सदस्य:Dalip kumar

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आओ देखें नीमकाथाना[संपादित करें]

भारत के राजस्थान राज्य के सीकर जिले में नीमकाथाना स्थित है। नीमकाथाना की अपने आप में एक अलग विश्ेाषता है। यहा निम्बार्क ऋषि ने तपस्या की थी उसी कारण यहाँ का नाम नीमकाथाना पडा, इसके अलावा यहा नीम के पेडांे की सख्याँ अत्यधिक है, उनके बीच पुलिसथाना है। नामकरण के विषय में ये अलग-अलग मत है नीमकाथाना सुर्खियों में तब आया जब यहाँ 24 अक्टूबर 1995 को पूर्ण सूर्यग्रहण का अद्भुत खगोलिय नजाारा देखने हेतु विदेशो से वैज्ञानिक नीमकाथाना नामक स्थान पर एकत्र हुए वो जब एकत्र हुए तो लोगों मंे भ्रांतिया फैली कि कोई विपदा आने वाली है, इसी कारण यहाँ बड़ी-बड़ी मशीनें व वैज्ञानिक आये है। सूर्यग्रहण ऐसा हुआ एक क्षण के लिए सभी पक्षी अपने अपनेे घोंसले में चले गये गांव वाले व वहा के लोग घरोे में ही छुपे रहे क्योंकि भा्रन्ति फैली थी कि कुछ गजब होने वाला है इसी के चलते नीमकाथाना प्रसिद्ध हुआ। यह अरावली की पहाड़ियों से घिरा हुआ नगर है साथ ही ओद्यौगिक क्षेत्रों मे इसका नाम आता है, यहाँ लोहा,तांबा व सीमेन्ट उघोग है। आसपास की खानों मेें चूना पत्थर मिलता है। पुरातत्व संग्रहालय विभाग के पूर्व निदेशक आर सी अग्रवाल ने 1977 मे नीमकाथाना के पूर्व मंे 10 किमी. दूर स्थित गणेश्वर गांव मे खुदाई की। यहां तांबे की चादर से बने एक हजार तीर मिले है, इतने बड़े तीर पहली बार यहाँ देखे गये भूगर्भिक सर्वेक्षण के अनुसार नीमकाथाना के आसपास के इलाको मे तांबे और यूरेनियम के भण्डारो की खोज की गई। आर सी अग्रवाल के अनुसार दरिबा,हरिदबाडा,बालेश्वर और चीपलाटा में अभी भी तांबा अयस्क के विपुल भण्डार है। शिक्षा की दृष्टि से नीमकाथाना में सेठ नन्द किशोर पटवारी महाविद्यालय है। जिसमें आसपास के गांवो के लड़के-लड़कियाँ पढ़ती है जिसमें राजनीति ज्यादा चलती है व पढ़ाई कम होती है। लड़ाई ज्यादा होती है, वो भी किसी लड़की या जातिगत भेदभाव के कारण क्योंकि महाविघालय में मीणाओं व जाटों की सख्याँ ज्यादा है, यहां छात्रावास सुविधा भी है, जिसके कारण खुलेआम लडाई होती है, लेकिन परिक्षाओं के दिन स्थिति बदल जाती है, देखा जाये तो नीमकाथाना मे अनेक बी.एड.काॅलेज,आईटी संस्थान व अनेक स्कूल व प्रशिक्षण संस्थान है। छात्र-छात्राओ के माता पिता पढ़ाने लिखाने की बजाय पैसे व इज्जत को ज्यादा महत्व देते है, ये प्रवृतियाँ उच्चवर्ग के लोगो मे भी पाई जाती है। नीमकाथाना मे अभी फिलहाल मीटरगेज की जगह ब्राडगेज का काम पूरा होने वाला है, नीमकाथाना राष्ट्रीय राजमार्ग 8 और 10 से जुडा हुआ है। नदियों में कान्तली नदी जो गणेश्वर की पहाड़ियो से निकलती है, नदी नगर के चारो तरफ बहती हुई झून्झून जिले में जाकर विलिन हो जाती है, इसके अतिरिक्त प्रीतमपुरी झील है। यहाँ वर्षा का अभाव रहता है ज्यादातर लोग रोजगार के लिए मुम्बई, गुजरात जाते है। ज्यादातर ग्रामीण कृषि पर आधारित है। राजनितिक स्थिति के अन्र्तगत देखा जाये जो हाल के विधानसभा चुनावों में काग्रेस से अभी रमेशचन्द खण्डवाल जीते है इससे पहले भाजपा से सैनिक कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष प्रेमसिंह बाजौर थे। वहाँ के लोग वोट उसी को देते है जो विकास कार्यो पर जोर देता है।


