सदस्य:Thakur Mangal Singh
KOLI VANSH का प्रमाण सहित इतिहास
કોલી વંશ
[नागवंशी कोलिय कुल की उत्तपत्ति]
नागवंशी कोलिय कुल की उत्तपत्ति के प्रथम प्रमाण "पृथ्वी विजयते श्री मान्धाता भगवान" के समय/त्रेतायुग से मिलते हैं। श्री मान्धाता कोलिय कुल के मूल पुरुष है। श्री मान्धाता का जन्म त्रेतायुग मै सूर्यवंश के इक्ष्वाकु कुल मै हुआ। त्रेतायुग में इसी कुल की शाखा रघुकुल की 25वी पीढ़ी में भगवान श्री राम और कलयुग में इसी कुल की शाखा शाक्य कुल मै भगवान श्री गौतम बुद्ध का जन्म हुआ।
[ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ, रुद्रप्रयाग , उत्तराखंड]
ओंकारेश्वर मंदिर का एक नाम मान्धाता भी है। यद्यपि आज यह नाम प्रचलित नहीं है किन्तु आज भी भगवान श्री केदारनाथ की बहियों का प्रारम्भ जय श्री मान्धाता से ही होता है। ओंकारेश्वर मंदिर में, भगवान ओंकारेश्वर के साथ भगवान मान्धाता की मूर्ति भी आदिकाल से विराजमान है। ओंकारेश्वर मंदिर जिस पर्वत पर स्थित है, उस पर्वत को मांधाता पर्वत के नाम से जाना जाता है। सर्दियों के दौरान, केदारनाथ मंदिर से मूर्तियों को ओंकारेश्वर/उखीमठ लाया जाता है और भगवान केदारनाथ की शीतकालीन पूजा और भगवान ओंकारेश्वर की साल भर की पूजा भगवान श्री मांधाता के साथ यहाँ की जाती है। मोहनजोदारो सभ्यता के शिलालेखों पर स्पष्ट रूप से "श्री मान्धाता कोलिय वंश" लिखा हुआ है। भगवान श्री केदारनाथ का एक नाम कोलियनाथ भी है।
[राजकुमार सिद्धार्थ वशिष्ठ- तथागत बुद्ध]
भगवान श्री गौतम बुद्ध मातृ पक्ष (मायादेवी) से कोलियवंशी व पितृ पक्ष (महाराज सुद्धोधन) से शाक्यवंशी है।
शाक्य मुनिस्तु यः ॥ १४॥ शाक्यसिंहः ।
सर्वार्थ सिद्धाः शौद्धौदनिश्चसः ।
गौतमश्चार्क बन्धुश्च मायादेवी सुतश्च सः ॥
(आप को मालूम होना चाहिए की हर एक नाम के पीछे जो "सिंह" शब्द लगाया जाता है । इतिहास/भूतकाल में सर्वप्रथम शाक्यसिंह का ही नाम पाया जाता है। बाद में दूसरे राजाओं/व्यक्तियों के नाम में 'सिंह ' शब्द जानने में आया।)
सम्पूर्ण जम्बूदीप/अखंड भारत मै और नेपाल, भूटान, चीन, थाईलैंड, बंगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार, ईरान, श्री लँका, जापान, मलेशिया ओर जँहा तक विश्व में तथागत बुद्ध को मानने या जानने वाले मनुष्य हैं, वँहा-वँहा क्षत्रिय शाक्यों के पद/प्रतीक चिह्न/निशान/इतिहास/शिलालेख मिलते हैं।
प्राचीन पाली, बौद्ध, जैन, पारसी, हिंदी, बंगला, सिंहली, नेपाली, जापानी, चीनी भाषा एवं वेद, पुराण, दुर्गा सप्तशती, रामायण, महाभारत आदि धर्म ग्रंथों/साहित्यों/इतिहासिक पुस्तकों मै " नागवंशी कोलिय राजवंश/कुल/वंश" का विस्तृत इतिहास/वर्णन मिलता है। एवं इनमें कोलिय कुल को भिभिन्न नामो से संबोधित किया गया है, जैसे कोलाविध्वंशी , नागवंशी, कोली, कोलिय, कुल्या, कुलिन्द, कुलीन, कुलिए, कौलितरं कोलीसर्प, कोलिक, कौल, शाक्य, मोर्य, चोल, चोला, मुदिराज, मुथियार, मुथुराजा, चालुक्य आदि अन्य नामों से संबोधित किया गया है। जैसे । कुणिन्द(कुलिन्द)कौणिन्द,कौलिन्द,कोल,कोलो, या कुविंद वंश के नाम से भी जाना है ये। कोलिय/कोलि/कोली नागवंशीय क्षत्रिय है
शका यवनाकाम्बोजा: पारदाश्च विशाम्पते । कोलि सर्पा समहिषा दार्वाश्चौरा (चौला) सकरेला । १८ हरिवंश पुराण १४वाँ अध्याय।
उत दासं कौलितरं बृहत: पर्वतात् अधि आवहन इन्द्र शम्बरम् " ऋग्वेद-२/३/६..
