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प्रोफेसर नारायणन कोमेराथ[संपादित करें]

प्रोफेसर नारायणन कोमेराथ ने एक नई तकनीक का विकास कराके न केवल वैज्ञानिक जगत मे तहलका मचाया, बल्कि साथ ही विदेशो मे एक बार फिर भारत का गॉरव बढाया। कोमेराथ के द्वरा विकसित तकनीक फोकस्ड यानि किसी एक दिशा को केंद्रित रेडियो तरंगो कि मदद से अंतरिक्ष में किसी भी उपकरण या वस्तु को धकेल कर किसी आपेक्षित या खास स्थिति तक ले जाया जा सकता है। इस तकनीक कि साहयता से अंतरिक्ष में भी ऐसी बड़ी संरचना निर्मित की जा सकेंगे। जहां अंतरिक्षयात्री विकिरण से सुरक्षित रह कर अपना काम व निवास दोनों ही कर पाएंगे।

यद्यपि इस्से पूर्व मनुष्य अंतरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में 'मीर' तथा 'इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन' जैसी विशाल संरचनाओ का निर्माण कर चूका है। इन्हें अंतरिक्ष यात्रियो ने अंतरिक्ष में ही चलते हुए निर्मित किया था, जो कि एक जोखिम भरा काम था। किन्तु कोमेराथ ने इस नई क्रांतिकारी तकनीक की खोज से अंतरिक्ष विज्ञान को एक नई दिशा प्रदान की।

जन्म एवं शिक्षा[संपादित करें]

वैज्ञानिक तकनीक में यह महान उपलब्धि प्राप्त करने वाले प्रो. नारायणन कोमेराथ। वे केरल में जन्मे और केरल के त्रिशूर में ही उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने आई. आई. टी.मद्रास से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बी. टेक. किया।

इसके बाद उन्होंने अटलांटा के जॉर्जिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में एम. एस. की शिक्षा प्राप्त की और 1982 में इसी संसथान से पी. एच. दी. भी पूरी की। उनकी रुचि शुरू से ही युद्धक सामग्री व जगहों में रही इसलिए उनके अधिकतर शोध इन्हीं विषयों पर हुए जैसे कि-लड़ाकू विमानों, हेलिकॉप्टरों, पैराफॉइल्स, लेज़र तथा स्पेस रीइंट्री व्हीकल्स आदि।

प्रो. कोमेराथ की पत्नी पद्म उत्तर अटलांटा की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में सीनियर इंजीनियर हैं। कोमेराथ ने भारतीय छात्रो के लिए मेहेंगी-मेहेंगी उन किताबो को अपनी टीम के सहायता से एक डिजिटल लाइब्रेरी बना कर उसमे डाला है ताकि भारत में अध्ययनरत एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के छात्र उन मेहेंगी किताबों को नेट पर पढ़ सकें, जिन्हें वे खरीद नहीं सकतें। यह डिजिटल लाइब्रेरी www.adl.gatech.edu पर उपलब्ध है।

क्रांतिकारी फोकस्ड तकनीक[संपादित करें]

अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में ही किसी संरचना के लिए उसके विभिन्न भागों को अंतरिक्ष में ही जोड़ना होता है। यह एक खतरनाक कार्य होता है क्योंकि जब कोइ सोलार फ्लेयर (सूर्य की विशाल लहर) पृथ्वी की ओर बढ़ती है तो वे भी इसका शिकार बनकर उसके विकिरण से ग्रस्त हो जाते हैं। प्रोफेसर कोमेराथ को अपने ही एक प्रयोग "एकॉस्टिक शेपिंग" से इसका आईडिया मिला।

उनके अनुसार अंतरिक्ष में विचरने वाल्के एस्ट्रॉयड जो कि बहुमूल्य खनिजों के भंडार होते हैं। यद्यपि अंतरिक्ष के वायुविहीन वातावरण में ध्वनि तरंगो का वातावरण निर्मित करना असंभव है। किन्तु एकॉस्टिक शेपिंग में प्रेरित होकर प्रो. कोमेराथ ने इलेकट्रोमैग्नेटिक्स वेव्स पर शोध किया। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि अंतरिक्ष में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स के प्रयोग से यदि एस्ट्रॉयड को विस्फोट से उदा दिया जाए तो रेडियो ट्रांस्मीटेरों से छोड़ी जाने वाली लंबी रेडियो तरंगो की मदद से एस्ट्रॉयड के मलबे को मनचाही संरचना में बदला जा सकता है। इन्हें जोड़ने के लिए सूर्य के फोकस्ड प्रकाश या किसी प्रभावी एडहेसिव को भी अंतरिक्ष में प्रयोग किया जा सकता हैं।

अपने इस शोध को उन्होंने नासा के इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड कंसेप्ट्स यानि 88 सदस्य विश्वविद्यालयों के थिंक टैंक "स्पेस रिसर्च एसोसिएशन" द्वारा आयोजित एक कांफ्रेंस में पढ़ा। उन्होंने भविष्य में इस तकनीक के प्रयोग की रूपरेखा भी प्रस्तुत की। उन्होंने सोलार ऊर्जा से चलने वाली रेडियो ट्रांस्मीटेरों के एक स्क्वॉयड को भी पृथ्वी की एस्ट्रॉयड बेल्ट में भेजने का सुझाव दिया ताकि एस्ट्रॉयड को विस्फोट में मलबे में बदलना जा सके। इससे अंतरिक्ष यात्रियों के लिए विकिरण से सुरक्षा देने वाली संरचनाओं का निर्माण करना संभव हो सकेगा।