सदस्य:Ritik Singh Rajpoot

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Home Schools Schools तकनीकी शिक्षा और रोजगार की संभावना By Atul Mahajan - June 8, 20171772

तकनीकी शिक्षा भारत में तकनीकी प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना भारत के ब्रिटिश शासन के दौरान, सार्वजनिक इमारतों, सड़कों, नहरों और बंदरगाहों के निर्माण और रखरखाव के लिए की गई थी l नियामकों की प्रशिक्षण और सेना, नौसेना और उपकरणों के लिए उपकरणों के उपयोग के लिए कारीगरों और कलाकारों के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती थी ।

सर्वेक्षण विभाग में मुख्य रूप से यूपी में कूपर हिल कॉलेज से अधीक्षक अभियंताओं की भर्ती की गई थी और यह प्रक्रिया फोरमैन और कारीगरों के लिए अपनाई गई थी; लेकिन इस प्रक्रिया को निम्न श्रेणी में नहीं लिया गया – कारीगरों, कलाकारों और उप-निरीक्षकों को स्थानीय स्तर पर भर्ती किया गया था। कारीगरों को पढ़ने,लिखने , गणित, ज्यामितिक और यांत्रिकी में उन्हें और अधिक कुशल बनाने की आवश्यकता के कारण, आयुध कारखानों और अन्य इंजीनियरिंग संस्थानों से जुड़े औद्योगिक विद्यालयों की स्थापना की गई है। तकनीकी शिक्षा से कुशलता की संभावना कई गुना बढ़ जाती है l और आप तो जानते ही है की किसी वस्तु या मशीन का निर्माण कुशल इंजीनियरों की देख रेख तथा कुशल कारीगरों दवारा किया जाता है तो वह बहुत ही किफायती एवं अच्छी गुणवत्ता वाली होती है l

1847 में उत्तर प्रदेश के रुड़की में सिविल इंजीनियरों के लिए पहली इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना हुई थी, रुड़की कॉलेज (या थॉमसन इंजीनियरिंग कॉलेज के आधिकारिक नाम से जाना जा सकता है) किसी भी विश्वविद्यालय से संबद्ध नहीं था, लेकिन यह डिग्री के बराबर डिप्लोमा प्रदान करता था । सरकारी नीति के अनुसरण में 1956 में और तीन इंजीनियरिंग कॉलेज खोल दिए गए थे। तकनीकी शिक्षा मानव संसाधन विकास के सबसे जटिल घटकों में से एक है और इसमें लोगों की जिंदगी की गुणवत्ता में सुधार की पर्याप्त क्षमता भी है। उत्तरोत्तर में शिक्षा के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र की राष्ट्रीय शैक्षिक नीति, एन.पी.ई. लागु की गई l

आज की सबसे जटिल समस्या यह है इंजीनियरिंग अध्ययन में 6 से 8 लाख रुपए खर्च करने के बाद भी, यदि छात्र बेरोजगार है तो ऐसी इंजीनियरिंग की पढाई से क्या फायदा ? या जो नौकरी जिसे वह केवल बी.ए. या बीएससी या एक सस्ते कोर्स में स्नातक होने के बाद पा सकता था उसके लिए इंजीनियरिंग के लिए 7 से 8 लाख रुपये खर्च करने के लिए इसका क्या फायदा है ?

हमे इंजीनियर बेरोजगारों की भीड़ नहीं , देश के विकास में सहायक बने ऐसे   इंजीनियर बनाना है, उसके लिए  सरकार को हर पास आउट  इंजीनियर को उसके लायक काम उपलब्ध करवाना  होगा यंहा हमारा तात्पर्य है की ऐसी कोई नीति बने जिससे हर पास आउट  इंजीनियर अपने हुनर को अपनी जीविका बना सके   l  

वर्तमान में हालत यह है कि यदि इंजीनियरिंग की डिग्री में 70% से अधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्रों को एक कंपनी के इंजीनियर के पद के लिए साक्षात्कार में जाना जाता है, तो ज्यादातर छात्र निराश होते हैं। इसके लिए कई कारण हैं, जैसे कि अंग्रेजी में संचार कौशल में बेहतर नहीं, अपने इंजीनियरिंग क्षेत्र में तकनीकी ज्ञान की कमी, और विशेष-कर प्रयोगात्मक कमज़ोरी में।

तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता के बारे में इंफोसिस के संस्थापक श्री नारायण मूर्ति ने कहा है कि पिछले कुछ सालों में आईआईटी जैसे संस्थानों में प्रवेश लेने वाले छात्रों में कोई गुण नहीं है। अन्य कंपनियों का भी कहना है कि इंजीनियरिंग पास के 70% से अधिक छात्रों को कंपनी में नौकरी के लिए उपयुक्त नहीं हैं और इसलिए अनुभवी लोगों के लिए बल्कि अनुभवी लोगों को ही प्राथमिकता देना पसंद करते हैं।

कुछ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में कैंपस प्लेसमेंट आता है, लेकिन कंपनी द्वारा उनमें से कुछ को चुन लिया है, और बाकि छात्रों को बाहर का यानि भटकने का रास्ता दिखाया जाता है । कुल मिलाकर, इसका मतलब आईआईटी और आईएनआईटी इसके अलावा, अन्य महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में 70% से अधिक इंजीनियरिंग कॉलेजों को अपनी पसंद का काम नहीं मिलता है।

वर्तमान समय में तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इंजीनियरिंग संस्थानों के प्रबंधन को केवल विषय के पाठ्यक्रम के लिए प्रतिबंधित नहीं होना चाहिए, लेकिन अन्य सभी प्रभावी उपाय गंभीरता से लिया जाना चाहिए । यदि यह सब संभव है, तो छात्रों भी किसी कंपनी में एक नौकरी पाने में सक्षम हो जायेंगे और इंजीनियरिंग कॉलेज भी सही तरीके से छात्रों को उचित न्याय देने में सक्षम हो जायेंगे । और छात्रों को अपनी पसंद का काम मिल सकता है ।