सदस्य:Nand pant/प्रयोगपृष्ठ

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जयपुर जी हाँ इसे पिंक सिटी (गुलाबी शहर ) के नाम से पहचाना जाता है राजस्थान की राजधानी जयपुर अपने ऐतिहासिक और दर्शनीय स्थलों के रूप मैं मशहूर है यहां देखने लायक कई स्थल है कछावा राजपूत महाराणा सवाई जयसिंह द्रितीय द्वारा 1727 मैं इस नगर की स्थापना की गई थी जिन्होंने 1699 से 1744 तक इस नगर पर शासन किया पहले जयपुर की राजधानी आमेर हुआ करती थी जो जयपुर से 11 किलोमीटर दूरी पर है इसी आमेर शहर को 1592 मैं राजा मानसिंघ ने बनाया था जयपुर को बनाने से पहले महाराणा स्वाई जयसिंघ ने वास्तुकारों और शिल्पियों से नक्शा बनवाया था जयपुर को वास्तुकला को ध्यान मैं रखते हुए बनाया है जयपुर शहर को 9 खंडो मैं विभाजित किया गया हे 2 खंडो का उपयोग नगर इमारते और महल बनाने मैं किया गया है और 7 खंडो का उपयोग आम जनता के लिए किया गया है तो दोस्तों अब बात करते हे यहां के दर्शनीय स्थलों की मैं यहा आपको मैं कुल 20 दर्शनीय स्थलों के बारे मैं बताने जा रहा हूँ

  • आमेर का किला
  • जयगढ़ का किला
  • सिटी पैलेस
  • जंतर मंतर
  • सिसोदिया रानी गार्डन
  • जल महल
  • हवा महल
  • अल्बर्टहॉल म्यूजियम
  • नाहरगढ़ का किला
  • बापू बाजार
  • चोखी धानी
  • गलता जी
  • राज मंदिर
  • बिरला मंदिर
  • पिंक सिटी बाजार
  • झालाना लेपोर्ड कंज़र्वेशन रिज़र्व
  • सेंट्रल पार्क
  • गोबिंद देव जी मंदिर
  • वर्ल्ड ट्रेंड पार्क
  • भूतेश्वर नाथ मंदिर

  राजस्थान की यात्रा      [संपादित करें]

हेलो  दोस्तो स्वागत है मेरे आर्टिकल How to travel in India में दोस्तों देश वीदेसो  से लाखों सैलानी  हर साल भारत की यात्रा पर आते है क्योकि Udaipur is Famous For Traveling में अपने इस  आर्टिकल के द्वारा में आपको उदयपुर के शहरो की खुबसुरती और वहां के दरसनीय स्थलों के बारे में बताने जा रहा हू मेरे आर्टिकल के पहले चरण में आपको उदयपुर की यात्रा पर लेकर जा रहा हु राजस्थान राज्य में बसा एक छोटा सा शहर उदयपुर को महाराणा उदयसिंह द्वितीय दवारा बसाया गया था  राजपूत और राजपुताना रण बांकुरो के सोर्य और अदम्य साहस त्याग और बलिदान की  मिसाल उदयपुर समुंदर तल से २००० फुट की उचाई पर पहाड़ी पर १५५९ में बसाया गया  था उदयपुर को बसाने का कारण भी बड़ा ऐतिहासिक है पहले मेवाड़ की राजधानी चितौड़ हुआ करती थी जब चितौड़ पर मुगलों का शासन हो गया तब एक नई राजधानी के विकल्प के तौर पर इस शहर का निर्माण हुआ तीन तरफ झीलों से घिरा यह शहर अपनी ख़ूबसूरती से सैलानियों को अपनी और आकर्षित करता है इसीलिए इसे झीलों की नगरी और पूर्व का वैनिस भी कहते है  यहां कई दरसनीय स्थल है जिसके बारे में आपको बताऊंगा यहां देखने लायक udaipur pelece  है जैसे[संपादित करें]

  • जगनिवास पैलेस (लेक पैलेस )
  • सज्जनगढ़ पैलेस
  • सिटी पैलेस (महाराणा प्रताप महल )
  • विंटेज कार म्यूजियम
  • जगदीश मंदिर
  • दूध तलाई म्यूजिकल गार्डन
  • गुलाब बाग
  • सहेलियों की बाड़ी
  • एकलिंग जी मंदिर
  • नाथद्वारा मंदिर
  • जग मंदिर पैलेस बड़ा महल
  • शिल्पग्राम
  • नेहरू गार्डन
  • भारतीय लोक कला म्यूजियम
  • मंजी घाट
  • पिछोला झील
  • फतह सागर झील
  • उदय सागर झील
  • सवरूप सागर झील
  • जय समंद झील
  • बड़ा महल
  • आहड़ सभयता
  • गणगौर घाट
  • महाराणा प्रताप स्मारख
  • हल्दी घाटी  

