सदस्य:Kesar Dev Mintar
kesardev mintar लोहपुरुष स्वर्गीय केशर देव मिन्तर
एक परिचय ''जनम एवं शिक्षा''''''''
६ दिसंबर १९२२ को शहर नवलगढ़ Jhunjhunu में एक छ्पपर पॉश तिबारी में स्वर्गीय भोलाराम गुरूजी की धरम पत्नी श्रीमती जुहरीदेवी की कोख से एक वीर शिशु का जनम हुआ जिसका नाम था - केशरदेव आपका जनम संभ्रांत खाण्डल परिवार में हुआ।
एस एन विद्यालय से कक्षा सात उत्तीर्ण कर वहीँ अध्यापन - कार्य आरम्भ कर दिया। इस अवधि में आयुर्वेदिक परीक्षा भी पास कर ली। उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त न होते हुए भी चंचल - चपल और तेजस्वी व्यक्तित्व था उनका।
किशोर अवस्था में स्वयं अच्छे खिलाडी नहीं होते हुए भी खेलों व् व्यायाम शाला में जाना व् साथियो को प्रोत्साहित करने आदि का। उनके परम मित्र जैसे - केशरदेव ढांचोलिया , श्री नहर शिंग शेखावत , श्री केशर देव जांगिड़ , पंडित द्वारकाप्रसाद (चुरू ) आदि राजस्थान के प्रशिद खिलाडी थे , इनके साथ टूर्नामेंट में जाना , बादाम की ठंडाई पिलाना , विनोदी स्वभाव के कारन हँसाते रहना उनकी मौलिकता थी। १९४२ में नवयुवक - मंडल की स्थापना हुई जिसके अंतर्गत श्री रामदेव जी के मेले के अवसर पर अखिल भारतीय बालीबाल प्रतियोगिता का संचलन किया जाता था। मिन्तर जी जिसके अग्रणी रहे
स्वतंत्रता - संग्राम का आरंभ
१९४२ के आस पास समूचे भारत में स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारियां फ़ैल गयी थी। अंग्रेजो भारत छोडो के नारों से आकाश गुंजित रहता था। वह गूंज नाहर सिंह - मिन्तर को कैसे प्रभावित नहीं करती ? भारत माँ की गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए दोनों के नेतृत्व में कस्बे में आरंभ में राजा पार्टी बानी। राजा पार्टी के तत्वाधान में नवलगढ़ जिले के अन्यान्य स्थानो पर जाकर किसानों व् हरिजनों में कार्य किया।
सन १९४४ में प्रजा मंडल जो प्रदेश स्तरीय एक अभियान था उसके अंतर्गत , प्राप्त निर्देशो के अनुसार कार्य किया व् एक बड़ी टीम का निर्माण कर लिया।
टाइगर की चपल चाल , चंचल व्यक्तित्व , बुलंद व् स्वाभिमान युक्त आवाज। निर्भीकता दिलेरी इस सभी गुणों का अध्भुत संकलन उनमे था। हरिजन व् गरीब के परम हितेषी व् परम मित्र थे। इसी कारन इनका नाम "मिन्तर " पड़ा इन्हे सभी मिन्तर जी कह कर पुकारते थे।
यह वह समय था जब इनके व्यक्तित्व में पुराण निखार आ गया था , इनका एक संगठन बन चूका था जनता में लोकप्रियता भी हासिल कर ली थी
१५ अगस्त १९४७ को समूचा भारत आजादी की ख़ुशी मना रहा था। लाल किले पर तिरंगा धवज लहरा रहा था। ये कैसे सम्भव था कि स्थानीय बाला किला सुना रहता।
जान समुदाय के विशाल प्रदर्शन में सफ़ेद घोड़ी पर सवार मिन्तर ललकार रहे थे की तोड़ दो गढ़ के फाटक और चढ़ जाओ किले पर। आखिर फाटक टुटा आवर गढ़ पर तिरंगा झंडा लहराता हुआ नजर आया।
दोस्तों ! स्मरण रहे। स्थानीय ठिकानेदार मदन सिंह का कड़ा विरोध हुआ , घोड़े दौड़ाये गए , अनेक व्यक्ति घायल हुए , तीन दिन तक गढ़ के सम्मुख सत्याग्रह किया गया।
शोषकों के प्रति विद्रोह'
