सदस्य:Nirmaldas mankar/प्रयोगपृष्ठ

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                                                 "भोपाल का इतिहास"

भोपाल प्राचीन नाम भूपाल है भूपाल, भू+पाल भू = भूमि, पाल=दूध। एक दूसरा मत यह है कि इस शहर का नाम एक अन्य राजा भूपाल या (भोजपाल) के नाम पर पड़ा। समय गुज़रने के साथ यह शहर उजड़ गया। 18वीं सदी में यह स्थानीय [गोण्ड] राज्य का एक छोटा-सा गाँव मात्र था। वर्तमान भोपाल शहर की स्थापना [मुगल सल्तनत] के एक [अफ़्गानी] दोस्त मुहम्मद खान ने की थी। इसिलिए भोपाल को नवाबी शहर माना जाता है,आज भी यहाँ मुगल संस्कृति देखी जा सकती है। मुगल साम्रज्य के विघटन का फ़ायदा उठाते हुए खान ने बेरासिया तहसील हड़प ली। कुछ समय बाद [गोण्ड] रानी कमलापती की मदद करने के लिए खान को भोपाल गाँव भेंट किया गया। रानी की मौत के बाद खान ने छोटे से गोण्ड राज्य पर कब्ज़ा जमा लिया। 1720-1726 के दौरान दोस्त मुहम्मद खान ने भोपाल गाँव की किलाबन्दी कर इसे एक शहर में तब्दील किया। साथ ही उन्होंने [नवाब] की पदवी अपना ली और इस तरह से भोपाल राज्य की स्थापना हुई। मुगल दरबार के सिद्दीकी बन्धुओं से दोस्ती के नाते खान ने [हैदराबाद के निज़ाम] मीर क़मर-उद-दीन (निज़ाम-उल-मुल्क) से दुश्मनी मोल ले ली। सिद्दीकी बन्धुओं से निपटने के बाद 1723 में निज़ाम ने भोपाल पर हमला बोल दिया और दोस्त मुहम्मद खान को निज़ाम का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ा। [मराठा साम्राज्य|मराठाओं]ने भी भोपाल राज्य से [चौथ] कुल लगान का चौथा हिस्सा वसूली की। 1737 में मराठाओं ने मुगलों को भोपाल की लड़ाई में मात दी। खान के उत्तराधिकारियों ने 1818 में ब्रिटिश हुकुमत के साथ सन्धि कर ली और भोपाल राज्य [ब्रिटिश राज] की एक [रियासत] बन गया। 1947 में जब भारत को आज़ादी मिली, तब भोपाल राज्य की वारिस आबिदा सुल्तान [पाकिस्तान] चली गईं। उनकी छोटी बहन बेगम साजिदा सुल्तान को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया। 1949 में भोपाल राज्य का भारत में विलय हो गया। भोपाल शहर की कुल जनसंख्या (2011 की जनगणना के अनुसार) कुल 1795648 है। भोपाल जिले की कुल जनसंख्या 2368145 है। जिसमे करीब 56% हिन्दू, 40 % मुस्लिम हैं। पुरुषों की संख्या 1239378 तथा महिलाओं की संख्या 1128767 है। कुल साक्षरता 82.26 % है (पुरुष: 87.44%, महिला: 76.56%)।

        'लोक सभा-जनप्रतिनिधि’
  • भोपाल - श्री आलोक सन्जर (भाजपा)
      विधान सभा”-‘जनप्रतिनिधि’
  • बेरासिया - श्री विष्णु खत्री (भाजपा)
  • भोपाल उत्तर - श्री आरिफ़ अकी़ल (काँग्रेस)
  • नरेला - श्री विश्वास सारंग (भाजपा)
  • भोपाल द॰पू॰ - श्री उमा शंकर गुप्ता (भाजपा)
  • भोपाल मध्य - श्री सुरेन्द्र नाथ सिंह (भाजपा)
  • गोविन्दपुरा - श्री बाबुलाल गौर (भाजपा)
  • हुज़ुर - श्री रामेश्वर शर्मा (भाजपा)

“ महत्वपूर्ण व्यक्ति”