जग निवास पैलेस[संपादित करें]

जग निवास पैलेस महल अब लेक प्लेस होटल के नाम से जाना जाता हे पिछोला झील पर ४ या ५ एकड़ मैं बना इस होटल मैं ८३ कमरे और कई सुइट्स बने हुए हे इसका निर्माण महाराणा जय सिंह ने करवाया था इस महल का निर्माण सफ़ेद पथरो से किया गया हे यह होटल अपने सैलानियों के लिए स्पीड बोट की सुविधा देता हे  जो सैलानियों को शहर से होटल पहुंचाती हे अपने पारम्परिक अथिति सत्कार के कारण इसे दुनिया मैं सबसे प्रिय होटल के रूप मैं जाना जाता हे यह होटल उदयपुर के सबसे महंगे होटलो मैं गिना जाता हे और यह हमेशा अपने सैलानियों और अपने अतिथि सत्कार के लिए खुला रहता हे[संपादित करें]

सिटी पैलेस

इस पैलेस का निर्माण महाराणा उदय सिंह जी द्वितीय दवारा सन १७२७ में करवाया गया अगर आप इस महल और महाराजा उदय  सिंह के बारे में जानना चाहते है तो आपको यहां की यात्रा जरूर करनी चाहिए इस महल की विशेसता यहां की रंग विरंगी तस्वीरें संग्रालय बाग बगीचे सुन्दर मुर्तिया दीवारों पर की गई नकासी और भित्ति चित्र आलीशान कमरे है  सफ़ेद संगमरमर से पिछोला झील के किनारे  बना यह पैलेस सैलानियों को काफी आकर्षित करता है ये हमेसा खुला रहता है यह आपको मेवाड़ के  प्राचीन इतिहास के बारे में जानने को मिलेगा एक बार आपको जरूर जाना चाहिए इस महल को देखने के लिए आपसे कुछ शुल्क लिया जायेगा

सज्जनगढ़ पैलेस

इस महल का निर्माण महाराणा सज्जन सिंह के द्वारा १९ वी शताब्दी में किया गया पहले यह एक बेधशाला थी  जो मानसून के बारे में जानकारी दिया करती थी बाद में इसका नाम बदल कर सज्जन गढ़ पैलेस किया गया पहाड़ो पर काफी उचाई पर बना यह पैलेस पर पहुँच कर आप पूरे शहर का नजारा ले सकते है और रात को टिमटिमाते तारों को देखने का अलग ही रोमाँच होता है और यह हमेशा खुला रहता है और यहां जाने का कोई शुल्क नहीं देना है

सिटी पैलेस

इस पैलेस का निर्माण महाराणा उदय सिंह जी द्वितीय दवारा सन १७२७ में करवाया गया अगर आप इस महल और महाराजा उदय  सिंह के बारे में जानना चाहते है तो आपको यहां की यात्रा जरूर करनी चाहिए इस महल की विशेसता यहां की रंग विरंगी तस्वीरें संग्रालय बाग बगीचे सुन्दर मुर्तिया दीवारों पर की गई नकासी और भित्ति चित्र आलीशान कमरे है  सफ़ेद संगमरमर से पिछोला झील के किनारे  बना यह पैलेस सैलानियों को काफी आकर्षित करता है ये हमेसा खुला रहता है यह आपको मेवाड़ के  प्राचीन इतिहास के बारे में जानने को मिलेगा एक बार आपको जरूर जाना चाहिए इस महल को देखने के लिए आपसे कुछ शुल्क लिया जायेगा

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जयगढ़ का किला और वो विध्वंसक तोप

जी हा दोस्तों How to Prepare For a Trip to India में आज आपको इसी किले और इसी तोप के बारे में औरयहां के इतिहास के बारे में जानकारी दुंगा तो चलिए पहले इस तोप के बारे में जान लेते है दोस्तों इस तोप का नाम है जयबाण तोप और यह दुनिया की सबसे विध्वंसक तोप है मुगलो के द्वारा बार बार हो रहे आक्रमण से बचने के लिए एक ऐसे शस्त्र की जरूरत थी जिससे मुगलो को ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा सके इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस तोप का निर्माण शुरू हुआ अब जानते है इस तोप के बारे में

