सदस्य:Hinabhura
- श्रीआदिनाथ चरित्र*
- श्री आदिनाथ चारित्र*
*भाग -1*
- हे प्रभु ! आदि जिनेश्वर तुमको वन्दन 🙏🏽करु*
- तुम हो जैन धर्म की शान*🚩
- नाम तुम्हारा ही लेकर प्रारंभ किया गुणगान* ✍🏽✍🏽✍🏽
जो इस अवसर्पिणी काल में
*पहला राजा* 👑 *पहला तिर्थंकर* 🌅 *पहला त्यागीमुनि* हैं।
जो स्वर्ग लोक, मृत्युलोकऔर पाताल लोक के स्वामी 🌅हैं।
उस *अरिहंत पद को हम नमस्कार करते हैं* 🙏🏻।
जो इस 🌍के नाथ हैं । जिन्होंने असि⚒,मसी✍🏻,कृषि 🌾की स्थापना करके हमे लोक व्यवहार में जीने के आयाम दिए।
भरत क्षेत्र 🌎पर असीम उपकार हैं। उन आदि कर्ता प्रभु को सादर वंदन 👏🏾करते हुए हम 📚*जैन धर्म के प्रथम* *तीर्थंकर श्री* *ऋषभनाथजी का जीवन चारित्र का प्रारंभ करते है*
कल आगे का भाग ➡➡
श्री आदिनाथ चारित्र भाग --2
प्रथम भव - धन सार्थवाह
🌕जम्बूदीप्! पश्चिम महाविदेह!
क्षितिप्रतिष्ठित नगर ! 🕍
प्रसन्नचंद्र राजा ! 🤴
उस नगरमें एक 'धन' नामक सेठ👳 रहता था। वह यश रूपी दौलत का स्वामी था। उसमें उदारता, गंभीरता और धीरजरूपी उत्तम बीज थे। उसके घर अनाज के ढेरों की तरह रत्नों के ढेर थे।
एक बार उसने व्यापार के लिए वसंतपुर🚶 जाना निष्चित किया। उसने शहर में उदघोषणा करवाई की, "धन सेठ वसंतपुर जाने वाले हैं🥁 इसलिए जिसकी भावना हो वे उनके साथ चल सकते है। बीच मार्ग में सारा प्रबंध सेठ करेगा। किसी को🥞 भोजन,🏛आवास,💰धन की चिंता करने की जरूरत नही है।
ये घोषणा सुनकर अनेक लोगों की वसंतपुर जाने को तैयार हो गए।🚶🚶🚶🏽♀
उसी नगर में अपने विशाल शिष्य परिवार के साथ😷 धर्मघोषसूरीजी आचार्य भी विराजमान थे। उनके मन में वसंतपुर जाने की भावना हो👣 गई। वसंतपुर की ओर मंगलप्रयाण के पूर्व आचार्य से के पास आए।
👳सेठ ने उनको देखकर आदर सहित खड़े होकर विधि पूर्वक वंदना 🙏🏼की और आने का कारण पूछा।आचार्य ने कहा हे सार्थवाह! तुम्हारे सदाचरण से आकर्षित होकर तुम्हारे साथ विचरण करने की भावना है।
कल आगे का भाग▶▶
श्री आदिनाथ चारित्र भाग--3
आचार्यश्री की वसंतपुर 🕍 साथ👣 चलने की बात सुनके सेठ बोले : हे भगवंत🙏🏼 आज मैं धन्य हुआ महान पुण्योदय से ही महा पुरुषो का समागम प्राप्त होता है।
पास खड़े हुए
:👩🏼🍳:अपने रसोइये को आज्ञा दी: इन आचार्य महाराज के लिए तुम हमेशा 🍋🥛आहार पानी का प्रबंध करना।
सेठ की बात सुनकर आचार्य बोले साधु😷
उनके निम्मित बनाया गया🥝🥂🍺🥓 आहार , सचित जल, सचित फल साधु ग्रहण नहीं करते है। हम वही आहार लेते है।जो गृहस्थ ने अपने लिए बनाया हो, निर्दोष हो, अचित हो। हमारे लिए जिनेश्वर भगवान की यही आज्ञा है।
👳 सेठ ने आचार्यश्री के वचन सुनकर।"अहो श्रमणवर! आप तो महा दुष्कर व्रत धारक हो। ऐसा व्रत प्रमादी पुरुष एक दिन भी धारण नहीं कर सकता। आप हमारे साथ अवश्य पधारे। हम 🍛🍶आपको वही आहार -पानी देंगे जो आपके ग्रहण करने योग्य होगी।