सन १९४८ में भगत जोहड़ जो की गोचर भूमि के लिए छोड़ा हुआ था। रावल मदन सिंह के षड्यंत्र से कष्ट करवा दिया गया। इस अन्याय को नाहर सिंह - मिन्तर और उनके साथी कैसे सहन कर सकते थे।
नाहर सिंह की पुकार और मिन्तर की ललकार ने रातोंरात सैंकड़ो सशस्त्र किसानो और मजदूरों को एकत्रित कर काश्त को नष्ट कर दिया। शोषित वर्ग की शोषक वर्ग पर यह एक बड़ी विजय थी। परनाम स्वरुप नाहर सिंह - मिन्तर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। सात दिन तक शहर में शांति पूर्वक हड़ताल रही।
सन ४७ में अंग्रेज तो सात समंदर पार चले गए परन्तु अपने नाजायज उत्तराधिकारी , जनता का शोषण करने , असमानता फ़ैलाने , आर्थिक विषमता पनपाने साम्प्रदायिक भड़काने , पूंजीवाद को बढ़ावा देने के लिए छोड़ गए जो आज भी राष्ट्र के शरीर में कैंसर बना हुआ है।
शोषण के खिलाफ मिन्तर ने अपने साथियो सहित जिहाद बोल दिया। सन १९५० में उदयुरवाटी में भयंकर दमन चक्र चल रहा था। इस छेत्र का जाट वर्ग तो फिर भी सक्षम हो आया था। अपने हाथों में लाठी तलवार ले चूका था।
परन्तु माली - गुर्जर - हरिजन वर्ग पीड़ित था।, कमजोर था। उन्ही क्षेत्रो में अपने साथी श्री करनी राम और श्री रामदेव के साथ श्री मिन्तर गए और हजारों किसानो की बेदखल जमीं को दखल करवाया , पैमाइश करवाई। भोमियों की बन्दुक व् बरछी भालों की तनिक भी परवाह नहीं की। यह था असली व्यक्तित्व श्री मिन्तर का। आखिर इसी यज्ञ में एक दिन चवरा ग्राम की सेदु गुर्जर की धनि में भोमियों की गोलियों से श्री करनी राम और श्री रामदेव को बलिदान देना पड़ा। यहाँ पर अब भी जिला स्तरीय शहीद मेला भरता है।
सतर्कता एवं तुरंत बुद्धि''
सरदार श्री हरलाल सिंह पार्टी के नेता थे। १९५२ के आम चुनाव में इन्होने नवलगढ़ व् चिड़ावा दो क्षेत्रो से चुनाव लड़ा। नवलगढ़ से पराजित , चिलवा से विजयी हुए। चूँकि नवलगढ़ में पार्टी के नेता श्री नाहर सिंह थे इस्ल्ये इन्हे खेतड़ी से चुनाव लड़ाया गया। ये पराजित हुए। इसी चुनवा के दौरान में श्री मिन्तर जी अपने साथी को जितने में जी जान से जुट हुए थे। एक दिन सायंकाल कुछ भोमियों ने इन्हे देख लिया और मौका पाकर घेर लिया , और आगे कर लिया। श्री मिन्तर जी पेशाब के बहाने बैठ गए और घाटी पर चढ़ गए। मदांध ठकुटों ने बलि के बकरें को पाकर धयान ही छोड़ दिया। रात भर मिन्तर जी घाटी पर व् इधर उधर भटकते फिरें , फिर थानें में जाकर पुलिस को साथ लिया और अन्य साथियों को छुड़ा कर लए। अगर मिन्तर जी उनके साथ जा पते तो निश्चय ही उनका कतल कर दिया जाता।
नवलगढ़ में भी दो तीन बार असामाजिक तत्वों ने इन दोनों को मर देने की कुचाले चली परन्तु सफलीभूत नहीं हुए।
गरीबों की ढाल''
मिन्तर जी मस्त टाइगर की चाल में गरीबों की ढाल थे। स्वयं ही नहीं अपने अनुयायियों को भी सर्वथा कहा करते थे - जवानों ! टूट जाना - झुकना नहीं।
जबसे होश सम्हाला था स्वाभिमान व् सघर्ष की जिंदगी जी थी। स्वाभिमान जगाने व् प्रेरित करने के लिए एक बात अक्सर कहा करते थे की - भोंदुड़ा जानती बजाता है इंटेलिजेंसिया भाग कर आता है और इस तरह से भोंदुड़े के सामने जीभ बगा देता है जिस तरह से कड़ी धुप में वजन से लड़ा हुआ भैंसा