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परगट सिंह[संपादित करें]

परगट सिंह भारत के प्रमुख हॉकी खिलाडीयों मे से एक हॅ। उनका जन्म ५ मार्च सन १९६५ मे मीतापूर गाँव जलंदर क्षेत्र पंजाब राज्य मे हुआ। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव के एक स्कूल से प्राप्त किया। अपनी स्कूली शिक्षा के बाद, उन्हें प्रसिद्ध लिलपुर खालसा कॉलेज में भर्ती कराया गया।अपने कॉलेज के दिनों के दौरान, जूनियर भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा बन गए जहां उन्होंने जबरदस्त उत्साह के साथ खेला। कुछ समय बाद, वे सीनियर भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा बन गए और उन्होने हांगकांग में हॉकी टूर्नामेंट में भाग लिया जहां दस अन्य देशों ने भी भाग लिया। हर किसी की उम्मीद के अनुसार, उन्होंने शानदार ढंग से खेला और भारतीय हॉकी के सबसे प्रमुख आंकड़ों में से एक बन गए। उनका मॅदान मे खेलने का स्थान फुल बॅक हॅ। वे नाहि भारत के अथवा पूरे विश्व के बेहतरीन रक्षक माने जाते हॅ। उन्होंने गहरी रक्षा के क्षेत्र को एक अलग अर्थ जोड़ा। उन्होंने आक्रामक शैली का पालन किया। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में आयोजित चैंपियंस ट्रॉफी केलिए अपने आप को काबिल बनाया।उन्होने भारतीय हॉकी टीम का सफल नेतृतव किया। वे सन १९९२ के बारसेलोना ओलंपिक मे भारतीय कपतान के रुप मे चुने गए।उनके नेतृतव की कला को देखते हुए उन्हे सन १९९६ के अटलांटा ओलंपिक मे भारत की कपतानी करने का अवसर मिला। राजनीत मे प्रमुख भुमिका खेलने से पहले उन्होने पंजाब पुलिस के रुप मे जनता की सेवा की। उनका पद एसपी था। उनके जीवन मे पर्थ मे आयोजित जर्मन के विरुद्ध खेले जाने वाला चैंपियन ट्रॉफी का खेल अत्यंत महत्वपूर्ण हॅ। खेल के एक समय पर स्कोर १-५ था ऑर भारत के जीतने की कोई उम्मीद नही थी। तब उन्होने आगे खेलकर अंतिम के ६ मिनट मे ४ गोल किए। अतः खेल का कोई नतीजा नही निकल पाया ऑर भारत हार के पंजे से बच गया। यह खबर न्यूस मे फॅली ऑर वे रातों-रात देश की जनता का दिल जीत लिए ऑर बडे खिलाडी बन गए। पर्गत सिंह की दृढता चैंपियंस ट्रॉफी के दौरान एक बार फिर प्रमुख बन गई जहां भारत ने हॉलैंड को 3-2 गोल से हराया। । उन्होने अपना शानदार प्रदर्शन बडते रखा ऑर सन १९८६, कराची में भारत को हॉलैंड के सामने एक महत्वपूर्ण जीत प्रदान कराया ऑर भारत का नाम पूरे विश्व मे बडाया।उनके प्रदर्शन एवं योगदान से प्रभावित होकर भारतीय सरकार ने उनको सन १९८९ में अर्जुना पुरस्कार से सम्मानित किया। उन्होने सन २०११ मे भारतीय खिलाड़ियों का समर्थन करते हुए सरकार को अनेक सवाल किए। एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी जीतने के बाद हॉकी टीम को केवल २५००० नकद इनाम देने पर उन्होने इसे एक अपमानजनक कार्य कहा। २०१२ मे उन्होने हरेन्द्र सिंह के खिलाफ कानूनी कारवाई करने की धमकी दी अगर उन्होने आधारहीन मैच-फिक्सिंग का आरोप जारी रखा। सिंह के पंजाब मे प्रसिद्धता को देखकर उनको राजनित मे अह्म भूमिका बनाने का अवसर मिला। उन्हे सिरोमी अकाली दल द्वारा जलंदर कांट से चुनाव मे लडने का अवसर मिला जिसमे उन्होने कांग्रेस के जगबीर सिंह को हराया ऑर राजनीत का उनका अनोखा जीवन शुरु हुआ। उनका अकाली दल से जुडा यह लंबा सफर २०१६ को संपूर्ण हुआ। अतः उन्हे पार्टी से निकाला गया। यह होते ही उन्होने भारतीय क्रिकेट खिलाडी नवजोत सिंह सिधु के साथ हाथ मिलाकर आवाज-ए-पंजाब का निर्माण किया। उनका मुख्य लक्ष्य उनसे लडना हॅ, जो पंजाब के विरुद्ध काम करते हो। उन्होने हाली मे कोंग्रेस पार्टी के मुख्य कार्यकर्ता के रुप मे पार्टी को चुनाव मे जीत दिलवाया। उनको सुरजीत सिंह मेमोरीयल टोरनमॅन्ट, जलंदर के उपाध्यक्ष के स्थान का गॉरव मिला। वे हाली मे पंजाब होकी के मुख्य सचिव चुने गए। उनके अनुसार बेहतर भविष्य की इच्छा रखने से पहले भारत को अल्प समय केलिए कुछ दर्द भोगना पडेगा। जब तक हॉकी देख रेख के अधिकारी काबिल एवं सक्षम खिलाड़ियों की पहचान और पोषण नहीं करता तब तक दर्द बडता जाएगा।उन्होने यह भी कहा की खेल में राजनीति, भारतीय हॉकी को नुकसान पहुंचा रही है। इसे जल्द ही हल करने की जरूरत है।कोई भी हॉकी प्रशासक इस्तीफा देता नही है और टीम के हारने पर जिम्मेदारी लेता नही ऑर अंत मे खिलाडीयों पर दोष लगाया जाता है और वे बाहर निकल जाते हैं। उनका हॉकी के क्षेत्र मे विशाल एवं बहुमूल्य योगदान को देखकर भारतीय सरकार ने उन्हे पद्मश्री के गॉरव से सम्मानित किया। उनके व्यावहारीक एवं आधर्शनीय लक्षणों के कारण उन्हे हमेशा भारत के प्रमुख खिलाडीयों मे से एक माना जाएगा।