इस तोप को महाराजा सवाई जयसिंह ने 1720 में बनवाया था इसका निर्माण इसी गढ़ के अंदर किया गया था पहले इसके सारे Part को हाथियों के द्वारा यहां लाया गया था बाद में इसे यही बनाया गया इस तोप का कुल वजन करीब  250 टन है इस तोप को सिर्फ एक ही  बार चलाया गया था सिर्फ टेस्टिंग के लिए इस तोप को चलाने में कम से कम 100 किलो बारूद इसके बैरल में भरा गया था और 100 फिट की बत्ती इस्तेमाल की गई इसमें से जो गोला निकला था वह जयगढ़ से 35 किलोमीटर दूर चाकसू नाम के गांव में गिरा था जहा यह गोला गिरा था वहा एक बहुत बड़ा गड्डा बन गया था जो बाद में एक तालाब बन गया इसी तालाब को गोलीमार तालाब कहते है

इस तोप के बैरल की लंबाई 20 फिट है इसका वजन है 50 टन इस तोप की पूरी लंबाई 32 फिट है जीस गाड़ी पर यह रखा है उस गाड़ी का वजन है करीब 200 टन इसे सिर्फ एक बार ही टेस्ट किया गया था जब इस तोप को स्टेण्ड करना था तो स्टेण्ड करने के लिए हाथियों का इस्तेमाल करना पड़ा और जहा से इसकी टेस्टिंग करनी थी वहा पर एक छोटा तालाब बनाया गया था 100 फिट बत्ती पर आग लगाने के बाद तोपची उस तालाब में कूद गया ताकि उसके साउंड से कोई क्षति न पहुंचे

दोस्तों जैसे ही यह चली इसने तालाब में कूदे व्यक्ति के कानो के पर्दो को भी डेमेज कर दिया और इस किले की दीवारों को भी नुकसान पहुंचाया और जिस गांव में यह गिरा उस गांव के सारे कच्चे घरो को भी घिरा दिया था इतना भयानक मंजर था इस तोप का इसके बाद इसे कभी नहीं चलाई गयी आप सोच सकते है की इस तोप की मारक क्षमता कितनी होगी जिसकी आवाज के दायरे में आने वाले व्यक्तिओ के कान के पर्दे डेमेज हो गए थे और इसके कम्पन से कच्चे घर गिर जाते थे इस बात का अंदाजा इसी से लग जाता है की जिस गाड़ी पर इसे रखा है उसका वजन 200 टन है उसके पहियों की उचाई 9 फिट है गाड़ी पर जैक की सहायता से इसकी मूमेन्ट करवाई जाती है

इस किले के अंदर  एक सस्त्रघर भी है जिसके अंदर राजा महाराजाओ के शस्त्र है जैसे बंदूके ,तीर कमान ,ढाल ,टोपी ,तलवारे ,और अन्य तोपे भी है जैसे

रणचंडी तोप और भैरवी तोप यह तोपे सवाई जयसिंह के शासन काल में बनाई गई

बदली तोप और मच्छ तोप ये तोपे मानसिंह के शासन काल में बनी थी

शेरजंग तोप यह तोप राजा विसन सिंह के शासन काल में बनी थी इसके अलावा यहां बाण जारी तोप भी है

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माउन्ट आबू[संपादित करें]

  अपने नाखुनो से खोद डाली पूरी नक्की झील अपने प्यार को पाने  के लिए  

दोस्तों मेरे इस आर्टिकल HowtoTravel in India में आज हम चलते है माउन्ट आबू राजस्थान गुजरात और सैलानियों के लिए गर्मियों के मौसम में सबसे ठंडा spot के रूप में माउन्ट आबू जाना जाता है यह उदयपुर से 165 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है माउन्ट आबू पहुंचने के लिए आपको बस और ट्रैन की सुबिधा लेनी होगी सतह से 1220 मीटर की उचाई पर बसा यह  माउन्ट आबू दर्श्नीय स्थलों के लिए जाना जाता है यहां से आप इन स्थलों को कैसे आसानी देख सकेंगे इसकी जानकारी में आपको अंत में दुगा आइये यहां के स्थलों की जानकारी लेते है