  • संभागायुक्त---श्री एसबी सिंह
  • उपायुक्त - श्रीमती उर्मिल मिश्र
  • उपायुक्त राजस्व - श्रीमती उर्मिला सुरेन्द्र शुक्ला
  • उपायुक्त विकास - श्री सी एल डोडियार
  • कलेक्टर---- निशांत वरवडे
  • सहायक जिलाधीश - श्रीमती शिल्पा
  • आयुक्त नगर निगम - श्री विशेष गढ़पाले

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         'भोपाल गैस काण्ड' 

भारत के मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर मे 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगो की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए। भोपाल गैस काण्ड में मिथाइल-आइसो-साइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था। मरने वालों के अनुमान पर विभिन्न स्त्रोतों की अपनी-अपनी राय होने से इसमें भिन्नता मिलती है। फिर भी पहले अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2,259 थी। मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 की गैस से मरने वालों के रुप में पुष्टि की थी। अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग तो रिसी हुई गैस से फैली संबंधित बीमारियों से मारे गये थे। 2006 में सरकार द्वारा दाखिल एक शपथ पत्र में माना गया था कि रिसाव से करीब 558,125 सीधे तौर पर प्रभावित हुए और आंशिक तौर पर प्रभावित होने की संख्या लगभग 38,478 थी। ३९०० तो बुरी तरह प्रभावित हुए एवं पूरी तरह अपंगता के शिकार हो गये। भोपाल गैस त्रासदी को लगातार मानवीय समुदाय और उसके पर्यावास को सबसे ज़्यादा प्रभावित करने वाली औद्योगिक दुर्घटनाओं में गिना जाता रहा। इसीलिए 1993 में भोपाल की इस त्रासदी पर बनाए गये भोपाल-अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को इस त्रासदी के पर्यावरण और मानव समुदाय पर होने वाले दीर्घकालिक प्रभावों को जानने का काम सौंपा गया था।

         ' पूर्व-घटना चरण'
सन १९६९ मे यू.सी.आइ.एल.कारखाने का निर्माण हुआ जहाँ पर मिथाइलआइसोसाइनाइट नामक पदार्थ से कीटनाशक बनाने की प्रक्रिया आरम्भ हुई। सन १९७९ मे मिथाइल आइसोसाइनाइट के उत्पादन के लिये नया कारखाना खोला गया।
         'स्थानीय समाचार पत्रों के पत्रकारों की रिपोर्ट':-
  नवम्बर 1984 तक कारखाना के कई सुरक्षा उपकरण न तो ठीक हालात में थे और न ही सुरक्षा के अन्य मानकों का पालन किया गया था। स्थानीय समाचार पत्रों के पत्रकारों की रिपोर्टों के अनुसार कारखाने में सुरक्षा के लिए रखे गये सारे मैनुअल अंग्रेज़ी में थे जबकि कारखाने में कार्य करने वाले ज़्यादातर कर्मचारी को अंग्रेज़ी का बिलकुल ज्ञान नहीं था। साथ ही, पाइप की सफाई करने वाले हवा के वेन्ट ने भी काम करना बन्द कर दिया था। सम्स्या यह थी कि टैन्क संख्या 610 मे नियमित रूप से ज़्यादा एमआईसी गैस भरी थी तथा गैस का तापमान भी निर्धारित 4.5 डिग्री की जगह २० डिग्री था।
         'गैस का निस्तार'
 2-3 दिसम्बर की रात्रि को टैन्क इ-610 मे पानी का रिसाव हो जाने के कारण अत्यन्त ग्रीश्म व दबाव पैदा हो गया और टैन्क का अन्तरूनी तापमान 200 डिग्री के पार पहुच गया जिसके तत पश्चात इस विषैली गैस का रिसाव वातावरण मे हो गया। 45-60 मिनट के अन्तराल लगभग 30 मेट्रिक टन गैस का रिसाव हो गया।
       ‘कार्बन मोनो-ऑक्साइड  गैस का बादल’
 ये विषैली गैसें दक्षिण पूर्वी दिशा मे भोपाल पर उड़ीं। वातावरण में गैसों के बादल के प्रभाव की संभावनाओं की चिन्ता आज भी चर्चा का विषय बना हुआ है। संभवत: मिक के उपरान्त गैस के बादल् मे फोस्जीन, हायड्रोजन सायनाइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, हायड्रोजन क्लोराइड आदि के तथ्य पाये गये थे।
       ‘कार्बन मोनो-ऑक्साइड’ गैस त्रासदी दुर्घटना के उपरान्त-
  इस त्रासदी के उपरान्त भारतीय सरकार ने इस कारखाने में लोगों के घुसने पर रोक दी, अत: आज भी इस दुर्घटना का कोइ पुष्ट् कारण एवम तथ्य लोगो के सामने नही आ पाया है। शुरुआती दौर मे सी बी आइ तथा सी एस आइ आर द्वारा इस दुर्घट्ना की छान-बीन करी गयी।
       ‘गैस त्रासदी दुर्घटना का स्वास्थ्य प्रभाव’

