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डेनिस स्वमी[संपादित करें]

डेनिस स्वामी का जन्म १९४३ को आन्ध्र प्रदेश में हुआ था । वे हमारे देश के सबसे प्रमुख मुक्केबाजी चैंपियनों में से एक थे। वे बहुत छोटे उम्र से लेकर मुक्केबाजी का प्रेमी थे । उन्हें मुक्केबाजी की कला का राजा कहा जाता है। एक मुक्केबाज के रूप में, वे बहुत कम उम्र से महत्वाकांक्षी थे। वे बहुत से युवा मुक्केबाजों को सलाह देना चाहते थे जो भविष्य में हमारे देश को गर्व महसूस कराएँगे। लेकिन इस असाधारण मुक्केबाज का जीवन आसान नहीं था। वे अपने जीवन में हमेशा अपनी अधिकारों केलिए लड़ते रहे । उनका जीवन अत्यंत कठिन रहा और वे आनेवाले मुक्केबाज़ों केलिए परिश्रम करते रहे । इसी प्रयत्न के कारन वे आठ बार मुक्केबाज़ी में देशीय चैंपियन रहे ।१९६१ से लेकर अगले ६ साल उन्हें ही मुक्केबाज़ी की पुरस्कार दिए गए थे । वे, १९६८ में, देश के कायिक रत्नों को पुरस्कृत करने वाले सब्ज़े बड़े पुरस्कार 'अर्जुना पुरस्कार' से सम्मानित हुए । पर फिर भी जितने पहचान उन्हें इस कला से मिलनी थी, वह उन्हें अपने जीवन में कभी भी नहीं मिली । अन्य अर्जुना पुरस्कार से सम्मानित मुक्केबाज़ों की तरह सर्कार की ओर से उन्हें कुछ भी नहीं मिले । इतने सारे पुरस्कारों से सम्मानित होने की बावजूद उन्हें सरकार की ओर से अलग खिलाडियों की तरह अधिक कुछ भी नहीं मिले । वे अपने जीवन में कभी ओलिम्पिक्स खेलने नहीं गए परन्तु १९६८ में देश की ओर से अर्जुना पुरस्कार दिए गए थे । उनका पहला जीत तब हुआ जब वे अहमदनगर मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप में चांदी का पदक जीत गए थे । यह जीत उनकेलिए बहुत महत्वपूर्ण थे क्योंकि इससे उनका हौसला बढ़ गए थे । आगे की मुक्केबाज़ी आजीवन केलिए यह बहुत ज़रूरी था । उसके बाद वे हैदराबाद के साउथ बॉयस बटालियन का भाग बन गए जिसमे सिर्फ  मुक्केबाज़ी ही नहीं बल्कि फुटबॉल ओर स्विमिंग में भी परिशीलन दिए जाते थे । सत्रह साल की उम्र में वे इसी बटालियन के कप्तान बन गए ओर यह उनके जीवन के सबसे बड़े खाड़ियों में से एक हैं । पर वह मैच खेलने केलिए बंगलोरे नहीं आ पाए क्योंकि उसी समय उनकी बेहेन की शादी पुणे में हो रही थी । इसी लिए वे फुटबॉल का खेल में ध्यान नहीं दे पाए । उसके बाद वे फुटबॉल खेले भी नहीं । इसी कारन वे फुटबॉल टीम से अलग हो गए ओर अपने बॉक्सिंग प्रशिक्षक को उन्हें भी अपने टीम में लेने की निवेदन किये । वे १९६१ में देशीय चैंपियनशिप जीतने के पहले कई स्थानीय चैंपियनशिप जीत चुके थे ओर इसलिए वे आंध्र प्रदेश में मशहूर हो रहे थे । अर्जुना अवार्ड से पुरस्कृत होने के बाद वे भारत के प्रतिनिधि बनकर एशियाई गेम्स में भाग लेने केलिए चुने गए थे । परन्तु अपने प्रशिक्षक ने उन्हें गेम्स केलिए जाने से रोक लिया था यह कहकर की वोह बड़े बड़े विश्व खिलाडियों से मुकाबला करने लायक परिसीलित नहीं थे । वे १९६४ के ओलिम्पिक्स केलिए भी चुने गए थे । उस वर्ष ओलिम्पिक्स जापान के महानगरी टोक्यो में होने वाले थे । पर किसी अनजान कारणों से उन्हें उससे निकल दिए गए जिससे वे बहुत उदास हो गए थे । सही समय सरकार के सही निर्णय की आभाव से उन्हें कही अवसर  नष्ट हो गए थे । फिर भी वे हार नहीं माने ओर अपने हकों केलिए लड़ते ही रहे । उनके जीवन का सबसे सुशोभित समय १९६८ ही रहे जब देश उन्हें अर्जुना पुरस्कार से सम्मानित किये जिसके बाद उनके मुक्केबाज़ी जीवन में ओर कुछ ख़ास नहीं हुआ । परन्तु हमेशा से ही उनका कहना यह था की उनके नगर हैदराबाद में कई बुलंद मुक्केबाज़ हैं जिन्हे प्रशंसा की ज़रुरत हैं ओर हमारे देश से यही एक हैं जो कभी भी नहीं मिलती । ऐसे बचे जो इस कायिक-कला रूप में माहिर हैं उन्ही  केलिए  वे  बाद का  जीवन में बहुत परिश्रम किए । उनका परिवार में पत्नी और तीन बच्चे हैं जिनमे से दो लड़के हैं और एक लड़की । वे आंध्र प्रदेश की स्पोर्ट्स अथॉरिटी में सालों कोच बनकर खिलाडियों को प्रशिक्षा दे रहे थे । वे भारत के सब्से मशूर मुक्केबाज़ों में एक हैं । २०१७ मई १६ को उन्हें स्ट्रोक आ गए थे । खराब स्वास्थ्य परिस्थितियों के कारण, वह उसी दिन निधन हो गए थे। मैरी कॉम जैसे प्रमुख मुक्केबाज़ खिलाडी उनके मृत्यु से बहुत दुखी थे । डेनिस स्वामी आंध्र प्रदेश की ही नहीं बल्कि पूरे भारत के सबसे मशहूर मुक्केबाज़ों में एक रहेंगे ।