मार्कण्य पुराण के प्रथम अध्याय में क्षत्रिय कोली का वर्णन कोला विध्वंसी र्भिजित: नाम से मिलता है। इसका अर्थ है कि कोलों/कोली ने राजा सूरत को युद्ध में हराया था। कोला/कोली/कोलिय विध्वंसी कुल के उनके विरुद्ध हो गए तथा उन्होंने राजा सुरथ से उनका राजपाट छीन लिया
अन्त: शाक्ता बहिश्शैवा सभा मध्ये च वैष्णवा ।
नाना रूप धरा कौला विचरन्तीह महितले ||
अर्थात् भीतर से ये शक्ति यानि दुर्गा आदि के उपासक शाक्त हैं ।
बाह्य रूप से शिव के उपासक ,सभा के मध्य में वैष्णव हैं ।
,अनेक रूपों में ये द्रविड लोग इस पृथ्वी पर विचरण करते हैं ।
बुद्ध की माता और पत्नी दौनों कोल समाज से थी
शाक्य शब्द का अर्थ शक्ति का उपासक कोल समुदाय ही है ।......
कदाचित वाल्मीकि-रामायण कार ने ...
इसी भाव से भी प्रेरित होकर ....
अयोध्या काण्ड सर्ग १०९ के ३४ वें श्लोक में "चोर:"
कहा है ।
क्योंकि बुद्ध से पूर्व चोर: शब्द चोल अथवा कोल जन जाति का विशेषण था ।
वर्तमान में कोली, कोलिय, चौहान, भाटी, तंवर, मकवाना, बारिया, ठाकोर, महादेव, टोकरे, मच्छीमार, इक्षवाुक, नागवंशी, सूर्यवंशी, महावर/माहौर, बिष्ट, रावत, गुसाईं, नेगी, राणा, चौधरी, आर्यन, पंवार, मुदिराज, मुथियार, चंदेल, कश्यप, सरोला, कोली पटेल,
आदि सैकड़ों सरनेम/टाइटल प्रयोग करते हैं।
[नागवंशी कोलिय]
सूर्यवंश एवं चन्द्रवंश की तरह ही नागवंश के प्रमाण आदि सृष्टि अर्थात् वैदिक काल के आरम्भ से मिलता है। नागवंश यक्ष, गंधर्व और देवताओं की कोटि का सुसंस्कृत वंश/कुल था। (महाभारत आदिपर्व, अध्याय 66, श्लोक 69-70)
नागवंश का सभी वेद, पुराण, रामायण, महाभारत एवं सभी प्राचीन धर्म ग्रंथो व साहित्यों में विस्तृत और गौरवशाली वर्णन मिलता है।
प्राचिन भारत नागवंश राजकुल राजाओं के अधीन रहा है। नागवंशीयों ने ही भारत का पहला नाम जम्बुद्वीप रखा था। नागवंश एक राजकुल है। और उस राजकुल के सर्प प्रजाती है, और उसी कुल के मानव यानी नाग राजा प्राचिन नागवंशी क्षत्रिय कहलाए है।
1- शिव नाग -( 20 ईस्वी ) शिव नाग तथा शेष नाग एक दुसरे के प्रतिक है। इस शिव नाग को पुराणों मे वासुकी नाग भी बता दिया गया है।
2- शिशु नागवंश 30 ईस्वी से 543
3- नागवंश पल्लव 115 ईस्वी से 300
4- भारशिव वंश 143 ईस्वी से 320
5- वकाटक वंश 260 ईस्वी से 550
6- सुर्यवंश ,भरतवंश 350 ईस्वी
