सदस्य:Ashok singh001

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  • 1857 की क्रांति जनपद फतेहपुर और ठाकुर दरियाव सिंह*
   जम्बूद्वीप , भारत खंडे, आर्यावर्त आदि के नाम से जाने जाना वाला अपना भारत देश विश्व में जगतगुरु रहा है। भारत धन-धान्य और खनिज संपदा से परि पूर्ण  रहा है। भारत में समय समय पर बहुत से आक्रमण हुए। भारत की यही संपदा और भारतीय राजाओं के आपस में लड़ने झगड़ने के कारण सातवीं शताब्दी में पहली बार मुस्लिम दक्षिण भारत के मालाबार तट पर अरब से पहुंचे। भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग 1206ई से अंग्रेजों के आने तक मुस्लिम राज रहा ।वैसे तो 6 नवंबर  1862 तक बहादुर शाह जफर आखिरी मुस्लिम शासक कहा जाता रहा है।
        
         अंग्रेज भारत में पहली बार 24 अगस्त 1608 को सूरत बंदरगाह में उतरे किंतु 1615ई में टॉमस रो के जहांगीर  दरबार में पहुंचने के बाद ही अंग्रेजों ने धीरे-धीरे  भारत में अपना साम्राज्य विस्तार प्रारंभ किया और 1757 से भारतीयों पर राज करने लगे ।अंग्रेजों की अत्याचार और भारतीय सैनिकों के साथ अमानवीय व्यवहारों से पीड़ित होकर लगभग 100 वर्षों तक की गुलामी से  आजादी के लिए *29 मार्च 1857 को बंगाल के बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे ने गाय की चर्बी लगी कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया। फल स्वरुप 8 अप्रैल 1857 को उन्हें इस विद्रोह के लिए फांसी दी दी गई। विद्रोह की यह चिंगारी 10 मई 1857 को मेरठ से संगठित सैनिक विद्रोह के रूप में उभरी।* सत्तावानी क्रांति का आगाज हो गया। विद्रोह के प्रमुख केंद्रों में कानपुर ,इलाहाबाद, लखनऊ, बरेली, झांसी, ग्वालियर, फतेहपुर और बिहार का आरा जिला शामिल था। कानपुर में नाना साहब ,तात्या टोपे ।इलाहाबाद से लियाकत अली, लखनऊ से बेगम हजरत महल, बरेली से खान बहादुर ,झांसी से रानी लक्ष्मीबाई, फतेहपुर से ठाकुर दरियाव सिंह,ठाकुर जोधा सिंह ने 1857 क्रांति की मशाल जलाई। जनपद *फतेहपुर के 1857 क्रांति के नायक अमर शहीद ठाकुर दरियाव सिंह का जन्म 1795 ईस्वी में खागा गढ़ी के प्रतिष्ठित क्षत्रिय  ताल्लुकेदार ठाकुर मर्दन सिंह के यहां हुआ। ठाकुर मर्दन सिंह के दो पुत्र ठाकुर दरियाव सिंह व ठाकुर निर्मल सिंह थे।*
 जनपद में अंग्रेजों ने 10 नवंबर 1801 ई तक अंग्रेजों द्वारा शासित रहा।  इसके बाद खागा तालुका 1802 से ठाकुर दरियाव सिंह के पूर्वजों के नाम रहा और ताल्लुकेदार रहे ।10 जून 1857 को सत्तावानी क्रांति की घोषणा के पूर्व ही ठाकुर दरियाव सिंह मई और जून 1857 के मध्य अवध केसरी राणा बेनी माधव सिंह के परामर्श के लौटे ही ना पाए थे कि 4 जून को कानपुर व 7 जून को इलाहाबाद में स्वतंत्रता की घोषणा हो चुकी थी। *8 जून 1857 को ठाकुर दरियाव सिंह के पुत्र ठाकुर सुजान सिंह भाई  ठाकुर निर्मल सिंह ने साथियों ने खागा कोषागार पर कब्जा कर लिया और सरकारी बंगले को जला दिया।खागा को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया।* तत्कालीन थानेदार खागा खुर्शेद अली द्वारा 4 और 5 फरवरी 1858 की दर्ज रिपोर्ट में इसका जिक्र है।  खागा के अधिकार के बाद ठाकुर शिव दयाल सिंह जमरावां, ठाकुर जोधा सिंह अटैया रसूलपुर, ठाकुर दरियाव सिंह व तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर हिकमत उल्ला खा के सहयोग से 9 जून को फतेहपुर को चारों ओर से घेर लिया गया। अंग्रेज कलेक्टर मिस्टर जे डब्ल्यू शेरर और अन्य अधिकारी रात को ही बांदा की ओर भाग गए। अंग्रेज जज मिस्टर टक्कर बाबा गयादीन दुबे कोराई से सहायता मांगने गया किंतु उसे कोई सहायता ना मिली। उसी रात मिस्टर टक्कर ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली ।इस प्रकार *10 जून 1857 को संपूर्ण फतेहपुर आजाद हो गया* और स्वतंत्र फतेहपुर को हिकमत उल्ला खा को कलेक्टर बनाया गया। इलाहाबाद, फतेहपुर कानपुर में स्वतंत्रता के बाद 1 जुलाई को नाना साहब ने पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।
      इधर कर्नल नील ने 11 जून 1857 को पुनः इलाहाबाद के किले पर अपना अधिकार बना लिया 28 जून 1857 को अंग्रेजी सेना तेजी से मेजर रेनॉल्ट के नेतृत्व में खागा की ओर  बढ़ी। खागा में ठाकुर दरियाव सिंह और उनके साथियों ने बड़ी वीरता से लड़ते हुए अंग्रेजी सेना को परास्त कर दिया किंतु कुछ ही समय बाद  पुनः खागा पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। मेजर रेनॉल्ट की सहायता के लिए मेजर  हैवलॉक  इलाहाबाद से आकर बिलन्दा के पास मिला। 11 जुलाई को बिलन्दा का भीषण युद्ध हुआ। इसके बाद 12 जुलाई 1857 को अंग्रेजों ने फतेहपुर पर अधिकार कर लिया और कलेक्टर हिकमत उल्ला खा का सिर कलम कर कोतवाली में लटका दिया गया।

