सदस्य:PINKI KUMARI RAJ/प्रयोगपृष्ठ

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                        प्राथमिक शिक्षा का इतिहास

विभिन्न कालों में इसके लिए किए गए प्रयत्न

विभिन्न कालों के पहले के प्रयत्न

आरंभ में शिक्षा प्रसार की ओर मिशनरियों का ध्यान गया। ईस्ट इंडिया कम्पनी का ध्यान तो व्यापार की लगा हुआ था। सन् 1813 ई॰ में बंबई के गवर्नर एल्फिंटन के प्रयास के कारण सरकारी एवं गैर सरकारी विद्यालयों की स्थापना हुई। इसी तरह सन् 1822 के लगभग मद्रास के गवर्नर मुनरों ने सरकारी सहायता प्रदान कर लोक शिक्षा का विकास किया। सन् 1838 में विलियम एडम ने बंगाल में प्राथमिक शिक्षा के विकास के लिए एक महत्त्वपूर्ण योजना प्रस्तुत की। उसकी योजना के अनुसार प्रत्येक गाँव में एक स्कूल चलाने पर बल दिया गया। इसे कार्यान्वित करने के लिए उसने कुछ जिलों को चुनने की सिफारिश की, लेकिन यह योजना स्वीकृत नहीं हो सकी। सन् 1852 ई॰ में बंबई के सर्वे कमिश्नर श्री केप्टेन विंजेट ने प्रारंभिक शिक्षा के प्रसार के लिए लगान पर पाँच प्रतिशत टैक्स बाँधने की सलाह दी। सन् 1852 में ही लार्ड डलहौजी ने शिक्षा के प्रति अपना प्रेम प्रकट किया और 33 प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना की।

1854 से 1882 के प्रयत्न

         सन् 1854 के घोषणा-पत्र ने शिक्षा के ‘छनाई सिद्धांत’ की आलोचना की और जनसाधारण को शिक्षित करने के लिए प्राथमिक शिक्षा के प्रसार पर जोड़ दिया। सरकारी विद्यालय की तरह गैर सरकारी विद्यालयों को अनुदान देकर प्रोत्साहन देने की अनुमति दी, लेकिन धनाभव के कारण भरपूर सहायता न मिली तथा विकास का कार्य धीमा पड़ गया।

सन् 1857 के बाद भारत का शासन ईंग्लैंड की पार्लियामेंट के हाथ में गया। सन् 1859 में स्टेनले का आज्ञा-पत्र प्रकाशित हुआ, जिसमें प्राथमिक शिक्षा के प्रसार पर अधिक बल दिया गया। उसने सिफारिश की कि, प्राथमिक शिक्षा का उत्तरदायित्व सरकार अपने उपर ले तथा उसका प्रबंध स्थानीय समितियों को सौंपा जाए। इस सिफारिश के कारण 1882 के अंत तक देश में प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 82,956 हो गई।

1882 से 1905 तक के प्रयत्न

      सन् 1882 में हंटर कमीशन ने प्राथमिक शिक्षा के लिए सिफारिशों की जो इस प्रकार है-

1 प्राथमिक विद्यालयों के पूर्ण संरक्षण का भार सरकार वहन करे।

2 प्राथमिक शिाक्षा का मुख्य उद्देश्य जनसाधारण को शिक्षा प्रदान करना हो।

3 पाठ्यक्रम में व्यवहारिकता एवं आत्मनिर्भरता को विकास प्रदान करने वाले विषयों का समावेश हो।

   

       इन सिफारिशों के अनुसार शिक्षा के संगठन का कार्य जिलापरिषद् एवं नगरपालिकाओं को सौंपा गया, लेकिन सरकार द्वारा उचित अनुदान के अभाव में स्थानीय लागों ने शिक्षा के प्रति कम दिलचस्पी रखी और प्राथमिक शिक्षा का विकास रुक सा गया।

       प्राथमिक शिक्षा के प्रसार में लार्ड कर्जन का कम हाथ न रहा। 11 मार्च 1904 में उसने अपनी शिक्षा नीति को सरकारी प्रस्ताव के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन सन् 1905 में सरकार ने बंग-भंग की नीति अपनाई, जिससे भारतीयों में अत्याधिक असंतोष उत्पन्न हुआ। फलतः अनेक भारतीय सार्वजनिक शिक्षा पर बल देने लगे और निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की माँग करने लगे।

अनिवार्य शिक्षा के लिए प्रयत्न

आरंभिक प्रयत्न

       

        प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने का सर्वप्रथम प्रयास विलियम एडम ने किया था। इसके लिए सन् 1838 में उन्होंने सरकार के समक्ष एक प्रस्ताव रखकर प्रत्येक गाँव में एक प्राथमिक विद्यालय खोलने का सुझाव दिया। केप्टेन विंगेट ने 1852 में अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा संबंधी सिफारिशों की थी, कि इसके विकास के लिए गलान पर टैक्स लगाया जाए। सन् 1858 में गुजरात के शिक्षा निरीक्षक श्री टी सी होप ने भी अनिवार्य शिक्षा के विकास हेतु स्थानीय कर लगाने का सुझाव दिया लेकिन दुःख है कि अंग्रेजी सरकार ने इन प्रस्तावों पर कुछ ध्यान नहीं दिया।