  • नक्की झील
  • गुरु शिखर
  • देलवाड़ा जैन (मंदिर)
  • टोड रॉक
  • अधर देवी मंदिर
  • गौ मुख मंदिर
  • क्रोकोडायल पार्क
  • ट्रैकिंग एंड कैम्पिंग
  • अचलगढ़ फोर्ट
  • वाइल्ड लाइफ सेंचुरी
  • सनसेट पॉइंट
  • शंकर मठ
  • ॐ शांति भवन
  • गवर्मेंट म्यूजियम
  • ऋषिकेश मंदिर वाटर फॉल
  • हनीमून पॉइंट
  • रघुनाथ मंदिर
  • ब्रह्म कुमारी पीस पार्क


नक्की झील

दोस्तों आपने हीर रांझा लैला मजनू की कहानी तो बहुत सुनी होगी मगर यह कहानी भी गहरे प्यार की कहानी है जो इसी झील में दफन हो गईं ये कहानी इस प्रकार हे की रसिया बालम नाम का एक सीधा साधा नौजवान जो अपने रोजगार और दो समय की रोटी के खातिर यहां आया था यहां रहते हुए उसे यहां की राजकुमारी से प्रेम हो गया इस बात का पता जब राजा को लगा तब राजा ने उसे बुलाया और उससे उसकी पुत्री और उनके प्यार के बारे में पूछा सारी बाते जानने के बाद राजा ने अपनी पुत्री का विवाह रसिया से करने की इजाजत दे दी पर एक शर्त रखी की मेरे महल के पास इस वीरान जगह को तुम्हे खोद कर एक झील का निर्माण करना होगा और ये कार्य तुम्हे बिना किसी औजार के करना होगा रसिया ने उनकी ये शर्त मान ली राजा ने तीसरी शर्त रखी की तुम्हे एक रात में यह कार्य करना होगा और रसिया शर्त को मान गया और काम में जुट गया और अपने नाखुनो से सारी झील खोद डाली रात के तीसरे पहर में जब वह अपने शर्त को पूरी करने जा रहा था तभी रानी ने मुर्गे की आवाज में बांग लगा दी रसिया को लगा की वह शर्त हार गया है जब उसे रानी का सडयंत्र का पता चला तब उसने रानी को श्राप दे दिया जिससे रानी पथर की हो गई रानी नहीं चाहती थी की उसकी पुत्री का विवाह उस गरीब रसिया से हो इस लिए उसने यह सडयंत्र रचा रसिया भी यह वचन पूरा न कर पाने के कारण अपने आप को श्राप देकर पथर का बन गया जब राजकुमारी को यह पता चला तो वह भी पथर की बन गयी तो ये थी इनकी प्यार की कहानी दोस्तों इतिहास में नहीं पर आज भी उस गांव और उस जगह पर उनकी यह कहानी सुनने को मिलती है और वही पर इनके नाम का मंदिर भी है जहा कई प्रेमी जोड़े उन्हें श्रद्धा के फूल चढ़ाते है और मन्नत मांगते है कुवारी कन्या के नाम से यह मंदिर प्रसिद्ध है सुहागिने अपने सुहाग की लम्बी उम्र की कामना में यहां पूजा करती है

  • इसे आप किसी भी समय देख सकते है इसका कोई शुल्क नहीं

गुरु सिखर माउन्ट आबू

समुद्र तल से 1722 मीटर की उचाई पर और माउन्ट आबू से १५ किलोमीटर की दुरी पर स्थित है यह माउन्ट आबू का सबसे ऊचा शिखर है इसीलिए Mount Abu Weather हमेसा ठंडा रहता है यहां जाने पर आपको यह एहसास होगा की आप एवरेस्ट पर पहुंचे है यहां से आप माउन्ट  आबू का पूरा दृश्य देख सकते है यहां पर एक मंदिर है जो मूल दत्रा तेय के नाम से जाना जाता है इस मंदिर में एक घंटी लगी है जिसे 1411 ईस्वी की बताते है इसे बजाना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है इसी जगह पर एक रिसर्च लेबोरटरी भी बनी है

  • इसे देखने का समय सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक है और इसमें प्रवेस शुल्क नहीं लगता है

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दोस्तों आज हम कुम्भलगढ़ के बारे में जानेगे किसने इसे बनाया क्या है इसका इतिहास कोनसी घटनाओ का यह केंद्र बिंदु था क्यों इसे सभी दुर्गो में दूसरा स्थान प्राप्त है आईये जानते है कुम्भलगढ़ के इतिहास के बारे में