7- कार्कोटकवंश 631 ईस्वी से 855
नाग वंशावलियों में 'शेष नाग' को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेष नाग को ही 'अनंत' नाम से भी जाना जाता है। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला।
वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से 'तक्षक' कुल चलाया था। उक्त तीनों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।
उनके बाद ही कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना इत्यादी नाम से नागों के वंश हुआ करते थे। भारत के भिन्न-भिन्न इलाकों में इनका राज्य था।
अथर्ववेद में कुछ नागों के नामों का उल्लेख मिलता है। ये नाग हैं श्वित्र, स्वज, पृदाक, कल्माष, ग्रीव और तिरिचराजी नागों में चित कोबरा (पृश्चि), काला फणियर (करैत), घास के रंग का (उपतृण्य), पीला (ब्रम), असिता रंगरहित (अलीक), दासी, दुहित, असति, तगात, अमोक और तवस्तु आदि।
नौ नाग राजाओं के जो प्राचीन सिक्के मिले हैं, उन पर 'बृहस्पति नाग', 'देवनाग', 'गणपति नाग' इत्यादि नाम मिलते हैं। ये नागगण विक्रम संवत 150 और 250 के बीच राज्य करते थे। प्रयाग के क़िले के भीतर स्तंभलेख है।
नागलोक के नागराज वासुकि द्वारा सुरक्षित उनकी भोगवती नामक पुरी/राज्य था। देवराज इन्द्र की सर्वश्रेष्ठ नगरी अमरावती की तरह ही यह भी सुख-समृद्धि से सम्पन्न थी। कलयुग में इसी महान कुल में जन्मे नागवंशी काशी (वर्तमान वाराणसी) राजा के पुत्र (कोलऋषि) राजाराम और सूर्यवंशी शाक्य राजकुमारी पिया के विवाह उपरांत उनकी संतान कोली/कोलिय कहलाई। इस वंश/कुल में कई महाप्रतापी रहा हुए।
महाप्रतापी काशी के नागवंशी राजा बिरसेन जिनहोने काशी के द्वाशश्मेघ घाट पर 10 अश्वमेघ यज्ञ किए थे जिसके फलस्वरूप उस घाट का नाम द्वाशासमेघ घाट पड़ा। महाराजा अंजन नागवंशी कोलिय कुल के महाप्रतापी राजा थे। जिनके नाम से अंजन/कोलिय संवत की सुरुआत हुई। अंजन कोलिय संवत/संसार का सबसे पुराना कलेंडर है। अंजन/कोलिय संवत के अनुसार वर्तमान 2020 मै 2712 साल चल रहा है।
