सदस्य:Nikhil Antony

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                                                     केरल की संस्कृति 

परिचय[संपादित करें]

                    केरल की कला-सांस्कृतिक परम्पराएँ शताब्दियाँ पुरानी हैं । केरल के सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण योग देने वाले कलारूपों में लोक कलाओं, अनुष्ठान कलाओं और मंदिर कलाओं से लेकर आधुनिक कलारूपों तक की भूमिका उल्लेख्य है । केरलीय कलाओं को सामान्यतः दो वर्गों में बाँट सकते हैं - एक दृश्य कला और दो श्रव्य कला जिनमें दृश्य कला के अन्तर्गत रंगकलाएँ, अनुष्ठान कलाएँ, चित्र कला और सिनेमा आते हैं ।

महत्व[संपादित करें]

                     केरलीय रंग कलाओं को धार्मिक, विनोदपरक, सामाजिक, कायिक आदि भागों में विभक्त कर सकते हैं । धार्मिक कलाओं में मंदिर कलाएँ और अनुष्ठान कलाएँ सम्मिलित होती हैं । मन्दिर कलाओं की सूची लम्बी है । जैसे - कूत्तु, कूडियाट्टम, कथकलि, तुळ्ळल, तिटम्बु नृत्तम, अय्यप्पन कूत्तु, अर्जुन नृत्य, आण्डियाट्टम, पाठकम्, कृष्णनाट्टम, कावडियाट्टम आदि । इनमें  मोहिनियाट्टम जैसा लास्य नृत्य भी आता है । अनुष्ठान कलाएँ भी अनेक हैं । जैसे - तेय्यम, तिरा, पूरक्कलि, तीयाट्टु, मुडियेट्टु, कालियूट्टु, परणेट्टु, तूक्कम्, पडयणि (पडेनि), कलम पाट्ट, केन्द्रोन पाट्ट, गन्धर्वन तुळ्ळल, बलिक्कळा, सर्पप्पाट्टु, मलयन केट्टु  आदि । अनुष्ठान कलाओं से जुड़ा अनुष्ठान कला साहित्य भी है । 

निष्कर्ष[संपादित करें]

                     सामाजिक कलाओं में यात्रक्कलि, एष़ामुत्तिक्कळि, मार्गम कळि, ओप्पना आदि आती हे तो कायिक कलाओं में ओणत्तल्लु, परिचमुट्टुकळि, कळरिप्पयट्टु आदि आती हैं । केवल मनोविनोद को लक्ष्य मानकर जो कलाएँ प्रस्तुत की जाती हैं वे हैं - काक्कारिश्शि नाटक, पोराट्टुकळि, तोलप्पावक्कूत्तु, ञाणिन्मेल्कळि आदि । इन सबके अतिरिक्त आधुनिक जनप्रिय कलाओं का भी विकास हुआ है जो इस प्रकार हैं - आधुनिक नाट्यमंच, चलचित्र, कथाप्रसंगम्  (कथा कथन एवं गायन), गानोत्सव, मिमिक्रि आदि ।

संदर्भ[संपादित करें]

  1. https://hi.wikipedia.org/wiki/भारत_की_संस्कृति