15 जुलाई को औंग में ठाकुर दरियाव सिंह और कानपुर से नाना साहब के द्वारा भेजी गई बाला राव की सेवा ने संयुक्त रूप से युद्ध किया जिसमें क्रांतिकारियों की पराजय हुई। 16 जुलाई 1857 को कानपुर के अहरवा के पास युद्ध हुआ जिसमें नाना साहब को पीछे हटना पड़ा ।17 जुलाई 1857 को कानपुर पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। इसी दौरान दिसंबर 1857 में हनुमान धारा चित्रकूट युद्ध में ठाकुर दरिया सिंह के परिवार के ठाकुर बहादुर सिंह व ठाकुर अवधूत सिंह इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए ।

  • 5 फरवरी 1858 को खागा में ठाकुर दरियाव सिंह अपने पुत्र सुजान सिंह व अन्य साथियों साथ किसी कार्य से आये थे। किसी मुखबिर की सूचना पर भोजन करते समय गिरफ्तार कर लिए गए। जिसमें ठाकुर दरियाव सिंह, पुत्र सुजान सिंह, भाई निर्मल सिंह ,भतीजे बख्तावर सिंह रघुनाथ सिंह, तुरंग सिंह पर 9आरोप लगाए गए एक माह तक न्याय का झूठा स्वांग रच कर 6 मार्च 1858 को जिला जेल फतेहपुर में फांसी दे दी गई।* भारत माता का अमर सपूत देश पर बलिदान हो गया।
  • संदर्भ स्रोत* -
  • 1-पुस्तक भारत सरकार हूज हू आफ़ इंडियन मार्टयर्स 1857 वॉल्यूम 3*
*2-डिक्शनरी आफ़ मार्टयर्स इंडियाज फ्रीडम स्ट्रगल*1857 पेज -147 वॉल्यूम -2*
  • 3-गदर का इतिहास*
  • 4-1857 के दहकते अंगारे(लेखक-सरनाम सिंह सूर्यवंशी)*
  • 5- बैसवाड़ा का इतिहास(1997)लेखक-डॉ वासुदेव सिंह*
  • 6-जंगनामा-गदर के फूल(लेखक-अमृत लाल नागर)*
  • 7-1857 और दरियाव सिंह(लेखक- डॉ. शिव गोपाल मिश्र)*
*8-अदालती आदेश*