भारतीय नेताओं के प्रयत्न

        राष्ट्रीय जागरण के साथ देश के नेताओं ने अनिवार्य शिक्षा की माँग की जिसमें सर चिम्मनलाल सीतलवाड़ तथा इब्राहिम रहीमतुल्ला के नाम प्रमुख हैं। 1906 में सरकार ने एक समिति का गठन किया। समिति ने अपनी रिपोर्ट में वर्तमान परिस्थिति का वर्णन करते हुए अनिवार्य शिक्षा को नहीं लागू करने का सुझाव दिया।

बड़ोदा महाराज के प्रयत्न

       

     बड़ोदा महाराज सायजी राव गायकवाड़ ने सर्वप्रथम अनिवार्य शिक्षा को लागू करने को प्रयत्न किया। उन्होंने अमरौली के 52 गाँवों में 7 से 10 वर्ष सभी बालकों के लिए अनिवार्य शिक्षा की घोषणा सन् 1893 में की। सन् 1906 तक उन्होंने अपने सारे राज्य में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा लागू कर दिया।


गोखले को प्रयत्न

       

     बड़ोदा महाराज के प्रयत्नों से प्रोत्साहित होकर 16 मार्च 1911 को गोखले ने देश भर में अनिवार्य निःशुल्क शिक्षा का विधेयक ‘केंद्रिय धारा सभा’ के समक्ष प्रस्तुत किया। विधेयक में कहा गया कि-

(1) पर्याप्त संख्यावाले विद्यालयों में अनिवार्य शिक्षा लागू की जाए।

(2) अनिवार्य शिक्षा का व्यय-भार सरकार और स्थानीय बोर्ड दोनों मिलकर       

    वहन करें।

      लेकिन धारा परिषद् के द्वारा का विधेयक 13 वोटों के विरूध 38 वोटों से गिरा दिया गया। फलतः अनिवार्य निःशुल्क शिक्षा का विकास अवरूध हो गया।

अनिवार्य शिक्षा कानून

       

     गोखले की पराजय से प्रभावित होकर विट्ठल भाई पटेल ने बंबई की विधायिका सभा में एक विधेयक प्रस्तुत किया। यहाँ विधेयक सन् 1918 ई॰ के ‘बंबई प्राथमिक शिक्षा कानून’ के नाम से पास हुआ। इस कानून के अनुसार 7 वर्ष की उम्र से 11 वर्ष की उम्र के बालकों के लिए प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य तथा निःशुल्क कर दी गई। 1919 में बिहार, उड़ीसा, बंगाल, संयुक्त प्रांत तथा पंजाब में भी ‘प्राथमिक शिक्षा कानून’ पास कर दिया गया। इसी तरह के कानून 1920 ई॰ में मद्रास में 1923 में बंबई तथा 1925 ई॰ में आसाम में लागू किए गए। 1930-31 ई॰ तक प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने का कार्य अवाध रूप से चलता रहा। 1931 से 1937 के बीच हटांग कमिटी के निर्माण तथा स्थानीय बोर्डों की उदासीनता के कारण अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की प्रगति में धीमापन आ गया।


1937 से लेकर 1947 के बीच किए गए प्रयत्न

         

     सन् 1937 से लेकर 1947 के बीच अनिवार्य शिक्षा को कार्य रूप देने की अधिक प्रगति हुई। सिर्फ 1939 से लगातार 1944 के बीच द्वितीय विश्व महायुद्ध के कारण इसकी प्रगति में कुछ बाधाएँ आई। इस दशक में प्रगति के निम्न कारण हैं-

   (1)1937 ई॰ में देश में प्रांतीय स्वशासन की स्थापना की  गई और 11 प्रांतो में से 6 में कांग्रसी मंत्रीमंडल बने। प्रत्येक प्रांत में अनिवार्य शिक्षा को लागू किया गया।

   (2) महात्मा गाँधी ने अपनी बेसिक योजना का बीज-वपन इसी युग में किया तथा अपनी मातृभाषा के जरिए राष्ट्र के प्रत्येक बच्चे को अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने की सलाह दी।

   (3) सन् 1938 ई॰ में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में वर्धा योजना को स्वीकृत कर बिहार, उड़ीसा, संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत, बंबई इत्यादि में सरकारी तौर पर अनेक बेसिक स्कूल स्थापित किए गए।

   (4) सन् 1944 ई॰ में ’सार्जेंट योजना’ का निर्माण हुआ, जिसके अनुसार 6 से 14 वर्ष तक के बालकों के लिए अनिवार्य सार्वजनिक निःशुल्क बेसिक या प्राथमिक शिक्षा लागू करने की सिफारिश की गई। केंद्रिय सरकार ने इसे स्वीकृति प्रदान कर व्यावहारिक रूप देना शुरु किया।


स्वतंत्रता के बाद अनिवार्य शिक्षा के लिए प्रयत्न

         

      स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में सार्वजनिक शिक्षा पर अधिक बल दिया गया। भारतीय संविधान की 45 वीं धारा के अंतर्गत अनिवार्य निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने का उल्लेख किया गया। ज्यादा बल बेसिक शिक्षा पर दिया गया। प्रथम पंचवर्षीय योजना के अंत तक 6 से 11 वर्ष तक की उम्र के 50 प्रतिशत छात्रों को अनिवार्य शिक्षा की सुविधा प्रदान की गई।

            (भारतीय शिक्षा, उसकी समस्याएँ तथा विश्व की शिक्षा प्रणालियाँ, डाॅ हरिवंश तरुण, नयी दिल्ली-110002, 2011, पृष्ठ सं॰- 84-87)