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== “राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव की उन्नति लिखित विवरण” मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र, रीवा का प्रतिष्ठा आयोजन ==


विन्ध्य में रंगमंच की अपनी सुदीर्घ परंपरा है| विन्ध्य प्रदेश की राजधानी रही रीवा| जहाँ वर्ष 1903 में विन्ध्य प्रदेश के महाराजा वेंकट रमण सिंह जू देव के समय में सैनिक रंगमंडल रंगमंच कर रहा था उन 15 वर्षों में 21 नाटकों का मंचन किया गया साथ ही पृथ्वीराज कपूर साहब ने रीवा में अपने नाटको का मंचन किया था| इसी परंपरा का निर्वाहन मण्डप पिछले 10 वर्षो से अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से कर रहा है संस्था के नाटको में मनुष्य के अस्तित्व उसके दर्शन एवं मानवीय संवेदनाओं के var}Zn को सहजता एवं दृढ़ता पूर्वक प्रस्तुति को नया कलेवर प्रदान करना है| इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर हमने प्रथम राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव की परिकल्पना की| मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र के लिए नाटक करना शौक नहीं बल्कि “अभियान” है| रीवा में मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र ने रंगमंच के क्षेत्र में ज्यादा स्थान घेरा है| प्रथम राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव की व्यवस्था सुचारूरूप से हो सके इसके लिए सर्वप्रथम नाट्योत्सव समिति का निर्माण किया गया जिसमें संरक्षक डॉ॰ दिनेश कुशवाहा (साहित्यकार), श्री जयराम शुक्ला (वरिष्ठ पत्रकार), श्री देवेन्द्र सिंह (चेयरमैन, महाराजा ग्रुप) डॉ॰ चन्द्रिका प्रसाद ‘चन्द्र’ निश्चित हुए एवं अध्यक्ष-श्री अशोक सिंह सचिव-विनोद कुमार मिश्रा, सहसचिव-राज तिवारी भोला, संयोजक-के.सुधीर, एवं विशेष मार्गदर्शन मनोज कुमार मिश्रा (भारतेन्दु नाट्य अकादेमी) एवं योगेश त्रिपाठी(साहित्यकार) को तय किया गया|

रीवा देश का ऐसा शहर है जिसमें सभागार नहीं है परन्तु संस्कृति विभाग, भारत सरकार के सहयोग से आयोजित प्रथम राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव का शुभारम्भ 20 दिसंबर को शाम 6:30 बजे मध्यप्रदेश शासन के खनिज, जनसंपर्क एवं उर्जा मंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल ने स्वयंबर विवाहघर में नगाडे को ध्वनित एवं दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया| प्रथम 05 दिवसीय राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव में भारतीय बोलियों के रंगमंच को बढ़ावा दिया गया नाट्योत्सव में लोककलाओं के समावेष के साथ ही बोलियों के रंगमंच में हो रहे नए प्रयोग को भी महत्त्व दिया गया है| प्रथम राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव के पहले दिन 20 दिसंबर को ‘नाटक-छाहुर’ मंचित हुआ जिसका निर्देशन किया था छाहुर गुरू आनन्द मिश्रा ने| छाहुर नाटक बघेली लोककथा पर आधारित ‘बघेली बोली’ में है| नाटक का प्रमुख पत्र छाहुर है और उसके इर्दगिर्द ही कथा का प्रसार है| नाटक में दासों के द्वारा ज़मींदारों के खिलाफ उठ खड़े होने को मूर्त किया गया है| दूसरे दिन 21 दिसंबर को ‘मौसा जी जयहिन्द’ का मंचन वसंत काशीकर के निर्देशन में विवेचना जबलपुर की प्रस्तुति हुई| यह प्रस्तुति ‘बुन्देली बोली’ और परिवेश में की गयी| नाटक उदयप्रकाश की कहानी मौसा जी पर आधारित थी| मौसा जी किस्सा सुनाते है| उन्होंने अपने आसपास एक झूठा संसार स्थापित कर लिया है जैसा की आजकल तकरीबन सबने ही कर रखा है| परन्तु समाज उन्हें यथार्थ से परिचय करा ही देता है| तीसरी शाम 22 दिसंबर को ‘थैंक्यू