दूसरे दिन मंगल बेला में सेठ,👳🚶🚶🏽♀🎪 संघ आदि ने प्रस्थान किया। साथ ही😷😷 आचार्यश्री भी अपने शिष्य मंडली के साथ ईर्या समिति का पालन करते हुए विहार करने👣👣 लगे।
कल आगे का भाग▶▶
श्री आदिनाथ चरित्र भाग-4
🎪 संघ के आगे👳 धनसेठ चलते उनके पीछे उनका मित्र मणिभद्र👳🏽♀ उसके दोनों तरफ 🏇🏻🏇🏻 घुड़सवार चल रहे थे।पीछे🐐🤺🚴🏼♀🚶🚶🏽♀😷😷👣 इस तरह सारा संघ अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहा था।
वर्षा ऋतु💦 आयी। मेघ⛈💥 बिजली चमकने लगी।
देखते ही देखते जल , कांटे,और कीचड़ से मार्ग दुर्गम हो गया☔🎿 धनसेठ ने ऊंचाई देख 🏕🏕तंबू बंधवाया।
सेठ के मित्र ने👳🏽♀ उपाश्रय⛺ बनाया। वह जमीन पर था।
साथ मे जो कुछ भी था वह खत्म हुआ। लोग कंदमूल का🥕🍆 भक्षण करने लगे।
एक दिन मणिभद्र ने सेठ को लोगो की दुःखकथा 😭😥 सुनाई। उस रात चिंता में पड़े सेठ को नींद नही आई।
रात के 4 थे पहर में अश्वशाला🐴🚶 के चौकीदार के शब्द सुनाई दिए।
"हमारे स्वामी का यश चारों दिशा में🎇फैला हुआ है। वे अपने अश्रितो का ऐसे बुरे समय मे अच्छी तरह पालन पोषण कर रहे है।"
सेठ👳 ने जैसे ही ये बात सुनी
सोचते सोचते उन्हें 😷 स्मृति आयी। मन ही मन स्वयं को धिक्कार ने लगा। अरे! आचार्य😷 तो अचित आहार ग्रहण करते है। मैंने उन्हें कहा था कि आपकी सब व्यवस्था करूँगा और मैंने
उन्हें भुला दिया। अब मै किस तरह अपना मुख😩? दिखाऊंगा।
कल आगे का भाग▶▶
श्री आदिनाथ चरित्र भाग-5
धनसेठ के मन की व्याकुलता😴 बढ़ते जा रही थी। उन्होंने प्रातः🌄 मुनिराज के दर्शन करने का निर्णय किया। नींद चिंता के कारण नही आई।
प्रातः काल सुंदर वस्त्र धारण कर💍👘👬 अपने मित्र के साथ तंबू⛺ में प्रवेश किया। वहाँ कोई साधु📚 स्वाध्याय कर रहे थे। तो कोई वाचना📖 ले रहे थे। कोई धर्मचर्चा तो कोई मौन🤐 थे। उन्हें देखते। वह सोच में पड़ गया।"*अहो❗ यह क्या❓
मैंने तो सोचा था यह मुझे ठपका देंगे..... परंतु ये सब तो साधना में मग्न है।
हिम्मत करके आगे बढ़कर सूरी के चरणों मे नमस्कार🙏🏼 किया। आचार्य भगवन ने ’* धर्मलाभ दिया। अब धनसेठ
चरणों मे बैठ बोला" हे पूज्यवर मैंने आपको साथ लाते समय
आपका ध्यान रखने की जिम्मेदारी ली थी। किन्तु मैंने
आपकी सारसंभाल नही की। मैं आप का अपराधी हूँ। मेरे वचन
।शरद ऋतु के बादलों की☁☁ गर्जना समान मिथ्या हुए। जागते हुआ मैं सोता रहा। मुझे धिक्कार ❗ है आप मुझे क्षमा 😵 प्रदान करे।
सेठ की बात सुनकर सूरिजी बोले " हे सज्जन ❗
तुम मन मे खेद मत करो। तुमने हमे रास्ते मे🛤 हिंसक पशु और चोरों से बचाया है। तुम्हारे साथी हमे आहर पानी🍶🍚
देते रहे है। तुम्हारे साथ के कारण ही हम विहार यहाँ तक आ सके।अतः तुम लेश मात्र भी
खेद मत करो।
आचार्यश्री की शांत- गंभीर वाणी सुन वह बोला यह आपकी महानता है। अब आप कृपा करके मुझे आहार पानी का लाभ दीजिये।
शेष कल▶▶▶