सदस्य:Khatwang/प्रयोगपृष्ठ
क्षत्रिय खटिक समाज'
धर्म का गौरव पताका हमेशा फहराता रहा
खटिक जाति मूल रूप से वो शूरवीर क्षत्रिय जाति है,
जिनका काम आदि काल में याज्ञिक पशु बलि देना होता था।
आदि काल में यज्ञ में बकरे की बलि दी जाती थी।
संस्कृत में इनके लिए शब्द है, ' खटिटक '।
मध्यकाल में जब क्रूर इस्लामी अक्रांताओं ने हिंदू
मंदिरों पर हमला किया तो सबसे पहले खटिक जाति के
क्षत्रियो ने ही
उनका प्रतिकार
किया।
राजा व उनकी सेना तो बाद में आती
थी। मंदिर परिसर में रहने वाले खटिक ही सर्वप्रथम
उनका सामना करते थे।
तैमूरलंग को दीपालपुर व
अजोधन में खटिक योद्धाओं ने ही रोका था और
सिकंदर को भारत में प्रवेश से रोकने वाली सेना में
भी सबसे अधिक खटिक जाति के ही योद्धा थे।
तैमूर खटिकों के प्रतिरोध से इतना भयाक्रांत हुआ कि
उसने सोते हुए लाखों खटिक सैनिकों की हत्या
करवा दी और एक लाख सैनिकों के सिर का ढेर
लगवाकर उस पर रमजान की तेरहवीं तारीख पर
नमाज अदा की। मध्यकालीन बर्बर दिल्ली सल्तनत
में गुलाम, तुर्क,
खिलजी, तुगलक, सैयद, लोदी वंश आदि और बाद में मुगल
शासनकाल में जब डरपोक हिंदू जाति मौत या इस्लाम चुनने में
से इस्लाम का
चुनाव कर रही थी
अौर जब मुस्लिम गो हत्या करने लगे तो उसके प्रतिकार स्वरूप
खटिकों ने बकरो का मांस बेचना शुरू किया और धीरे
धीरे यह स्थिति आई कि वह अपने ही हिंदू समाज में
पददलित होते चले गए।
कल के शूरवीर क्षत्रिय आज ओ अपनी समाज के लिए भारत के राज्य प्रभुत्व सरकारसे दलित श्रेणी में
हैं।
1857 की लडाई में मेरठ व उसके आसपास अंग्रेजों के पूरे के
पूरे परिवार को मौत के घाट उतारने वालों में
खटिक समाज सबसे आगे था। इससे गुस्साए अंग्रेजों ने
1891में खटिक जाति को अपराधि जाति घोषित कर
दिया। अपराधी एक
व्यक्ति होता है,
पूरा समाज नहीं।
लेकिन जब आप मेरठ से लेकर कानपुर तक
1857 के विद्रोह की दासतान पढेंगे तो रोएं खडे
हो जाएंगे।
जैसे को तैसा पर चलते हुए खटिक जाति ने
न केवल अंग्रेज अधिकारी, बल्कि उनकी पत्नी
बच्चों
को इस निर्दयता से मारा कि अंग्रेज थर्रा उठे।
क्रांति को कुचलने के बाद अंग्रेजों ने खटिकों के गांव
के गांव को सामूहिक रूप से फांसी दे दिया गया
और बाद में उन्हें अपराधि जाति घोषित कर समाज
के एक कोने में ढकेल दिया।
आजादी से पूर्व जब मोहम्मद अलि जिन्ना ने
डायरेक्ट एक्शन की घोषणा की थी तो मुसिलमों
ने कोलकाता शहर में हिंदुओं का नरसंहार शुरू किया,
लेकिन एक दो दिन में ही पासा पलट गया और
खटिक जाति ने मुस्लिमों का इतना भयंकर नरसंहार
किया कि बंगाल के मुस्लिम लीग के मुख्यमंत्री ने
सार्वजनिक रूप से कहा कि हमसे भूल हो गई। बाद में
इसी का बदला मुसलमानों ने वर्तमान बंग्लादेश में
स्थित नाओखाली में लिया।
आज हम आप खटिकों को अछूत मानते हैं, क्योंकि हमें
इनका सही इतिहास नहीं बताया गया है, उसे
दबा दिया गया है। आप यह जान लीजिए कि
दलित शब्द का सबसे पहले प्रयोग अंग्रेजों ने 1931 की
जनगणना में 'डिप्रेस्ड क्लास' के रूप में किया था। उसे
ही बाबा साहब अंबेडकर ने अछूत के स्थान पर दलित
शब्द में तब्दील कर दिया। इससे पूर्व पूरे भारतीय
इतिहास व साहित्य में दलित ' शब्द का उल्लेख कहीं
नहीं मिलता है।
इस्लामी
आक्रांताओं का कठोर प्रतिकार करने वाले एक
शूरवीर क्षत्रिय खटिक जाति को आज दलित वर्ग में
रखकर अछूत की तरह व्यवहार किया है
ी
जाएगी..