अंगुत्तर निकाय तथा विष्णु-पुराण के अनुसार प्राचीन काल में सम्पूर्ण भारत में जिन सोलह महाजनपद का वर्णन मिलता है उसमें एक काशी नागवंशी का महाजनपद था। काशी/वाराणसी में आदिकाल से नागवंशी का ही अधिकार रहा है। काशी शिव की नगरी है, ओर नागवंशी शिव के परम भक्त/उपासक है। दूसरा कोशल महाजनपद के सूर्यवंशी राजा प्रसेनजित के अवसान के बाद कोशल राज्य के बागडोर मगध नरेश अजातशत्रु (प्रसेनजित के भान्जे व राजा बिंबिसार के पुत्र) के हाथों चली गयी । 422 ई0 पूर्व तक यहाॅ का शासन मगध से, शिशुनाग वंशी राजा अजातशत्रु के वंशजों द्वारा चलता रहा।
तीसरा कोलिय ओर चोथा शाक्य जनपदों के विस्तृत ओर गौरवशाली इतिहास के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। पुराणों के अनुसार पांचवा मगध का प्रथम शासक -शिशुनाग था। लेकिन इतिहास में बिम्बिसार को ही मगध का प्रथम शासक माना गया है। इस तरह महाभारतकाल के बाद भी सम्पूर्ण भारत के अधिकतर क्षेत्र पर नागवंशी कोलिय का ही अधिकार रहा है।
प्राचीन श्रावस्ती, पुराणों तथा बौद्ध ग्रन्थों में भी इसके विषय में विस्तृत वर्णन किया गया है।
इसीलिए m.a sharing ने 1872 में कोलियों को सम्मानित कहा है।
[आज़ादी की लड़ाई में कोलियों का योगदान]
1828 का कोली विद्रोह
सन् 1828 मे महाराष्ट्र के
कोली (Koli) जाती ने गोवींद राव खरे नाम के कोली सरदार के नेतृत्व में विद्रोह किया।
नाना फरारी ने 1947 में आजादी की लडाई
लड़ी थी वह महाराष्ट्र के महादेव कोली थे। नाना फरारी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाए थे।
नाइक हरी मकाजी और नाइक तांत्या मकाजी नाम के दो कोली भाईयों ने 1879 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर हथियार उठा लिए थे।
पांचाकाका पटेल इन्होंने डांडी मार्च, सत्याग्रह और No-Tax Movement में हिस्सा लिया था। और ब्रिटिश सरकार ने इन्हे जेल में डाल दिया और जमीन जायदाद जब्त कर ली थी। (1) पांचाकाका पटेल गुजराती कोली थे।
पंचभाई पटेल भारत के गुजरात के नवसारी जिले में दांडी के पास कराडी गाँव के निवासी थे। वह गुजरात के तलपाड़ा कोली पटेल थे।
Rooplo Kolhi बलीदान दिवस पर शहीद-ए-हिंद को सत सत नमन 22 अगस्त 1858।
13 मार्च 1848 को जब कोली क्रांतिकारी राघोजी भांगरे को थाणे जेल म फांसी लगाई जा रही थी तो पहली बार में ही फांसी के फंदे की रस्सी टुट गई थी इसके बाद दुबारा से लोहे की जंजीर से राघोजी भांगरे को 2 May 1848 को फांसी दी गई थी।
कोली इतिहास और विरासत
∆ 1857 की क्रांति की वीरांगना झलकारीबाई की जयंती की हार्दिक शुभकामनाये..