बाबा लोचनदास’ का मंचन बुन्देली बोली में रंगदूत सीधी के द्वारा प्रसन्न सोनी के निर्देशन में हुआ| नाग बोडस के नाटक में नर-नारी संबंधों की पेचीदगी को समझने का प्रयास उलझन ही बढाती गयी, नाग बोडस का बहुत ही प्रसिद्ध नाटक है| प्रसन्न सोनी को संस्कृति विभाग, भारत सरकार के द्वारा जूनियर फेलोशिप के अंतर्गत बघेलखंड की लोककथाओं पर शोध कार्य के लिए मिली है| 23 दिसंबर को राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव की चौथी शाम मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र की प्रस्तुति ‘धोखा’ का मंचन हुआ| प्रस्तुति धोखा नाटक अल्बेयर कामू के प्रसिद्ध नाटक ‘द मिस अंडरस्टैंडिंग’ का बघेली बोलिबानी में रूपांतरण है| नाटक मनुष्य के असंतुष्टि के मुहावरे को चरित्रार्थ करता है| नाटक का निर्देशन मनोज कुमार मिश्रा (भा.ना.अ.) का था| 24 दिसंबर को नाट्योत्सव का समापन राही मासूम राजा कृत उपन्यास ‘टोपी शुक्ला’ से हुआ जिसका निर्देशन अनिल रंजन भौमिक ने किया था और प्रस्तुति थी सामानांतर इलाहबाद(उ.प्र.) की| नाटक एक इंसान के विशुद्ध हिन्दुस्तानी होने की कहानी है| टोपी शुक्ला जातिवादी लोगो से समझौता नहीं कर पता और समाज के बुद्धिजीवियों के सामने प्रश्न खड़ा करता है| प्रथम राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव, रीवा (म.प्र.) के रंग प्रेमियों के लिए वरदान साबित हुआ है रीवा रंगप्रेमियों के लिए पहलीबार एक ही मंच पर पांच दिन लगातार शाम 6:30 बजे थर्ड बेल के साथ नाटकों का मंचन शुरू हो जाता था| एक साथ पांच निर्देशकों का कार्य देखना दर्शकों के लिए अभूतपूर्व अनुभव रहा| साथ ही नाटकों का तुलनात्मक अध्ययन भी दर्शकों के बीच हुआ| मंचन के बाद अगले दिवस सुबह पूर्वसंध्या में मंचित हो चुके नाटक पर परिचर्चा सत्र रहता था जिसमे दर्शकों, बुद्धिजीवियों, नाट्यनिर्देशक एवं नाट्य समूह के कलाकार शामिल होते थे और प्रस्तुत हो चुके नाटक की शैली, प्रकार, कथावस्तु, वेशभूषा, संगीत, एवं नाटक में निर्देशक और अभिनेताओं के अभिनव प्रयोगों पर विस्तार से चर्चा होती थी| जिसमे इसमें संस्था की तरफ से हनुमंत किशोर, विनय अम्बर , जयराम शुक्ल, चन्द्रिका प्रसाद ‘चन्द्र’, हिरेन्द्र सिंह, योगेश त्रिपाठी, चंद्रशेखर पाण्डेय आदि प्रमुख वक्ता के रूप में होते थे|नाट्योत्सव कार्यक्रम के साथ ही पेंटिंग एवं स्कल्पचर प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया| जिसमें डॉ प्रणय, विनय अम्बर, के.सुधीर, अर्चना शैलेन्द्र, अपने चित्रों और स्कल्पचर के साथ उपस्थित हुए| दर्शकों के लिए यह अभूतपूर्व अनुभव रहा है| रीवा में पेंटिंग और स्कल्पचर की यह पहली प्रदर्शनी है| प्रदर्शनी के अवलोकन के लिए स्कूल एवं कालेजों के छात्रो को भेजा गया| रीवा में संस्कृति विभाग, भारत सरकार के सांस्कृतिक कार्य अनुदान के सहयोग से प्रस्तुत मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र, रीवा के प्रतिष्ठा आयोजन की गूँज चतुर्दिक है| आपके सहयोग के बिना यह पुष्प रीवा में नहीं फूल सकता था| संस्कृति विभाग, भारत सरकार ने रीवा में रंगोत्सव को आर्थिक सहयोग प्रदान कर मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र, रीवा में देश की प्रसिद्ध नाट्य कृतियों की उत्कृष्ठ, कलात्मक एवं नवोन्मेष कार्यो को देखने का अवसर प्रदान किया| आपके सहयोग से ही ‘सभागार के आभाव’ में भी रीवा में नाटकों के नियमित दर्शक है| मण्डप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र, रीवा (म.प्र.) आपकी आभारी है कि संस्कृति विभाग, भारत सरकार हमें वित्तीय सहायता प्रदान कर प्रथम राष्ट्रीय रंग अलख नाट्योत्सव को सफल बनाया|