध्यक्ष , अखिल भारतीय वेदवेदांग ज्योतिष स्वाध्याय संस्थान,जयपुर सन् 2004 से 2015 तक आजीवन। (रामचरिताब्धिरत्नम्' 2004 तथा 'पत्रदूतम्' 2005    नतितति 2007 , संस्कृतकाव्यकौमुदी 2010, समस्यासौहित्यम् 2012, में दिये गये कवि परिचय के अनुसार)।


व्यक्तित्व कृतित्व पर शोध कार्य -[संपादित करें]


  1. 'मोहनलाल शर्मा पाण्डेय कृत 'पत्रदूत' का समीक्षात्मक अध्ययन' शीर्षक से राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर की एम.फिल. ( संस्कृत) परीक्षा 1996 हेतु डॉ सुभाष तनेजा के मार्गदर्शन में सुश्री कल्पना शर्मा द्वारा लघु शोध प्रबन्ध।
  2. 'आचार्य मोहनलाल शर्मा पाण्डेय विरचित 'पद्मिनी' उपन्यास का समालोचनात्मक अध्ययन' शीर्षक से महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर की एम.ए.(संस्कृत) उत्तरार्द्ध परीक्षा 2000 के पंचम पत्र हेतु डॉ कुंज बिहारी पाण्डेय के मार्गदर्शन में शिव कुमार विश्नोई द्वारा लघु शोध प्रबन्ध। तथा सन् 2011में 'पं. मोहनलाल शर्मा पाण्डेय विरचित 'पद्मिनी' : एक अध्ययन' शीर्षक से राष्ट्रीय संस्कृत साहित्य केन्द्र, जयपुर से प्रकाशित।
  3. 'पद्मिनीगद्यकाव्यस्य समीक्षात्मकमध्ययनम्' शीर्षक से श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय) दिल्ली की विद्यावारिधि (Ph.d.) की उपाधि 2006 के लिए डॉ रमेश चन्द्र चतुर्वेदी के मार्गदर्शन में अमित कुमार द्वारा शोधप्रबन्ध।
  4. 'पं. मोहनलाल शर्मा पाण्डेय द्वारा विरचित स्तुतकाव्यों में 'नतितति' का समीक्षात्मक अध्ययन' शीर्षक से राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर ,की एम.फिल. (संस्कृत,उत्तरार्द्ध चतुर्थ प्रश्न पत्र) परीक्षा 2006-07 के लिए डॉ महीपाल यादव के मार्गदर्शन में विजय सिंह मीणा द्वारा लघु शोधप्रबन्ध।
  5. 'पद्मिनी गद्यकाव्य का शास्त्रीय अध्ययन' शीर्षक से विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की एम.फिल. (संस्कृत) परीक्षा 2008 के लिए डॉ राजेश्वर मूसलगांवकर के मार्गदर्शन में लक्ष्मीनारायण ऐरवाल द्वारा लघु शोधप्रबन्ध।
  6. 'पं. मोहनलालशर्मपाण्डेयानां व्यक्तित्वकृतित्व-समीक्षा' शीर्षक से जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर की विद्यावारिधि (Ph.d) उपाधि 2010 के लिए देवर्षि कलानाथ शास्त्री के मार्गदर्शन में सुरेश गुप्ता द्वारा शोधप्रबन्ध।
  7. ' रसकपूरस्य ऐतिहासिकोपन्यासस्य संस्कृतानुवादस्य सर्वाङ्गीणमध्ययनम्'  शीर्षक से जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर की विद्यावारिधि (Ph.d) उपाधि सन् 2012 के लिए डॉ जितेन्द्रकुमार अग्रवाल के मार्गदर्शन में नरेन्द्र जोशी द्वारा शोधप्रबन्ध।



स्रोत[संपादित करें]

  1. 'संस्कृतविद्वत्परिचायिका',2012, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान नई दिल्ली,ISBN - 978-93-86111-85-2
  2. 'पद्मिनी',1999, पाण्डेय प्रकाशन,जयपुर (राज.)।
  3. 'नतितति',2007, पाण्डेय प्रकाशन,जयपुर (राज.)।
  4. 'रसकपूरम्',1993, व्यास बालाबक्ष शोध संस्थानम्, जयपुर, (राज.)
  5. 'संस्कृत-वाङ्मय का बृहद् इतिहास',सप्तम खण्ड, आधुनिक संस्कृत साहित्य का इतिहास',2000, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान,लखनउ(यू.पी.)
  6. 'पत्रदूतम्'1999, पाण्डेय प्रकाशन,जयपुर (राज.)।
  7. 'पं.मोहनलाल पाण्डेय विरचित 'पद्मिनी' : एक अध्ययन',2011, राष्ट्रीय संस्कृत साहित्य केन्द्र,जयपुर (राज.) ISBN- 978-81-88741-37-3
  8. 'स्वातन्त्र्योत्तर संस्कृत उपन्यासों का समीक्षात्मक अध्ययन',2006, नवजीवन पब्लिकेशन्स, निवाई, टोंक(राज.)ISBN- 81-8268-015-8
  9. 'राजतवातायनम्',2007, राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर(राज.)
  10. 'संस्कृतकाव्यकौमुदी',2010, राष्ट्रीय संस्कृत साहित्य केन्द्र,जयपुर(राज.)ISBN 978-81-88741-36-6
  11. 'समस्यासौहित्यम्',2012, हंसा प्रकाशन,जयपुर(राज.) ISBN 978-81-88257-87-4
  12. 'स्वातन्त्र्योत्कर्ष:',2015,संस्कृत विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,वाराणसी, ISBN 81-85305-66-6
  13. 'विशिष्टव्रतोद्यापनविधि:',2014, हंसा प्रकाशन, जयपुर(राज.)ISBN 978-9381954-68-3
  14. 'संस्कृत वाङ्मय का बृहद् इतिहास, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनउ,
  15. 'राजस्थान के प्रमुख संस्कृत मनीषी',2016, रचना प्रकाशन, जयपुर,(राज.)ISBN 978-93-81953-75-4
  16. 'संस्कृतपुरोधा: देवर्षिकलानाथशास्त्री',2012, राष्ट्रीय संस्कृत साहित्य केन्द्र, जयपुर, 2012, ISBN 978-81-88741-55-7
  17. 'रामचरिताब्धिरत्नम्',2004, आचार्य नित्यानन्द-स्मृति संस्कृत शिक्षा एवं शोध संस्थान, कोलकाता(बंगाल)।
  18. चतुर्वेदोक्तग्रहशान्ति:, 2013, हंसा प्रकाशन,जयपुर। ISBN 978-93-81954-45-4
  19. 'आधुनिक संस्कृत साहित्य सन्दर्भ सूची' 2002, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान,नई दिल्ली। ISBN- 81-86111-06-9
  20. 'संविरा',(वार्षिक पत्रिका),1997, निदेशालय, संस्कृत शिक्षा, राजस्थान सरकार।
  21. ' दृक् ' पत्रिका, अंक XIII , इलाहबाद, यू पी

== बाहरी कड़ियां-