[जैन धर्म और नागवंशी कोलिय कुल]
सभी जैन तीर्थकर का अवतरण
वंश/कुल में हुआ। वर्तमान से लगभग तीन हजार वर्ष पहले पौष कृष्ण एकादशी के दिन काशीराज राजा अश्वसेन और माता महारानी वामादेवी के पुत्र के रूप मै भगवान पार्श्वनाथ का अवतरण हुआ। भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के तेइसवें तीर्थकर है। राजा अश्वसेन काशी के महाप्रतापी राजा नागवंशी थे। इसी राजवंश/कुल मै काशीराज के पुत्र (कोलऋषि) राजाराम का जन्म हुआ था।
[पल्लव राजवंश-एक ओर बुद्ध बोधिधर्म/बोधी धर्मन] (The another buddha bodhidharma and koliya kul)
चोल राजकुमार और मणिपालवम की नाग राजकुमारी से पल्लव राजवंश की उत्पत्ति हुई। पल्लव राजवंश प्राचीन दक्षिण भारत का एक राजवंश था। चौथी शताब्दी में इन्होंने कांचीपुरम में राज्य स्थापित किया और लगभग ६०० वर्ष तमिल और तेलुगु क्षेत्र में राज्य किया। बोधिधर्म/बोधी धर्मन का जन्म इसी राजवंश में हुआ था। बोधिधर्म/बोधी धर्मन एक महान भारतीय बौद्ध भिक्षु एवं विलक्षण योगी थे। इन्होंने 520 ई. में चीन जाकर ध्यान-सम्प्रदाय (झेन बौद्ध धर्म) का प्रवर्तन/निर्माण किया ओर चीन में मार्शल आर्ट और कुंग फू जैसी विद्या को सिखाया। ये एक महान चिकित्सक भी थे। ये दक्षिण भारत के कांचीपुरम के कोली राजा सुगन्ध के तृतीय पुत्र थे।
[चोल/चोलाज/चोला साम्राज्य]
चोल/कोलिय (तमिल - சோழர்) प्राचीन भारत का एक कोलिय/चोल राजवंश था। दक्षिण भारत में और पास के अन्य देशों/राज्यो में तमिल चोल/कोलिय शासकों ने 9 वीं शताब्दी से 13 वीं शताब्दी के बीच एक अत्यंत शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य का निर्माण किया। महाप्रतापी चोला/कोलिय महाराजा (Maharaja Karikala Chola/Koliya) अर्ली चोला/कोलिय थे। चोल/चोला/कोलिय राजा शिव के अनन्य उपासक थे। इसलिये उनके काल में निर्मित ज्यादातर मन्दिर शिवजी को समर्पित हैं। इन्होंने संगम काल के दौरान समस्त दक्षिण भारत में शासन किया था। उन्हें शुरुआती चोलों/कोलिय में सबसे महान माना जाता है।
[महाराजा पेरुम विडुगू]
महाराजा पेरुम विडुगू (कोलीयवंशी
दक्षिण भारत)
∆
Kuninda (Kulinda) Kingdom Of Koli
[क़िस्सा-ए-संजान] (फ़ारसी: قصه سنجان, गुजराती: કિસે સનજાન/કિસ્સા-એ-સંજાણ, अंग्रेज़ी: Qissa-i-Sanjan)
भारत में पारसी शरणार्थियों के आरम्भिक काल का एक समकालीन ऐतिहासिक वर्णन है। इस्लामिक आक्रमणकारियों से बचते बचाते फारसी जब भारत में शरण लेने के लिए आये तो उन्हें गुजरात के दयालु क्षत्रिय कोली राजा जैदी राणा ने इस्लामिक आक्रमणकारियों की परवाह किए बगैर उनको सरंक्षण/शरण दिया था।
क़िस्सा प्राचीन ख़ुरासान में शुरु होता है और यहाँ से प्रवसियों की गुजरात की यात्रा का बखान करता है। काव्य का पहला अध्याय सबसे लम्बा है और संजान में आतिश बेहराम (पारसी अग्निमंदिर) की स्थापना के साथ समाप्त होता है। बाद के अध्यायों में ईरान पर मुस्लिम आक्रमकों के शुरुआती हमलों को सफलतापूर्वक वापस धकेल देने और फिर बाद में रक्षा करने में असफलता और फिर भारत की ओर प्रवास का ब्योरा है। इस प्रस्थान से पहले ईरान के बूशहर में 15 वर्षों तक के ठहरने का भी उल्लेख है। अंत में ईरान से पवित्र अग्नि को संजान लाने और वहाँ स्थापित करने का वर्णन है। ब्योरे की समाप्ति पर बहमान काइकोबाद नामक पारसी पुजारी के हस्ताक्षर हैं।
