सदस्य:Harish Priyadarshi/प्रयोगपृष्ठ

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

लटिया महोत्सव

लटिया की खोज ब्रिटिश पुरातत्व सर्वेक्षण अधिकारी सर कनिंघम ने 1870 में की थी। लटिया की लाट की पहली तस्वीर सर कनिंघम के साथी डॉ जोसेफ डेविड बगलर ने 1870 में लिया था। सर कनिंघन के अनुसार ये “सिंह स्तम्भ ( lion Pilar ) है जो मौर्यकाल में सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था। और इस गांव का नाम लटिया अशोक की लाट कि वजह से पड़ा है।”


ये लाट उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के जमानियां, लटिया गांव में स्थित है। यहां पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग कि उदासीनता साफ नजर आती है। सम्राट अशोक के द्वारा बनवाई गई इस लाट को पुरातत्व विभाग ने गुप्तकालीन बताया है जबकि गुप्तकाल में जिन लाटों का निर्माण हुआ वो पिलर कोनेदार थे जबकि सम्राट अशोक महान के शासन काल मे बनी सारी लाटों का निर्माण गोल स्तम्भ (पिलर) के रूप में हुआ। इसलिए इस लाट को देख कर दावे के साथ बताया जा सकता है कि ये लाट मौर्यकालीन है गुप्तकालीन नहीं। मौर्यकालीन और गुप्तकालीन संस्कृति पूरी तरह एक दूसरे से भिन्न हैं।

1870 में ब्रिटिश पुरातत्व सर्वेक्षण अधिकारी सर कनिघम को जब इसकी सूचना मिली तो हजारों वर्षों से जमीन में दफन सम्राट अशोक कि समृति को खोज निकाला और उसे पुनः लटिया कि धरती पर स्थापित किया

सम्राट अशोक क्लब भारत” जो कि एक राष्ट्र समर्पित संस्था के रूप में पूरे भारत में कार्यरत है। भारत सरकार की राष्ट्रीय प्रतीकों और स्मारकों के प्रति उदासीनता को देखते हुए राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत हो लोगों के दिलों में राष्ट्रप्रेम कि भावना को जगाने का संकल्प कर कार्य कर रही है। सम्राट अशोक क्लब भारत हर वर्ष राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत हो लोगों के दिलों में राष्ट्रीय भावना को जगाने के लिए हर वर्ष 2 फ़रवरी को लटिया परिसर में लटिया महोत्सव का आयोजन करता है।

लटिया महोत्सव का आयोजन "सम्राट अशोक क्लब भारत" १९९६ से अनवरत करता आ रहा है, जिसका उद्देश्य जन - जन को राष्ट्रीय प्रतीकों के विषय में बताकर जागरूक करना, राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करने हेतु प्रेरित करना, राष्ट्रप्रेम की भावना को जगाना, महिलाओं के सम्मान हेतु लोगों को जागरूक करना, लैंगिक भेदभाव को खत्म करके एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना, हमारे राष्ट्रीय धर्म ग्रन्थ "भारतीय संविधान" के प्रति जनमानस को जागरूक करना एवं संविधान के माध्यम से लोगों में राष्ट्रप्रेम की भावना जागृति करना प्रमुख उद्देश्य है ।

इस महामहोत्सव में शामिल होने के लिए देश के कोने - कोने से शिक्षाविद, इतिहासकार, वैज्ञानिक, लेखक, पत्रकार इत्यादि बढ़ - चढ़कर हिस्सा लेते हैं। गौरतलब है कि 2 फरवरी के दिन ही भारत लेनिन बाबू जगदेव प्रसाद का जन्म हुआ था, इसलिए यह महोत्सव एक महान क्रांतिकारी, समाजसेवी के प्रेरणास्पद गाथाओं का साक्षी भी है।