जी है दोस्तों यह कुम्भलगढ़  किला Udaipur to Kunbhalgarh Distance 70 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है अरावली पर्वतमालाओं के बिच घिरा हुआ है यह किला

सतह से 1100 सौ मीटर की उचाई पर बना हुआ है यह किला इस किले को 2013 में युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है

कुम्भलगढ़ किला कई ऐतिहासिक घटनाओ का प्रत्यदर्शी रहा है अब बात करते है इतिहास की

महल में प्रवेस करने के लिए आपको टिकिट (शुल्क ) लेना पड़ेगा कार पार्किंग का शुल्क अलग से देना होगा

मौर्य सम्राट  के दूसरे पुत्र सम्पति ने ईसा से 200 वर्ष पहले यही पर एक दुर्ग बनाया था जहा आज कुम्भलगढ़ का किला स्थित है सम्पति जैन धर्म का अनुयाई था प्राचीन जैन मंदिरो के अवसेष आज भी मौजूद है महाराणा कुम्भा के शासन काल में यह दुर्ग एक खण्डर के रूप में मौजूद था महाराणा कुम्भा ने अपने शिल्पकार मंडन के निर्देशानुसार इस किले का निर्माण करवाया गया

1428 में कुम्भा ने इस किले की प्रतिष्ठा करवाई और 1443 में इस किले का निर्माण पूरा किया गया आइये जानते है इस किले की विशेस्ताओ के बारे में

इस किले में कुल 7 दरवाजे है 36 किलोमीटर लम्बी चौड़ी और गोलाई में बनी दीवारे चीन की दीवारों का स्मरण करवाती है

15 फीट चौड़ी इस किले की दीवारे जिस पर पाँच घुड़सवार एक साथ चल सकते है इसलिए इसे दुनिया की सबसे बड़ी दीवार कहा गया है किले के अंदर जाने पर आपको 350 से 400 तक मंदिर देखने को मिलेंगे इनमे सबसे ज्यादा प्राचीन जैन मंदिर है बाकी सब और देवी देवताओ के मंदिर है इस किले के अंदर शिल्पकला और वास्तुकला का मिश्रण आपको देखने को मिलेगा जैसे

कुम्भ महल

यह महल राजपूत वास्तुकला का सुन्दर उदाहरण है इसमें एक सुन्दर नीला दरबार है यह दो मंजिला इमारत बहुत सुन्दर लगती है

बादल महल

1885से 1930 ईस्वी में निर्मित यह सबसे उचाई पर स्तिथ दो मंजिला इमारत है इसमें कई रंगो का चित्रण किया गया है महाराणा फतेहसिंह द्वारा इसका निर्माण किया गया था  

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दोस्तों आज में आपको मेहरानगढ़ के किले के बारे में कुछ जानकारी देना चाहुगा जोधपुर का यह मेहरानगढ़ किला कुतुबमीनार से भी ऊचा है यह किला कई किलोमीटर दूर से भी देखा जाता है राव जोधा के पिता राव रणमल के मोत के बाद जोधा को अपने राज्य से अलग होना पड़ा राणा रणमल के आदेश से ही वहा का राज्य चलता था वहा के कुछ सरदारो को राणा रणमल का शासन अच्छा नहीं लग रहा था तब मेवाड़ के राजा कुम्भा और उनकी माता सौभाग्य देवी को शिकायत करके भड़काया और साजिश के तहत गहरी नीद में सोये हुए राणा रणमल की हत्या कर दी गई

मेहरानगढ़ की दिवार

राणा रणमल की हत्या के बाद राव जोधा को अपने राज्य से हाथ धोना पड़ा राव जोधा ने एक पहाड़ी पर एक दुर्ग बनाने के बारे में सोचा और इस दुर्ग को 1459 ईस्वी में बनाना शुरू किया जब राजा दुर्ग निर्माण के लिए इस पहाड़ी पर पहुंचे तो उन्होंने बकरी को बाघ से लड़ते हुए देखा इस पहाड़ी पर उन दिनों शेरो की काफी गुफाये थी यह सब अपनी आखो के सामने देखकर राजा ने यही दुर्ग बनाने का निर्णय लिया

