सदस्य:Sushma0104/प्रयोगपृष्ठ

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
जैमिनिसूत्रम आत्माकारक ग्रह[संपादित करें]
जैमिनिसूत्रम की रचना महर्षी जैमिनि ने की है।जैमिनिसूत्रम में ग्रन्थ की व्यवस्था सूत्रों में की गयी है। इस्में राशि द्रिष्टी और ग्रहों की दृष्टी कि चर्चा की गयी है।अर्गला का विचार ,कटपयादि प्रकार से सूत्रों की व्याख्या की गयी है। फिर आत्मकारक गृह के बारे में बताया गया है।[संपादित करें]

आत्माधिक्ः कलादिभिर्नभोगः सप्त्नाम्ष्टानंवा जैमिनिमत से जन्म लग्न से भि अधिक महत्व आत्म्कारक को प्राप्त है। ये आत्मकारक आदि सात कारक हैं। सूर्य से लेकर शनि पर्यन्त सतों मे से अथ्वा राहू को मिलकर आठ ग्रहों मे से जिस्के अन्श सब्से अधिक होंगे वही आत्मकारक होगा।यदि अन्श सम्मन हो तो कलाओं की अधिक्ता से और कला समान होने पर बल के आधार पर आतमाकारक का निर्णय होगा।यदि दो ग्रहों य अधिक ग्रहों कके अन्श समान हो तो वे दोनों भी ग्रह आतमकारक माने जायेंगे। दो ग्रहों के अन्श समान होने पर ही राहू को सम्मिलित करना चाहिये। यदी राहो सब्से अधिक भुक्तांश वाला हो तो वह भी आतमकारक हो सकता है।स्थिर कारक तत्वों का भी विचार जैमिनिसूत्रम मे किय गया है।जैसे सूर्य चन्द्रादि ग्रहो को कृमशः पिता माता ,भ्राता ,मित्र ,पितामह अमात्य को स्त्री,पुत्रादि का कारक माना जाता है।

आतमकारक का महत्व

यह आत्मकारक ग्रह मनुष्य के भाग्य के बन्ध और मोक्ष फल का स्वामी है।मनुष्य के भविष्य निर्माण मे आत्मकारक की स्तिथि निर्णायक है।यह आत्मकारक जब नीचगत या पापयुक्त हो तो अप्नी दशादि मे अशुभ फल देता है।आत्मकारक से कम अंशादि वाला ग्रह अमात्यकारक होता है।उस से कम अन्श वाला भातृकारक ,उस से कम अन्श वाला यातृकारक ,उस से कम अंश वाला पुत्र कारक और उस से कम अंश वाला जातिकारक ,और सबसे कम अंश वाला स्त्रीकारक होत है।इन सबसे आत्मकारक और अमात्याकारक के योगादि से राजयोग बनते है।चर और स्थिर कारक का तुलनात्मक अध्ययन करके फलादेश करना चाहिये।अपितू लग्न पद व कारक आदि अवश्य विचार्णिय है।