[उत्तराखंड में कोली ]
उत्तराखंड गढ़वाल क्षेत्र में कोलियों के पौराणिक वंशज होने के कई प्रमाण विद्यमान हैं, जैसे;
(१) टिहरी गढ़वाल के सीमतीर्थ स्थान पर 'कुसमा कोलिण' की मूर्ति।
(२) देहरादून के रायवाला बाजार से डेढ़ किमी दूर 'कोलिया नेगी' का किला। जिसमें हाथियों को रखने का स्थान तक मौजूद हैं।
(३) पौड़ी गढ़वाल की गुजड़ू पट्टी में 'जगदेई कोलिण' की मूर्ति।
(४) पौड़ी गढ़वाल की पट्टी कोलागाड में कोली के थोक थे,इसलिए इस पट्टी का नाम कोलागाड रखा गया।
(५) पौड़ी गढ़वाल की बछणस्यूं पट्टी में डुंगरा गांव से अगला कोली गांव है जहां कोली की थोकदारी थी।
(६) पौड़ी गढ़वाल के मौन गांव के भगवती मंदिर के जागरी/पुजारी कोलीवंशी हैं, तथा बकरे की बलि आज भी मात्र कोलीवंशी ही चढ़ाते हैं और बलि चढ़ाने वाली तलवार भी कोली के पास रहती है।
(७) जनपद पौड़ी के इड़ियाकोट तल्ला में कोली के भवनों तथा गढ़ों के खण्डहर आज भी मौजूद हैं।
(८) पौड़ी गढ़वाल की डबरालस्यूं पट्टी के मशहूर 'डबोली गांव' के भूमिया मंदिर के पुजारी सदियों से कोली हैं।
(९) पौड़ी गढ़वाल के ही कफोलस्यूं पट्टी के गहड़ गांव में कोली के गढ़ों के खंडहर तथा भवनों के खंडहर प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
(१०) गढ़वाल में कोलीगढ़ कोलीयों का महत्वपूर्ण गढ़ था।
उत्तराखंड गढ़वाल में शकों (खसों) के आने से पूर्व नागों/कोलियों/नागवंशियों का एकक्षत्र राज्य था।
[महान कोली मराठा एवम् मराठा साम्राज्य]
महाराष्ट्र के मुम्बई का नाम कोली/कोलिय कुल देवी मुम्बा देवी के नाम पर रखा गया है।
महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में अधिकतर सेनापति कोली/कोलिय थे। मराठा सेना में लगभग 35% काेलियो की संख्या थी।
(तानाजी मालुसरे)
छत्रपति शिवाजी महाराज तानाजी मालुसरे को अपना परम मित्र मानते थे। उन्हें शेर कह कर पूकारते थे।
(कान्होजी आंग्रे)
कोलीय मराठा नौसेनाध्यक्ष कान्होजी आंग्रे (जन्म: अगस्त 1669, देहांत: 4 जुलाई 1729), जिन्हें 18वी सदी ई॰ में मराठा साम्राज्य की नौसेना के सर्वप्रथम सिपहसालार थे। उन्हें सरख़ेल आंग्रे भी कहा जाता है। "सरख़ेल" का अर्थ भी नौसेनाध्यक्ष (ऐडमिरल) होता है। उन्होंने आजीवन हिन्द महासागर में ब्रिटिश, पुर्तगाली और डच नौसैनिक गतिविधियों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। उनके पिता तान्होजी आंग्रे भी छत्रपति शिवाजी की फ़ौज में नायक थे।
(मराठा सरसेनापती सरदार येसाजी कंक)
येसाजी कंक का पुरा नाम देशमुख साहेब सरनोबत सरदार येसाजी कंक था। येसाजी कंक भूटोंडे जागीर के कोली देशमुख (कोली राजा) थे। यह जागीर येसाजी कंक को छत्रपति शिवाजी महाराज ने दी थी।
( कोली राजा नाग नाईक)
महाराष्ट्रा के कोंढाणा किले पर 1327 इ,सन मे राज करने वाले महादेव कोलिय कुल के राजा नाग नाईक थे। कोली राजा नाग नाईक से 9 महिने युध्द करके मोहमद बीन तुगलक ने धोके से कोंढाणा किला पर अधिकार किया था।
गढ़वाल कोली सभा" उत्तराखंड