मेहरानगढ़ का भीतरी दृश्य

इस पहाड़ी पर चिड़ियानाथ नाम के एक तपस्वी पुरुष रहते थे उनके आश्रम के पास ही एक बहुत बड़ा पानी का तालाब था राजा राव जोधा ने उनको अपना स्थान परिवर्तन करने को कहा वे गुस्सा होकर वहा से चले गये और राव जोधा को श्राप दे गए जिस पानी की वजह से मुझे निकाल रहे हो उसी पानी के लिए आप तरस जाओगे काफी समय तक जोधपुर में पानी की किल्लत रही दुर्ग बनाने के बाद राव जोधा ने साधु की कुटिया के पास एक तालाब और एक शिव मंदिर की स्थापना की इस दुर्ग में देखने लायक ऐतिहासिक धरोहर आपको देखने को मिलेगी आइये एक नजर डालते है मेहरानगढ़ के किले में

यहां देखने लायक जो खास है वह है

इस किले प्रवेस करने का टिकिट आपको लेना होगा स्टूडेंट की आई डी पर डिस्काउंट मिल जाता है

  • फूल महल
  • शीश महल
  • मोती महल
  • सिलेह खाना
  • दौलत खाना

जोधपुर का फूल महल

यु तो मेहरानगढ़ दुर्ग में आठ दरवाजे है जो इसके बाहरी दीवारों पर है और जीत के प्रतीक है दुर्ग के अंदर चार दरवाजे है इन्ही दरवाजो से दुर्ग के अंदर प्रवेस किया जाता है अंदर जाने पर हमे एक महल दिखेगा इसी को फूल महल कहते है फूल महल का निर्माण महाराजा अभय सिंह ने किया था जिन्होंने 1724 से 1749 तक शासन किया था फूल महल जो मारवाड़ के राजाओ का वैष्ण्व धर्म के प्रति आस्था का प्रतीक रहा है इस महल में दरबार भी सजते थे और महफिले भी सजती थी इस लिए इसे नृत्य कक्ष भी कहा जाता है इस महल की छत इतनी आकर्सण है की देखने वाला एक टक देखते रह जाता है इस महल की छत पर आकर्सक फूल पत्तियां और राजपूती सदस्यों और लोगो के चित्र बने है और कुल देवी की मूर्ति और अन्य देवताओ के चित्र भी बने हैं इस महल की कारीगरी और इसकी छतो पर किया गया कार्य और इसकी ख़ूबसूरती सैलानियों को अपनी और आकर्षित करती है  

शीश महल  

इस महल में शीशे का बहुत बारीकी से कारीगरी की है किसी कारणवश इस महल में पर्यटकों का प्रवेस और   देखना बंद कर दिया गया है इसकी छतो पर राजस्थानी कलाकिर्ति का अच्छा वर्णन किया गया है रोशनी में यह काफी सुन्दर और चमकदार दीखता है

मोती महल

इसका निर्माण सवाई राजा सुरसिह ने करवाया था इसमें सोने से काफी सुन्दर नकासीदार कार्य किया गया है कही कही पर शीशे भी जड़े है सबसे पुराना महल होने के बाबजूद आज भी काफी अच्छी अवस्था में है इस की दीवारों को चुने प्लास्ट से मिलाकर बनाई गई है जो आज भी काफी सुन्दर और चमकदार है  

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आज आपको जैसलमेर के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी देने जा रहा हु जैसलमेर रियासत का इतिहास दोस्तों इस किले को सोनार का किला भी कहा जाता है पिले बलुआ पथरो से बना होने के कारण ये सोने की तरह चमकता है इसलिए इसे सोनार का किला कहते है यह सूर्यास्त के समय सोने की तरह चमकता है भाटी राजपूत शासको के कारण जैसलमेर भाटी वंशावली बना रहा जैसल द्वारा त्रिकुटा की पहाड़ी के बिच 1156 ईस्वी में इसका निर्माण किया गया था जो जैसलमेर के राजा थे यह किला जैसलमेर का प्रमुख आकर्षण का केंद्र है इसके अलावा यहां पर कई सुन्दर हवेलिया भी बनाई गई है वैसे तो यह क्षेत्र मरुस्थलीय है पर यहां इन क्षेत्रो में बनाए गए ये किले नुमा महल सोचने पर विवश कर देते है जैसलमेर का नाम राजपूत शासक रावल जैसल के नाम पर रखा गया है इस किले के अंदर सुन्दर झरोखे बने है जिससे रानिया बाहर की होने वाली गतिबिधियो को देखा करती थी इस किले के अंदर राजा महाराजा के अस्त्र शस्त्र भी मौजूद है

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