सदस्य:Sonajiya/प्रयोगपृष्ठ

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पोती[संपादित करें]

भूमिका[संपादित करें]

पोती, पोता, दोय्ति, दोय्ता यह सब दादा-दादी अौर नाना-नानी के लिये सबसे खास अौर प्यारे होते है। विशेष रुप से पोती पुत्र की पुत्री को कहते हैं।पोतियाँ का रिश्ता अपने मा-बाप के साथ जो रखती है और जो दादा-दादी के साथ रखती है, दोनों रिश्तों में बहूत अंतर है। पोती अपने दादा-दादी को अपना दोस्त समझकर उनके साथ बहूत सारे खेल खेलती है, और दादा-दादी उनको कई कहानियाँ सुनाती है जिनसे पोतियाँ अपनी जिवन में सीख ले सकती है। दादा-दादी का रिशता अपनी पोतियाँ के साथ ज़यादा सरल होता है क्योंकि उनको अपने बच्चों के बच्चों को अनुशासन नहीं करना पढ़ता नाहीं उनके लिए प्रदाता होते है। इसलिए उनका रिशता मज़ेदार और आरामपसंद होता है।

मध्य भाग[संपादित करें]

दादा-दादी का रिश्ता अपनी पोती के साथ एक अनोखा रिशता है क्योंकि पहलेे दादा-दादी अपनी पोती को अपने गोद में खिलाते थे और उनका देखभाल करते है जल्द यह रिशता बदलकर पोती बड़ी होती है तो वह अपने दादा-दादी का खयाल रखने में मा-बाप का सहायता करती है। दादा-दादी को डाॅक्टर कॊ ले जाना, दवाई लाना, यह सब ज़िम्मेदारी पोतियाँ काइदे से निभाती है। वह अपनी दादा-दादी का खयाल ठीक उसी प्रकार रखती है जैसे दादा-दादी ने अपनी वहीं पोती को बढ़ा किया था। पोतियाँ पूर्ण रूप से घर की देवी के सम्मान है। कहा जाता है कि, दादा-दादी के लिए पोतियाँ दूध की मलाई जैसी होती है। पोतियाँ दादा-दादी के साथ सबसे ज़यादा समय बिताती है और उनको कंपनी देते हूए उनकी बोरियत दूर करती है। साथ ही साथ  दादा-दादी के साथ समय बताते हूए, पोतियाँ दोनों जनमों के बीच एक अलग पर पक्का संबंध महसूस करती है। दादा-दादी अपनी पोतियाँ के साथ एक महत्वपूण रिशता बनाया करना चहाते है जिस्सेे वह किसी भी तरह की उम्मीद नहीं रखते पर उनकी इच्छा है की वह सुनिश्चित रुप से अपनी पोति के याद में रहे, हमेशा प्यार करेंं और उनकी अहमीयत को समझे ताकी सबसे कम उम्र की पीड़ा उनका याद हमेशा रखे। पोतियाँ अपने मा-बाप को गर्व महसूस करवाने का कोशिश करती हीं है, परंतू वह अपने दादा-दादी के आशिर्वाद से उनके लिए भी कुछ कर देना चहाती है जिस पर वह गर्व कर सके।

उपसंहार[संपादित करें]

पुराने ज़माने से देखा जा रहा है की हमेशा पोता या लड़के को ज़यादा प्यार दिया जाता है। जब घर में पोता पैदा होता है तो सबको किसी तरह की ज़यादा खूशी मिलती है। पर एसा क्यों होता है, जबकी ज़यादातर पोतियाँ घर में हाथ बटाती है और घर के बहार भी वह काम करती है। पोतियाँ भी उतनी ही काबिल होती और तो और ज़यादा मददगार ओर स्नेहीशाल होती है। इसलिए कहते है की पूत्र की पूत्री हो तो समझो आप धनय हो चुके हो।

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  1. http://blogs.transparent.com/hindi/relations-in-hindi/
  2. http://articles.extension.org/pages/18883/connections-between-grandmothers-and-their-granddaughters