सदस्य:Sunil soni Rajasthan/प्रयोगपृष्ठ

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पशुधन का कृषि में महत्व

भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ की तीन-चौथाई आबादी प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से कृषि एवं इससे सम्बन्धित कार्यों पर निर्भर करती है। पशुपालन कृषि का अभि अंग है तथा वे एक दूसरे के पूरक हैं। हमारे देश में विश्व का एक चौथाई पशुधन उपलब्ध है, परन्तु इनकी उत्पादकता विश्व से केवल 1/10 भाग ही है। इस कम उत्पादकता के कई मुख्य कारण हैं, जैसे प्रति इकाई भूमि पर मानव एवं पशु का अधिक दबाव वर्षों से कृषि कार्य करने से भूमि की उपजाऊ शक्ति का कम होना. कृषकों के पास छोटी जोत होना, आधुनिक एवं तकनीक का प्रभाव, शिक्षा का प्रभाव, कृषकों की आर्थिक दशा कमजोर होना, पशुमों के लिए पौष्टिक चारा व दानों की कमी पशुयों में नस्ल सुधार के लिए सुनियोजित कार्यक्रम का अभाव प्राकृतिक जैसे बाढ़ आना एवं अकाल होना आदि । स्वतन्त्रता के बाद पिछले तीन दशकों में भारत सरकार ने कृषि उत्पादन बढाने पर अधिक ध्यान दिया तथा इसकी प्रथम सफलता "हरित क्रांति" के रूप में उभरी एवं देश बायान में आत्मनिर्भर बन सका । इसी प्रकार विकास के दूसरे चरण में "श्वेत कांति" अग्रसर हो रही है। इसके परिणामस्वरूप देश में दूध का उत्पादन 1989-90 में 50 करोड़ टन कृपा चावल के बाद दूध देश में दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण कृषि उत्पाद बनकर उभरा है। इन रिकार्ड उत्पादन के साथ ही भारत विश्व में सोवियत संघ व प्रमेरिका के बाद तीसरा सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश हो गया है। इस शताब्दी के अन्त तक साढ़े छ करोड टन दूध उत्पा दन का लक्ष्य रखा गया है।

दूध लोगों के स्वास्थ्य के लिए ही नहीं अपितु हमारी कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। पिछले बीस वर्षों में उत्पा- दन दुगुना हुआ है। कुल उत्पादन का 52 प्रतिशत भैरा, 45 प्रतिशत गाय व शेष