नयाबास गांव कैसा है?[संपादित करें]

अब बात आती है नयाबास गांव की जो नीमकाथाना तहसील के पाँच कि.मी. के दायरे के अन्र्तगत आता है। यह गांव मीणा जनजाति का है, जहाँ वर्तमान परिदृश्य में देखा जाये तो चपरासी से लेकर भारतीय प्रशासनिक अधिकारी के पद पर आपको लोग मिल जायेगे गांव शिक्षा की दृष्टि से आगे है, वही दूसरी और गांव में युवा पीढी नशे में डूबी हुई हैै। गाँव में कई ठेको पर खुले आम शराब बेची जाती है जो कि एक कमजोरी है इस गांव की। यहाँ शराब बहुत सस्ती मिलती है। जिसके कारण आस-पास के गाव जिनमें गोरधनपुरा, कोटडा,सराय, सुरपुरा, कैरवाली, हेमावलीढाणी, पुरानाबास आदि यहीं से शराब खरीदकर ले जाते है। गांव बहुत छोटा है विवाह के बाद घर का सारा काम औरते ही सम्भालती है। सुबह झाडू- बर्तन से लेकर रात के खाने तक कठिन परिश्रम करती है, दिन भर साफ- सफाई करना, बकरी व भैंस की देखभाल करना आदि सम्मिलित है, गांवो मे लड़के शादी इसी उद्देश्य से करवाते है, ताकि कोई काम करने वाली घर मे आए वहां लडकी की पढाई महत्वपूर्ण नही है, चाहे वहा अध्यापिका ही क्यों न हो काम को महत्व दिया जाता है कि कितना काम कर सकती है। गंाव के समाज के अन्तर्गत जादू-टोने, टोटके और अन्धविश्वास अभी भी सामाजिक कुरीतिया व्याप्त है, जैसे दहेज वाली लड़की से शादी करना चाहे वह अनपढ़ हो या अध्यापिका हो। शादी का अलग ही माहौल गांव में देखने को मिलता है। लड़की के घर पहुंचने से पहले दुल्हे को एक बार गांव के बीच बने मन्दिर मंे आशीर्वाद लेना पड़ता है, फिर जाते है लडकी के घर, जाते वक्त रास्ते में शराब, बीयर आदि का सेवन बस में पीने वालों के द्वारा किया जाता है। वहां बारातीयों द्वारा खाने-पीने के बाद वहां से उनको रवाना किया जाता है। दूसरे दिन दुल्हा- दुल्हन एक साथ बैठकर आ जाते है, इसके अलावा गांवो में पण्डितों का वर्चस्व है। बच्चे के जन्मते ही, फिर शादी, फिर उसके मरने तक पण्डितों को बुलाया जाता है, उनकी नेक सलाह ली जाती है। दक्षिणा के तौर पर खूब पैसा व दान लेते है बिना पण्डित बुलाये कोई कार्य नहीं किया जाता है पण्डित जो मांग करे उसे देना ही होता है किसी उत्सव, व्रत व त्यौहारों पर भी पण्डितों को भोजन व दान दक्षिणा दी जाती है। किसी व्यक्ति के मरने पर जो कपड़े या औरते जो लुगडी उस पर डालती है, वह सब पण्डित ही ले जाता है। इसके अलावा शादी का भी पूरा फायदा पण्डित उठाते है। नयाबास गांव के पास ही गोरधनपुरा गांव है जहां पण्डित ज्यादा रहते है, कोई भी धार्मिक कार्य हो पहले उन्हे बताना होता है, किसी औरत को करवा चैथ की कहानी कहता है या करवा चैथ के दिन किसी के घर पण्डित का आना शुभ माना जाता है, उस दिन भी उसे स्वेच्छा से दान दक्षिणा व भोजन पान खिलाया जाता है। गांवो मे अभी भी भूतप्रेत,जादू-टोना फैला हुआ है। जगह-जगह चैराहो पर बडी मात्रा में मिठाई व खाने-पीने की चीजे रखी जाती हैं, इसके अलावा कपडे,जीवित मुर्गी व पैसे व अण्डो को रखा जाता है, गांव में कई बुजावली होती है जो वहां के व्यक्तियों के गृहक्लेश या दःुख आदि का निदान बताती है उसके बदले वह कुछ कपडे व पैसे लेती है और घर में किसी व्यक्ति का अशुभ चल