सदस्य:Faaiza1840726/प्रयोगपृष्ठ

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माइटोकोंड्रिया[संपादित करें]

यूकैरियोटिक कोशिका के कोशिका द्रव्य में अनेक छोटे , गोलाकार , मुग्दाकार , तंतुमय , कणिकामय एवं छड़ के आकार की रचनाएं पाई जाती हैं , जिन्हें माइटोकोंड्रिया कहते हैं |

प्रस्ताव[संपादित करें]

माइटोकोंड्रिया की खोज कोलिकर ने की तथा माइटोकोंड्रिया नाम बेन्डा ( 1897 ) ने दिया | माइटोकोंड्रिया की लम्बाई 1.5μ – 4μ तक तथा व्यास 0.5 से 1.0μ तक होता हैं | माइटोकोंड्रिया दोहरी झिल्ली से घिरी जीवित रचना होती हैं , माइटोकोंड्रिया में ऑक्सीश्वशन की क्रिया सम्पन्न होती हैं | माइटोकोंड्रिया जन्तुओ तथा पौधों की सभी जीवित कोशिकाओं में पायी जाने वाली रचनाएँ हैं , जो नीली – हरी शैवालों तथा बैक्टीरिया की कोशिकाओं में नहीं पायी जाती हैं | माइटोकोंड्रिया की क्रिस्टी की सतह व आंतरिक झिल्ली पर बहुत से छोटे ( सूक्ष्म ) कण पाए जाते हैं , जिन्हें F1 कण या ऑक्सीसोम्स कहते हैं |

प्राणी की हर कोशिका (लाल रक्त कणों के अलावा) को जीवित रहने और कार्य करने की ऊर्जा पावर हाउस से मिलती है। इन पावर हाउस को 'माइटोकोंड्रिया' कहते हैं। माइटोकोंड्रिया ऑक्सीजन जलाकर ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। माइटोकोंड्रिया का अपना डी.एन.ए. होता है, जो प्राणी के अपने विशिष्ट डी.एन.ए (जो कोशिका के न्यूक्लियस में होती है) से भिन्न होता है। माइटोकोंड्रिया के डी.एन.ए की संरचना बैक्टीरिया जैसी होती है, न कि प्राणी जैसी।


माइटोकोंड्रिया की मुख्यता[संपादित करें]

मान्यता है कि प्राणी कोशिका में माइटोकोंड्रिया सचमुच में एक घुसपैठिया बैक्टीरिया है। आदिकाल में जब जीवन एक कोशिकीय था, तब यह ऑक्सीजन से ऊर्जा बनाने वाला बैक्टीरिया उस कोशिका में घुस गया, जो ऑक्सीजन से ऊर्जा नहीं बना सकता था। कोशिका को यह घुसपैठिया रास आया और उसने इसे ऑक्सीजन से ऊर्जा बनाने वाले पावर हाउस के रूप में आत्मसात कर लिया। तब से कोशिका के विभाजन के साथ यह भी स्वतंत्र रूप से विभाजित होकर संतति कोशिका में जाता है।

जिस प्रकार प्राणी कोशिका में ऑक्सीजन से ऊर्जा बनाने वाला बैक्टीरिया घुसा, उसी प्रकार वनस्पति कोशिका में ऑक्सीजन बनाने वाला बैक्टीरिया घुसा। क्लोरोप्लास्ट वनस्पति कोशिका के लिए सूरज की रोशनी से फोटोसिंथेसिस कर भोजन बनाता है और इस प्रक्रिया में प्राणियों की प्राणवायु, ऑक्सीजन, उत्सर्ग करता है। क्लोरोप्लास्ट अगर ऑक्सीजन न बनाए, तो प्राणियों का जीवन ही संभव नहीं होगा। इस प्रकार क्लोरोप्लास्ट और माइटोकोंड्रिया के आधार से ही संसार चल रहा है। सारे प्राणी क्लोरोप्लास्ट वेंटीलेटर से ही जीवित हैं।

पिता की पहचान के लिए व्यक्ति के न्यूक्लियर डी.एन.ए. और माता की पहचान के लिए माइटोकोंड्रियल डी.एन.ए का विश्लेषण किया जाता है। संसति में माता के ही माइटोकोंड्रिया पहुंचते हैं, पिता के नहीं। संतति में पिता का डी.एन.ए. शुक्राणु से आता है और शुक्राणु में न्यूक्लियर डी.एन.ए. उसके शीश में ही केंद्रित होता है और फार्टिलाइजेशन पर केवल शीश ही ओवम में प्रवेश पाता है, माइटोकोंड्रिया तो बाहर ही रह जाते हैं।

माइटोकोंड्रिया के निम्न कार्य[संपादित करें]

1. माइटोकोंड्रिया में सभी खाद्य पदार्थों का ऑक्सीकरण होता हैं इसलिए माइटोकोंड्रिया को कोशिका का पावर हाउस भी कहते हैं | 2. अंडजनन के दौरान माइटोकोंड्रिया द्वारा पीतक पट्टलिकाओं का निर्माण किया जाता हैं | 3. माइटोकोंड्रियल वलय का निर्माण माइटोकोंड्रिया द्वारा शुक्राणुजनन के समय होता हैं | 4. माइटोकोंड्रिया के द्वारा उत्पन्न ऊर्जा एडिनोसीन ट्राईफास्फेट के रूप में होती हैं तथा इसका निर्माण अकार्बनिक फास्फेट तथा एडिनोसीन डाईफास्फेट के मिलने से होता हैं | 5. माइटोकोंड्रिया में ऊर्जा निर्माण के साथ – साथ ऑक्सीकरण की क्रिया के द्वारा CO2 6. एवं जल का निर्माण होता हैं | माइटोकोंड्रिया के क्रिस्टी में इलेक्ट्रोन अभिगमन तंत्र की क्रिया सम्पन्न होती हैं |

संदर्भ[संपादित करें]

[1] [2]

  1. https://www.jove.com/video/54989/-mitochondrial-?language=Hindi
  2. https://unacademy.com/lesson/mitochondria-in-hindi/TSW74F7N