इतिहास जानते है
" श्री क्षत्रिय खटिक समाज के आराध्य देव महाराजा #
खटवांग
का इतिहास "
अयोध्या के सुविख्यात रघु
राजा का पितामह । महाभारत में, खट्वांग नाम
से इसका निर्देश प्राप्त है । रामायण में, भगीरथ
का पिता दिलीप (प्रथम), एवं यह, ये दोनों एक
ही माने गये है । किंतु वे दोनों अलग थे । भागवत एवं
विष्णुमत में विश्वसह का, ब्रह्मांड एवं वायुमत में
विश्वमहत् का, तथा मत्स्यमत में यह रघु का पुत्र था ।
कई ग्रंथों में, इसे दुलिदुह का पुत्र भी कहा गया ह । मत्स्य, पद्म,
एवं
अग्नि पुराणों में दी गयीं इसकी वंशावलि में
एकवाक्यता नहीं है । पितृ
की कन्या यशोदा इसकी माता थी ।
इसकी पत्नी का नाम सुदक्षिणा था ।
इसका पुरोहित शांडिल्य था । दिलीप खट्वांग के
प्रशंसा पर एक पुरातन श्लोक भी उपलब्ध ह
काफी दिनों तक दिलीप राजा को पुत्र
नहीं हुआ । पुत्रप्राप्ति के हेतु से, यह वसिष्ठ के आश्रम में
गया । राजा के द्वारा विनंति की जाने पर,
वसिष्ठ ने इसे पुत्र न होने का कारण बताया ।
वसिष्ठ बोले, “एक वार तुम इन्द्र के पास गये थे ।
उसी समय तुम्हारी पत्नी ऋतुस्नात होने का वृत्त
तुम्हें ज्ञात हुआ । तुम तुरंत घर लौटे । मार्ग में कल्पवृक्ष के
नीचे कामधेनु खडी थी । उसे नमस्कार किये
बिना ही तुम निकल आये । उस लापरवाही के कारण
उसने तुम्हें शाप दिया, ‘मेरे संतति की सेवा किये
बिना तुम्हें संतति नहीं होगी’। उस शाप से
छुटकारा पाने के लिये मेरे आश्रम में स्थित
कामधेनुकन्या नंदिनी की तुम सेवा करो । तुम्हें पुत्र
होगा।’ इसी समय वहॉं नंदिनी आई । उसे दिखा कर
वसिष्ठ ने कहा, ‘तुम्हारी कार्यसिद्धि शीघ्र
ही होगी’। इसने धेनु को चराने के लिये, अरण्य में ले
जाने का क्रम शुरु किया । एक दिन मायावी सिंह
निर्माण कर, नंदिनी ने इसकी परीक्षा ली
। उस
समय सदेहार्पण कर, धेनुरक्षण करने की सिद्धता इसने
दिखायी । तब धेनु प्रसन्न हो कर, इसे रघु नामक
विख्यात पुत्र हुआ यह
कथा कालिदास के रघुवंश में पूर्णतः दी गयी है । यह
पृथ्वी पर का कुबेर था । इसने सैकडों यज्ञ किये थे ।
प्रत्येक यज्ञ में लाखों ब्राह्मण रहते थे । इसने सब
पृथ्वी ब्राह्मणों को दान दी थी । इसीके
यज्ञों के कारण, यज्ञप्रक्रिया निश्चित हुई । इसके
यज्ञ में सोने का यूप था । इसका रथ पानी में
डूबता नहीं था । दिलीप के घर पर ‘वेदघोष,’ ‘धनुष
की रस्सी की टँकार’, खाओ’, ‘पियो’, एवं ‘उपभोग
लो’, इन पांच शब्दो का उपयोग निरंतर
सम्राट तथा चक्रवर्ति के नाते
इसका निर्देश किया जाता था ।
महाराजा #खटवांग सूर्यवंशी महाप्रतापी,
धर्म परायण, सत्य
का परीपालन
करता राजा है।इसका नाम दिलीप
भी था।