सदस्य:Mukesh kinnar

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[“ये है झारखण्ड नगरिया तू लूट बबुआ”यहाँ सोने चांदी के अनेकों खजाना , जितना चाहे दोनों हाथ से तू लूट बबुआ। जी हाँ ,चौंकिए मत। ये झारखण्ड राज्य है । हर तरफ़ लूट ही लूट । कोई जंगल लूट रहा है। कोई जमीन लूट रहा है। कोई पठार-पर्वत लूट रहा है तो कोई नदी लूट रहा है। सरकारी योजनाओं की लूट तो यहाँ के लूटेरों के लिए ऊंट के मुँह में जीरा के फोरन के समान है। इससे उसके होटल -सोटल का खर्चा-पानी भी नहीं निकलता है। कहने को ये जंगल-झार है लेकिन अंग्रेजो के जमाने से ही एक नामी लूट केन्द्र रहा है। आजादी के बाद से साहेब लोग एक जेब राजधानी दिल्ली में भरकर लूटते थे तो दूसरी जेब राजधानी पटना में भरकर।

इधर जब से बिहार से अलग होकर बेचारा निरीह झारखंड राज्य बना है तबसे लूटेरों ने इसे अपने बाप का राज समझ लिया है। यहाँ के लोग आज कायम लूट राज का ठीकरा भले बाहरी तत्बों के सर तोरते है लेकिन, आज की तारीख में सच्चाई यह है कि आदिबासियों के आधुनिक विकास के नाम पर पृथक इस झारखण्ड राज में आदिवासियों का सबसे बरा शोषक एक आदिवासी ही उभरकर सामने आया है। मरांडी,मुंडा ,सोरेन हो या मधु कोरा । हमाम में सब नगें हैं। इनके बंधू तिर्की ,एनोस एक्का ,हरिनारायण राय सरीखे चेले तो गुरू गुर तो चेला चीनी बन गए हैं। सुदेश,चंद्रप्रकाश,कमलेश,शाही,साहू आदि सब एक पर एक हैं। भारत सरकार के कबीना मंत्री एवं राजधानी के सांसद सुबोध कान्त सहाय के एक लगाओ सौ पाओ की राजनीति से सब वाकिफ है। जोर-घटाव -गुना-भाग में ये बहुत माहिर हैं। हार में भी जीत निकाल लेतें है। सुरुआती दौर में प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में जारी लूट राज पर नकेल कसने की कोशिश की तो लूटेरो ने उनकी राजनीति की नरेटी दबा दी।आज लूट राज पर चीखें जा रहे हैं लेकिन उनकी आबाज किसी के कान में भी नहीं जा रही है। इसके बाद अर्जून मुंडा लूटो-लूत्वाओ और राज करो की नीति तो अपनाई तो जरूर ,हाथ-पैर सबसे लूटने वालों ने उन्हें. भी दरकिनार कर दिया और मधु कोरा को अपना मुखिया चुन लिया. भागी बीबी घर बापस आई सरीखे उपलब्धि पाने इस साहेब के राज में लूटेरों ने कुऊब छककर मधु पीया। वे अपना खुमार उतारने के लिए तैयार नहीं थे। दिशोम गुरू शिबू अपनी इच्छा के मुताबिक सता-सुख भोगा भी नही की लूटेरों की फौज दीवार बन गई। शायद उन लोगों को यह भय था की यदि गुरूजी की सेहत सुधरी तो उनकी सेहत ख़राब होने लगेगी। महामहिम राज्यपाल रजी का राज भी कम निराला नही था। इनके राज में लूटेरों को लूटो की प्रथा कायम हो गई। वर्तमान 'शंकर' नारायण की महिमा तो और निराली है।इनकी मानसिक स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की इन्होने अपना पदभार संभालते ही सनसनीखेज बयान दिया । इनका नापा तूला बयान् है की झारखण्ड प्रान्त में जारी भीषण उग्रवाद सिर्फ़ बेईमान अफसरों व नेताओं को निशाना बनाते रही है भविष्य में भी वे ऐसे ही तत्वों का सफाया करेगी। मानो उग्रवादियों ने एकजूट बैठक कर अपना भूत और भविष्य उनके समक्ष इमानदारी से रख दिया हो । अब इस 'शंकर' नारायण को कौन बताये की प्रान्त में समानांतर सर्हार चला रहे कुख्यात उग्रवादियों के शिकार सैकरों नेताओं ,अधिकारियों के अलावे हजारों राज्य पुलिस-भारतीय सेना के जवान भी हुए है। क्या महामहिम सप्रमाण बता सकते हैं की क्या ये सारे शहीद वेईमान और भ्रष्ट थे?

