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फ्रेडेरिक ग्रिफिथ:

फ्रेडेऱिक ग्रिफ़िथ
 फ्रेडेरिक ग्रिफिथ (१८७९-१९४१) एक ब्रिटिश जीवाणुतत्ववेत्त थे जिसके ध्यान महामारी विज्ञान और निमोनिया जैसे जीवाणु के ऊपर केंद्रित थे। जनवरी १९२८ में उन्होंने अपनी प्रयोग कि सूचना दी जो अब जीवाणु परिवर्तन के प्रदर्शनों मे सबसे व्यापक रूप में स्वीकार किए गए सिद्धांत है जिस्में एक जीवाणु साफ तौर पर अपने प्रपत्र और समारोह का परिवर्तन करने के बारे में बताया गया है। उन्होने कहा कि लोबार निमोनिया स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया से भी हो सकता है और यह जीवाणु एक तनाव से एक और अलग तनाव में बदल सकता है। यह अवलोकन एक अज्ञात बदलन अथवा परिवर्तन सिद्धांत या परिवर्तन कारक के लिये जिम्मेदार ठहराया गया था। यह बाद में डीएनए की केंद्रित भूमिका को दिखानेवाली पहली खोज रहे। सहयोगियों ने उसे शानदार लेकिन एकांतप्रिय के रूप में वर्णित् किया है। और वह अपने अनुसंधान को केवल कुछ पत्रों में प्रकाशित किया है।

प्रारंभिक जीवन:

 फ्रेडेरिक ग्रिफिथ के जनम इंग्लैंड के हेल में हुआ था। उनके भाई के नाम आर्तर स्टान्लि ग्रिफिथ थे। वह भी एक जीवाणुतत्ववेत्त थे। ग्रिफिथ ने लिवरपूल विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षण प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने लिवरपूल राँयल इन्फेरमरी जोसफ टाई प्रयोगशाला में काम किये थे।उन्होंने अपने ज्ञान को इस संस्थे में रहकर आगे बढाया। १९१० में ग्रिफिथ स्थानीय सरकार के बोर्ड द्वारा काम पर रखा गया था। ग्रिफिथ के जीवन चरित्र के पूरे जानकारी ज्ञात नही है क्योंकि वह एकांन्तप्रिय थे। ग्रिफिथ को अपने प्रयोग कि वजह से प्रसिद्धि मिले। 

ग्रिफिथ के प्रयोग:

आनुवंशिक सामग्री
 फ्रेडेरिक ग्रिफिथ के सिद्धांत में परिवर्तन को सचित्र किया है। परिवर्तन एक ऐसी प्रक्रिया है जो एक वस्तु से दूसरी वस्तु में बदलने के बारे में बताते है। जीवाणु के मामले में परिवर्तन कोशिका के बहिर्जात आनुवंशिक सामग्री अथवा डीएनए के कारण होते है क्योंकि डीएनए जीवाणु जैसी सरल कोशिकाओं से लेकर सारि जीवित वस्तुओं में होते है। 
 ग्रिफिथ निमोनिया के प्रति टीका बनाने कि खोज में थे क्योंकि बहुत सारे लोग इस बीमारी के वजह से मर रहे थे। उनके ध्यान न्युमोनोकोकाई के दो रूपों के ऊपर थे जो इस बीमारी के कारण थे। उन्होंने अपने प्रयोग के लिये जीवाणु कि नमूना को इस रोग से पीढित व्यक्थियों से लिया था। न्युमोनोकोकाई दो सामान्य रूपों में होते है- बिना चमक के (जिसको उन्होंने आर कहलाया) और चिकना (जिसको उन्होंने एस कहलाया)।एस रूप को उन्होंने विषमय माना जिसमें कैप्सूल होते है जो एक पाँलीसैक्राइड तह है। एस रूप के बाहरी तह में पेप्टीडोग्लायकन कोशिका दीवार होते है जो सारे जीवाणुओं में दिखाई देती है।ग्रिफिथ ने अपनी प्रयोग में चूहों को उपयोग किया था। उन्होंने इस एस रूप को चूहों में सूई लगाया और चूहों कुछ दिनों बाद निमोनिया के कारण मर गये थे। आर रूप के बाहरी तह में कैप्सूल नही थे और यह अविषमय थे जिसके कारण इस रूप से निमोनिया नही होते थे। उन्होंने आर रूप को भी चूहों में सूई लगाया। लेकिन चूहे जीवित रहे।
 ग्रिफिथ ने चूहों में गर्मी मारे एस रूप से सूई लगाया। और इस रूप से चूहों में निमोनिया नही हुई थी। जब गर्मी मारे एस रूप और आर रूप के मिश्रण से सूई लगाया चूहें निमोनिया के कारण मर गये। आर रूप किसी तरह एस रूप मे परिवर्तित हो चुके थे। उनके अद्भुत खोज यह थे कि अविषमय तह को विषमय तह के रूप में बदल सकते है। इस बदलाव अथवा परिवर्तन सिद्धांत को ग्रिफिथ के प्रयोग कहलाया जाता है। ग्रिफिथ अपने प्रयोग को भुत कम आय-व्यवक से किया था। लेकिन अपने प्रयोग के परिणाम बहु अद्भुत थे। 
ग्रिफिथ के खोज के प्रभाव:
 अमेरिका के सबसे प्रमुख न्यूमोकोकस विशेषज्ञों ओसवाल्ड एवरी जो न्यू याँर्क के राँकफेलर अस्पताल में थे उन्होंने प्रारंभ में कहा कि ग्रिफिथ के प्रयोग अपर्याप्त रूप में आयोजित किया गया है। बाद में राँकफेलर संस्थान के एक और प्रमुख विज्ञानी रेने दुबोस ने कहा कि ग्रिफिथ् के प्रयोग न्युमोकोकल प्रतिरक्षाविज्ञान के क्षेत्र में एक अद्भुत सिद्धांत है।एवरी के सहयोगी मार्टिन डावसन ने  ह ग्रिफिथ के प्रत्येक निष्कर्षों कि पुष्टि की है। 
 ग्रिफिथ के इस प्रयोग अलग अलग तरीकों में विज्ञानियों की मदद की है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चिकित्सा समुदाय के शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों को जीवाणु संक्रमण के इलाज के लिये और अधिक कुशल एंटीबायोटिक दवाओं को बनाने के तरीके खोजने के लिये इससे मदद मिली है। परिवर्तन विज्ञानियों को जीवाणुओं के उन उपभेदों के लिये नए उपचार खोजने में मदद कर सकते है जो वर्तमान के दवाओं के उपयोग को जवाब नही देती है।१९३१ में ग्रिफिथ ने तीव्र गलसुओं की सूच्ना और उसकी परिणाम, महामारी विज्ञान और जीवाणु विज्ञान के ऊपर अपनी विज्ञान को एक सह लेखक बनकर एक पत्र में प्रकाशित किया। फ्रेडेरिक ग्रिफिथ को अपने परिवर्तन के प्रयोग से जीवविज्ञान के इतिहास में एक मुख्य स्थान मिला। उनके प्रयोग के प्रभाव आनुवंशिकी विज्ञान में महत्वपूर्ण रहे। उनके सिद्धांत से अनेक जीवाणुतत्ववेत्ता को अपने ज्ञान आगे बढाने कि अवसर मिली थी। ग्रिफिथ के सिद्धांत के महत्व उनके जीवित समय में नही पहचाना गया था। उनके मरणोपरांन्त ही परिवर्तन प्रयोग कि महिमा प्रसिद्ध बन गये।
 ग्रिफिथ के प्रयोग के बाद एवेरी, मकलिओइड और मककार्टी, हर्षी और चैस जैसी प्रमुख वैज्ञानिकों को अपने प्रयोग से यह अहसास मिला कि डीएनए ही इस परिवर्तन के प्रमुख कारण है। इस अहसास के वजह से और दो वैज्ञानिकों- वाटसन और क्रिक को इस आनुवंशिक सामग्री अथवा डीएनए कि बनावट और इस डीएनए को भंडारणे कि क्रियाविधि के बारे में जानकारी मिली। ग्रिफिथ को डीएनए कि बनावट के बारे में जानकारी नहींथी। इसलिये उनके प्रयोग ग्रेगर जोहान मेंडल के आनुवंशिक विज्ञान के सिद्धांत के ऊपर निर्भर थे। जनन विज्ञान अभियांत्रिकी जिसमें डीएनए में बदलाव लाने का प्रयोग किया जाता है जो आज कि संसार में बहुत ही सामान्य बन चुके है, यह ग्रिफिथ के इस परिवर्तन के सिद्धांत के उपयोग करते है। ग्रिफिथ के प्रयोग को जीवविज्ञान में एक मुख्य स्थान होने के कारण उनके योगदान को कभी भूलना नही चाहिये।         

निधन:

 ग्रिफिथ के निधन १९४१ में  लंडन,इंग्लैंड के अपने प्रयोगशाला में द्वितीय विश्व युद्ध के समय विमानाक्रमण के कारण हुआ था। उनके मरण को अधिकतर ध्यान नही मिले थे।  

संदर्भ [1] [2] [3] [4]

  1. https://prezi.com/o314zoqr4bw1/frederick-griffith/
  2. study.com/academy/.../frederick-griffith-experiment-discovery-quiz.html
  3. www.nndb.com/people/495/000270682/
  4. https://en.wikipedia.org/wiki/Frederick_Griffith