भोपाल की लगाभग 5 लाख 20 हज़ार लोगो की जनता इस विशैलि गैस से सीधि रूप से प्रभावित हुइ जिसमे 200000 लोग 15 वर्ष की आयु से कम थे और 3000 गर्भवती महिलाये थी, उन्हे शुरुआती दौर मे तो खासी, उल्टी, आन्खो मे उलझन और घुटन का अनुभव हुआ। 2259 लोगो की इस गैस की चपेट मे आ कर आकस्मक ही म्रित्यु हो गयी। 1991 मे सरकार द्वारा इस सन्ख्या की पुष्टि 3928 पे की गयी। दस्तावेज़ो के अनुसार अगले २ सप्ताह के भीतर 8000 लोगो कि म्रित्यु हुइ। मध्या प्रदेश सरकार द्वारा गैस रिसाव से होने वालि म्रित्यु की सन्ख्या 3787 बतलायी गयी है।

   स्वास्थ्य देखभाल

रिसाव के तुरन्त बाद चिकित्सा सन्स्थानो पर अत्यधिक दबाव पडा। कुछ सप्ताह के भीतर ही राज्य सरकार ने गैस पीडितो के लिये कइ हस्पताल एव चिकित्सा खाने खोले, साथ ही कइ नये निजि सन्स्थान भी खोले गये। भयन्कर रूप से पीडित इलाको मे 70 प्रतीशत से ज़्यादा कम पढे लिखे चिकित्सक थे, वे इस रसाय्निक् आपदा के उपचार के लिये सम्पूर्ण रूप से तैयार न थे। 1988 मे चालू हुए भोपाल मेमोरिअल हस्पताल एव रिसर्च सेन्टर को 8 वर्षो के लिये ज़िन्दा पीडितो को मुफ्त उप्चार प्रदान करा गया।

   'पर्यावरण पुनर्वास'

१९८९ मे हुई जाँच से यह जानकारी प्राप्त हुई कि कारखानें के समीप का पानी और मिट्टी मछ्लियो के पनपने के लिये हानिकारक है।

   ‘ आर्थिक पुनर्वास’

त्रासदी के 2 दिन के पश्चात ही राज्य सरकार ने राहत का कार्य आरम्भ कर दिया था। जुलाई 1985 मे मध्य प्रदेश के वित्त विभाग ने राहत कार्य के लिये लगभग 01 करोड़ 40 लाख डॉलर कि धन राशि लगाने का निर्णय लिया। अक्टूबर 2003 के अन्त तक भोपाल गैस त्रासदी राहत एव पुनर्वास विभाग के अनुसार 554,895 घायल लोगो को व 15310 मृत लोगों के वारिसों को मुआवज़ा दिया गया है।

यूनियन कार्बाइड कारखाने के विरुद्ध प्रभार ==

दुर्घट्ना के ४ दिन के पश्चात, ७ दिसम्बर १९८४ को यु सी सी के अध्य्क्ष और सी ई ओ वारेन एन्डर्सन की गिरफ्तारी हुई परन्तु ६ घन्टे के बाद उन्हे २१००$ के मामूली जुर्माने पर मुक्त कर दिया गया।

‘ Govt. & NGO's सक्रियता’-'आज भी गैस त्रासदी पीडितों के लिये मध्यप्रदेश सरकार एवं सम्भावना ट्रस्ट नामक संस्था का राहत कार्य.'

वर्ष 1984 के बाद से ही व्यक्तिगत सक्रियता वादियों ने अहम भूमिका निभायी है, जिनमें से महत्वापूर्ण योगदान रहा श्री सतिनाथ सारङी का जिन्होने पीडितों कि राहत के लिये सम्भावना ट्रस्ट नामक संस्था भी तैयार की।