ये झारखंड प्रधान के प्रधान है !! जी हाँ ये भारतीय क़ानून है। इसे किसने लिखा ? बाबा आंबेडकर साहेब ने / गांघी जी ने /नेहरू जी ने या फ़िर हमारे राजेन्द्र बाबू ने । जिसके तहत झारखण्ड में ये नजारा दिख रहा है। केन्द्र सरकार ने ग्रामीण पंचायती राज्य व्यवस्था के तहत विकास कार्यों के मजबूती के लिए सारे अधिकार ग्राम प्रधानों को सौंप दी है । समूचे प्रांत में प्रधान के सारे पद अनुसूचित जाति जन जाति के लिए आरक्षित कर दी है। एक सर्वेक्षण के अनुसार करीव 35% प्रधान असिक्षित है । ७८ % से अधिक ग्राम प्रधान हरिया-दारू-गांजा-भांग जैसे दिमागी संतुलन ख़राब करने वाली नशा करते है। करीव ९२% ग्राम प्रधानो को विकास योजनाओं की सही जानकारी नहीं है । वामुश्किल एक-दो % से इतर लूट-खसोंट में संलिप्त हैं। आधे से अधिक प्रधान ग्रामीणों की की बैठक सुचारू ढंग से नही करते और सरकारी अधिकारियों से कभी कभार ही बातचीत कर पाते हैं। उक्त सर्वेक्षण में इस तरह के कई संवेदनशील तथ्य उभरकर सामने आई है। उल्लेखनीय तत्थ है कि झारखण्ड प्रांत में करीव ३७% आबादी अनुसूचित जाति जन जाति की है, वही ८३% आबादी उन लोगों की है जिसे शाशन प्रसाशन मूलवासी मानता है या बाहरी।

बिहार में एन डी ए की चुनावी हार क्या है? वाकई नीतिश का कुनबा फेल हो रहा है या वे इस अप्रत्यासित हार में अपनी भावी जीत का जश्न मना रहा है? राष्टीय राजनीति विश्लेषक इन दिनों इस सबाल का जबाव पाने के लिए राजधानी पटना के गलियों को सूंघते फ़िर रहे है । आख़िर पिछले चुनाव में अपनी विकासपरक छवि के बल लालू - पासवान के साथ कांग्रेस की नकेल कसने वाले नीतिश दो तिहाई सीटो के अन्तर से कियों पीछे हो गए । सुच पूछिये तो लोजपा के सुप्रीमो रामबिलास पासवान को उन्ही के मांद में शिकस्त देने और बीस साल तक छाती पर मुंग दल कर राज कराने का दंभ भरने वाले लालू प्रसाद को पाटलिपुत्र जैसे यादव बहुल सीट पर पटकनी देकर नीतिश ने यह संदेश दिया था कि जो बिहार को राष्ट्रीय मानचित्र पर अपनी प्रदूषित छवि में चमक भर सके। गत १७ सितम्बर को १८ सीटो के आए चुनाव परिणाम में नीतिश की पार्टी ज द यू को मात्र ३ सीटो पर ही संतोष करना परा । उधर काग्रेस और नीतिश सरकार पर साझा आक्रामक तेवर अख्तियार करते हुए लालू-पासवान ने ९ सीटो पर पतह हासिल कर ली। बेशक ये जीत लालू-रामविलास की जोरी को एक नई स्फूर्ति प्रदान करेगी। अब सबाल उठाता है कि क्या लालू का सितारा फ़िर बुलंद होगा? प्रदेश में फ़िर वही ---राज कायम होगा? यदि इस सबाल का जबाव गहनता से ढूढने पर जिस तरह के कूटनीति सामने आती है वे 'तीर' कांग्रेस को छेड़ती नजर आती है । नीतिश नही चाहते है कि काग्रेस बिहार में फ़िर से ८० के दशक जैसा जनाधार बना ले। इसी रणनीति के तहत नीतिश ने अपने 'बिग ब्रदर ' लालू दल को संजीवनी दिया है। लालू भी यह मान लिया है कि वे नीतीश राज का बिरोध कर अब भले ही बिहार सुख न भोग सके , इतना तो अवश्य होगा की दमदार राजनीति बरकरार रहेगी। उधर नीतीश को अब लालू - पासवान से कोई ख़तरा नजर नही आती है । उन्हें लगता है की उनकी सरकार को जब भी धक्का लगेगा तो कांग्रेस से। सोनिया की खुली और राहुल की राजनीति में दमदार उपस्थिति से कांग्रेसियों में इक नई ऊर्जा का संचार हुआ है। नीतिश के सहयोगी भाजपा भी लालू-पासवान से अधिक कांग्रेस पर नजर रखना चाहती है ।


इन दिनों झारखण्ड की एक इलेक्ट्रोनिक चैनल ३६५ दिन और प्रसिद्ध हिन्दी दैनिक प्रभात खबर के बीच चल रही तू तू -मै मै हाथापाई तक पहुंच गई है । चैनल की उम्र जहाँ ८ माह है , वहीँ अखबार की उम्र २५ साल से ऊपर है । प्राप्त जानकारी के अनुसार चैनल ने एक कथित वित माफिया 'नारनोलिया' के धोखाधारी के मामले को जबसे प्रमुखता से प्रसारित करना शुरू किया है तो पुलिश प्रशासन के साथ अखबार के प्रधान सम्पादक श्री हहिबंश ने ब्याक्तिगत तौर पर अपने संपर्को और अखबार के मार्फ़त भारी दबाब डालने hहै। इसकी एक और बजह यह है की चैनल ने एक सार्वजनिक भूमि हथियाने का एक मामला प्रसारित किया है जिसमे हरिवंश की प्रमुख भागीदारी बताई गई है । श्री नारनोलिया के इस शिकायत पर राजधानी रांची के एस पी प्रवीण कुमार ने चैनल सम्पादक को आरेस्ट करने का आदेश दिया है। ये अलग बात है की चैनल चैनल के इरादे भी कुछ नेक नजर नही आते । सूचना जारी करने तक चैनल के प्रमुख सारे प्रकरण की उच्स्त्रीय जांच की मांग को लेकर होटवार जेल में बंद भूख हर्र्ताल में अपने जमानत का इन्तजार कर रहें हैं ।