रहा हो तो वह उसे बताती है कि यह क्यों हो रहा है। वह कुछ तरीका बताती है कि मां काली को बतौर भेंट, एक पावा शराब व एक बकरे की बलि देनी होगी, तभी वह कष्ट दूर होगा। यदि किसी के पति पर भूत का साया है तो उसके लिए गांवो में बाबाजी या सयाणा होते है, जो उस व्यक्ति में भूत को निकालते है बोतल में। बाबाजी घर मे वो हवनकुण्ड करवाते है। उसके प्रभाव से वह भूत भाग जाता है। नयाबास गांव मे अनेक आधारभूत सुविधाओं की अभी भी कमी है। बेरोजगारी के मारे कई व्यक्ति सुबह से शाम तक शराब का सेवन व गाली गलौच व पत्नी के साथ या पडौस से झगडा करना व ताश खेलना एक दूसरे की चुंगली करना, एक-एक जमीन के टुकडे के लिए लडना जैसे उनकी दुनिया ही उजड गई हो ऐसे लगता है। बिजली व पानी की समस्या, सडको व नालियो का अभाव अभी भी है। विकास कार्य ज्यादा नहीं हुआ, जो भी सरपंच बन गया वह अपने तक ही सीमित रहता है, अपने आप को ही सुधारता है बाकि से कोइ्र्र मतलब नहीें। जब वोट लेना होता है, तब अनेक वायदे करता है, मंै हैंडपम्प,टयूबवेल लगा दूंगा व गरीबोें के लिए मकान बना दूंगा, नये-नये स्कूलों की व्यवस्था व पानी,बिजली, व अन्य आधारभूत सुविधाओं को पूरा करूगा लेकिन जीतने के बाद मै ही हूं और कोई नही। इस गांव का परिदृश्य देखते है तो वह कुछ अलग ही देखने को मिलता है। सुबह उठना चाय बनाना फिर झाडू फिर पौचा फिर बर्तन साफ करना फिर भैस व बकरी को खाना डालना,फिर रोटी बनाना फिर खाना फिर नहाना फिर चिरी-मिरी करना,पडोस वाली से बातचीत फिर अपने काम पर लग जाना शाम तक फिर सोना फिर उठना फिर काम करना। इस तरह यह प्रक्रिया अभी भी गांवो मे इसी तरह चलती है। गांव मे ज्यादा बकरियां पाली जाती है उसी से चाय का काम चलता है, इसके अलावा भैंस भी रखते हेै,लेकिन उनका दूध डेयरी उघोग में बेच दिया जाता है। इस प्रकार नयाबांस गांव का परिदृश्य देखने लायक है यह गांव आसपास गांवो से अपनी अलग विशेषता रखता है अर्थात इसमें कुछ नयापन है। इसीलिए यह गाव नयाबास के नाम से जाना जाता है। गांवो मे मां बाप की सबसे बडी समस्या बेटी को पराया करना ही माना जाता है कि कब यह बोझ सिर से दूर होगा क्योकि शादी में भी बहुत खर्चा आता है। नयाबास गांव में कम उम्र में शादी कर दी जाती है ना तन से विकसित ना मन से सयानी साथ ही अनमेल विवाह भी प्रचलित है। गांव मे लडकियों को ज्यादा छूट नहीं है, उन्हें एक दायरे तक ही सीमित रखा जाता है, पढ़ाई का ज्यादा महत्व नहीं। घर वाले बोलते है, पढ़कर क्या करेगी तुझे तो अगले घर में भैस या खेती का काम करना है ऐसी लोगो की मानसिकता है गांवो में। बराबर का दर्जा नही लडके- लडकियो को भेदभाव किया जाता है उनके साथ इसके अलावा इस गांव मे मन्दिरों को ज्यादा महत्व दिया जाता है, पूजा अर्चना ज्यादा होती है। लडकिया इसलिए करती हैं ताकि मुझे अच्छा वर मिले और मै परीक्षा मे पास हो जाउ। औरते व्रत इसलिए करती है ताकि घर मे सुख शान्ति रहे,पति की उम्र लम्बी हो, मेरे बच्चों को अच्छी जगह पर नौकरी मिले व अच्छी बहु घर आये। इस तरह ऐसी होती है गा्रमीण परिदृश्य की झलक जो मेंने देखी है, जो वास्तविक है-कि किस तरह वहा की स्थिति बदतर है। दूसरी और सकारात्म बिन्दु यह भी है अपना तो अपना ही होता है चाहे वह कैसा भी हो। जहा अच्छाई है, वहा बुराई भी है यही दुनिया का दस्तुर है। हालाकि अब गाव धीरे-धीरे उन्नति की और अग्रसर हो रहे है,सुधार जारी है। इस प्रकार ये थी इस गाव की एक झलक और एक हल्का परिदृश्य।