माननीय स्व. श्री भगत राम वैद्य जी, रतनपुर, भाबर, उत्तराखंड "गढ़वाल कोली सभा" के संस्थापक अध्यक्ष थे। उत्साही समाज-सेवक और राष्ट्रीय कार्यकर्ता थे। उन्होंने क्षय रोग-निवारण के लिये विशेष प्रयत्न किया।
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"अखिल भारतीय कोली महासभा" अजमेर राजस्थान
1 9 3 9 में, माननीय स्व. श्री नाथु सिंह तँवर जी द्वारा स्थापित "अखिल भारतीय कोली महासभा" ने "कोली जाति का संक्षिप्त परिचय" प्रकाशित किया था, जो कि प्रसिद्ध आर्य समाजी श्री नंद कुमार शास्त्री द्वारा लिखा गया था।
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"श्री कोली हितकारिणी सभा" अजमेर, राजस्थान
माननीय स्व. श्री नाथु सिंह तँवर जी द्वारा स्थापित "श्री कोली हितकारिणी सभा" नामक कोली की संस्था आज़ादी 1947 से पहले अजमेर राजस्थान में कार्यरत थी। वर्तमान 2019 मै भी "श्री कोली हितकारिणी सभा" अजमेर राजस्थान मै कार्यरत हैं।
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"कोली मासिक पत्रिका
"अखिल भारतीय कोली महासभा" एवम माननीय स्व. श्री नाथु सिंह तँवर जी द्वारा स्थापित "कोली नामक मासिक पत्रिका आज़ादी से पहले और बाद में लगभग 60-70 साल तक अजमेर राजस्थान से प्रकाशित होती रही।
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"कोली सभा" कानपुर, उत्तर प्रदेश
आज़ादी से पहले कोली की एक सामाजिक संस्था "कोली सभा" कानपुर वर्तमान के उत्तर प्रदेश में भी कार्यरत थी।
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"गढ़वाल सभा" दिल्ली
"गढ़वाल कोली सभा" उत्तराखंड का पुनर्गठन करके 1972 मै "गढ़वाल सभा" दिल्ली की स्थापना की गई, जो वर्तमान में भी कार्यरत हैं।
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संघ सुंदरनगर हिमाचल ????
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कोली तानाजी सेना गुजरात
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मांधाता ग्रुप गुजरात
श्री कोली मंदिर
ये मन्दिर 1934 - 35 का बना है यानी आज़ादी से पहले का ये झलकारी नगर, अलवर गेट रोड,
टीका टिप्पणी और संदर्भ
↑ वाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड, सर्ग 67, श्लोक 5-26
↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक:ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 413 |
↑ भागवतपुराण तथा विष्णुपुराण
↑ भागवतपुराण 9.6.30-38; 7.1; 10.51.14; 12.3.9; वायुपुराण 99.130; विष्णुपुराण 4.2.61-112; ब्रह्माण्डपुराण 3.63.68-72; मत्स्यपुराण 12.34; 49.8
↑ भागवतपुराण 9.6.12-15, 31; विष्णुपुराण 4.2.29-32
↑ ब्रह्माण्डपुराण 3.36.86
↑ मत्स्यपुराणानुसार 15वें त्रेता युग में उत्तंक पुरोहित के साथ; ब्रह्माण्डपुराण 3.73.90; मत्स्यपुराण 47.243; वायुपुराण 98.90
↑ ब्रह्माण्डपुराण 2.32.108; मत्स्यपुराण 145.102; वायुपुराण 59.99
↑ भागवतपुराण 2.7.44
↑ वायुपुराण 88.66-70
↑ वायुपुराण 91.115
↑ वायुपुराण 99.130
↑ महाभारत वनपर्व, 126, महाभारत द्रोणपर्व- 62, महाभारत शांतिपर्व- 29। 81-93, शांतिपर्व- 64-65, भागवतपुराण 7।9, विष्णुपुराण- 4।2