समाज की घुटन से दूर: जेएनयू[संपादित करें]

देश की राजधानी में कई विश्वविद्यालय हैं लेकिन 'जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय(जेएनयू) का अपना अलग ही अंदाज है। अगर हम बात करें यहां के माहौल की, पढ़ाई की, रहन सहन की, खाने पीने की और यहां के कार्यक्रमों की, तो हर मायने में यह एक अलग अंदाज रखते हैं। यहां का शांत लेकिन सब कुछ कह देने वाला वातावरण, उच्चस्तर की शिक्षा ओर अधिकांश छात्रों की राजनीति में सक्रिय भागीदारी, छात्रों को उच्च स्तरीय शिक्षा में यहां प्रवेश लेने के लिए आकर्षित करती है। हर किसी के मन में यह सवाल स्वाभाविक ही उठता है कि कैसे भी करके इस विश्वविद्यालय में दाखिला ले लूं! दिल्ली में सबसे हटकर व सुरक्षा के मामले में चाकचौबंद यह विश्वविद्यालय अपनी एक अलग पहचान लिए हुए कई विशेषताओं पर खरा उतरता है। जेएनयू एक मिसाल है देश के नवयुवकों के लिए जो अपनी जिंदगी में कुछ कर दिखाना चाहते हैं, लेकिन इसकी प्रवेश प्रक्रिया थोड़ी सी मुश्किल जरूर है। पार्थसारथी चट्टाने, चहचहाते पक्षियों का मधुर सा कोलाहल, प्राकृतिक गुफाएं, रंगबिरंगे फूल, गहरे जंगल यह सब मिलकर जेएनयू के वातावरण को एक अनुपम स्वरूप प्रदान करते हैं। जेएनयू में अधिकांश छात्र-छात्राएं हॉस्टल में रहते हैं। यही वजह है यहां की शाम दिनभर की किताबी पढ़ाई से अलग अधिक मनोरंजक व ज्ञानवर्धक होती हैं। शाम होते ही जेएनयू के प्रसिद्द गंगा ढाबा, पार्थसारथी रॉक, गोदावरी ढाबा, गोपालन जी की लाईब्रेरी कैंटीन, मामू का ढाबा, २४&७ ढाबा जैसी जगहों पर छात्रों की भीड़ देखते ही बनती है। कहीं प्रेम में तल्लीन प्रेमी जोड़े, सिगरेट के कश छोड़ते बुद्धिजीवी, हंसते खिलखिलाते दोस्तों के ग्रुप, और देश दुनिया के मुद्दों को वैचारिक बहसों में खपाते युवा जेएनयू की शाम का हाल बयान कर डालते हैं। जनवरी की सर्दी में गंगा ढाबा के पास खड़ी आइसक्रीम की रेहड़ी पर छात्राओं की भीड़ और उनके मुख पर मंद-मंद मुस्कान से जेएनयू की आनंदमयी शाम का चित्र स्वंय प्रस्तुत हो आता है। जेएनयू के झेलम छात्रावास के बाहर दोस्तों के साथ मुंबई हमले पर विवाद करते हुए एमए समाजशास्त्र के छात्र बूटासिंह के चेहरे का लाल रंग और आंखो में झलक रहा गुस्सा, आतंकवादियों के खिलाफ उनकी प्रतिक्रिया को व्यक्त करने के लिए काफी है। ये वाद विवाद, मौजमस्ती, उन्मुक्त माहौल में उमड़ते-घुमड़ते विचार वहां की रोजाना की शामों का एक अभिन्न अंग हैं। जेएनयू के मु�य द्वार से लेकर ब्रह्मपुत्र हॉस्टल तक हर जगह तैनात सुरक्षाकर्मी, सड़कों को प्रकाशमय करती स्ट्रीट लाइट इत्यादि जेएनयू की एक सक्रिय सुरक्षा व्यवस्था का प्रमाण हैं। हॉस्टल में ठीक आठ बजे खाना खाने के बाद ठहलने निकल जाना छात्रों की आदत बन चुकी है। वास्तव में जेएनयू की शाम, उसकी सुबह के मुकाबले कहीं अधिक मनोरंजक और उल्लास लिए होती है। लेकिन इस शाम का जितना आनंद इसके बारे में पढऩे में है, उससे कहीं ज्यादा उल्लास तो यहां एक शाम गुजारने में आता है।