सदस्य:Amardas30278

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Amardas

  1. रविदास चालीसा
    संत शिरोमणि गुरु रविदास
    Ravidas Chalisa
      [1]
                                           जय गुरु रविदास दीन दयाला करू विश्‍वास रटू नित माला |
                                             चाहूं और मेरे घोर अंधेरा तेरे बिना गुरु कोई ना मेरा |
                                          अगम मे अपार तुम्हारी माया पार तुम्हारा किसी ने नही पाया |
                                              पंथ वरण तुम्हारा ना कोई नाम रटे को मुक्ति होई |
                                             दिनन के गुरु नाथ कहाए सकल दुखो से मुझे बचायो |
                                           कहां तक वरण महिमा तुम्हारी एसी ना बुद्धि सतगुरु हमारी |
                                                 १ काशी मे प्रकट भयो गुरु भक्त रविदास 
                                                 २ मा कर्मा राहु पिता दादा हरीनद खास 
                                                 ३ स्ंवत विक्रमी नृपती चोदह सो तेंतीस
                                                 ४ माघ शुक्ला पूर्णिमा रवि उगत् प्रभात 
                                           माता- पिता ने भक्ति कमाई भक्ति भये हरीनद सुखदाई 
                                           चतुर कोर प्रिय तीन की नारी उन्होने भक्ति  किनी भारी
                                           थॉला गिरी पर आसन भारा मुनि सदनन वचन उचारा 
                                           ते हरीनद, करी यम मुनि सेवा तुम्हारा सूत होगा सुखदेवा 
                                           आशीर्वाद लेकर घर को आए भक्ति प्रताप राहु सूत पाए 
                                           भक्ति मे राहु चित दीना सागर तेर जाए तप कीना 
                                           रेवतप्रग से शिक्षा पाई तन मन से हरी भक्ति कमाई 
                                           भक्ति प्रताप भई मम वाणी तुम्हारा सूत होगा ब्रह्म गियानि
                                           हार मान दुर्ज़न भाग जावे उनको कोई जीत ना पावे 
                                           एसी प्रचन्ढ़ भक्ति दिखलाए पाप पाखण्डी निकट न आवे 
                                           प्रसन्न्न होकर घर को आए विमल होये नित हारीगुण गये 
                                           कुच्छ दिन पीछे प्र्कट रविदास पूरण भई भक्ति की आशा
                                           कर्मा माता हारीगुण गाये प्रसन्‍न् होय अती दय लुटाए 

सुर नर नारी दर्शन को आये अनन्द भये पुष्प बरसाये बालक पन में हरी भक्ति धारी हुए दयाल आप त्रिपुरारी मात पिता मिल मता उपाए ब्याह करने को तूरंत ठहराये ब्याह से रुठ गये रविदास मुझको है सतगुरु की आस परमानन्द गुरु कियो सदा चारी उनसे सीखी विद्या सारि प्रथम विजय गंगा पर पायी पाप् पाखण्डी दिए भगायी नर नारी दर्शन को आये सबको परम उपदेश सुनाये सत गुरु ने सबको एक बनाया एक ही ब्रहमा सकल काट काया ना कोई ऊंचा ना कोई नीचा सबका एक पिता ओर भाई पूजा पर्व पडा अति भारी नहाने गये बहुत नर नारी योगवती ओर झाली रानी चेली भई अछुत की रानी देख चकित भई अभिमानी प्रसन्न हुईं अति झाली रानी याग किया झाली ने भारी जीमन गये अति नर नारी गुरु रविदास वँहा सन्मुख पाए घृणा से नही भोजन खाये पॉप कहे नही भोजन खाए सीधा दो अलग बनावे झाली ने रविदास बुलाये सबको सूखे सीधे दिलवाये सीधा ले ब्राह्मण हर्षाये अपना भोजन अलग बनाये संतो का किना अपमाना ब्राह्मण बने ब्रह्मा नही जाना अपनी पंगत अलग लगाई अन गिनत दिए रविदास दिखायी देख चकित भये अभिमानी मगन हुई अति झाली रानी सबने जय 2कार मनाये सब नर नारी जिम घर आये गंगा स्नान विप्र एक जाये गुरु रविदास प्रसाद पठायो प्रसाद दियो गंगा माता को जल में नही दरियों या को यम अरदास माता से कहना हात बढ़ाए तव दे देना विप्र ने जा जल मैं वचन सुनाओ यह प्रसाद रविदास पठायो हात बढ़ाये गंगा ने ले लिया स्वर्ण का एक कँगन दिया हरिषत बोली गंगा रानी यह कंगन रविदास को देना विप्र के मन में पाप समाय मार्ग छोड़ कुमार्ग धाया विप्र कहे भया जान का रासा तित देखु बेठे रविदासा आंख बचाये विप्र घर आया कँगन राजभवन पहुंचाया रानी ने जब कँगन पाया दूजे हेतु हुकम फरमाया राजा से यु भोली रानी प्राणनाथ सुन माम् वाणी या तो दूजा कंगन पाऊ नही तो प्राण गवाऊ राजा ने ब्राह्मण बुलवाया तो पे कंगन कहा से आया हिरदय बीच ब्राह्मण घबराय मोहे कंगन रेती में से पाया या तो दूजा कंगन लाओ नही तो सज़ा मोत की पाओ राजा को संग ले कर धाया रविदास जी की कुटी पर आया भूप कहे यदि गुरु तप धारी पर्चा दे सेवा करे तुम्हारी कहे रविदास होये मन चंगा दूजा कँगन देगी गंगा भक्त ने सुर्ती गंगा से लाई प्रकट हुई कुंडी में आई भाती2 कंगन दिखाई चकित भई पंडित शरमाये भूप ने गुरु को शीश नवाया सबने जय2 कार मनाया विप्र के मन मे कुमति समाई हरि की मूर्ति जल में फिकवाई कठिन पेज विप्र ने लाई जाकी पथ रखे हरि राई जाकी मूर्ति जल पर तर जाई कन्धे रख कर नगर डुलते गुरु रविदास ने हरी गुण गाये दुजे काट पाषण तीराये कौतुक लखे सकल नर नारी गुरु ने पायी विजय करि मीरा ओर कुमाली बाई चेली भई मन में हरषाई मीरा जी ने यग रचाई सब पे नियोता दिया पंहुचाई जीमन पॉप बेठ गए सारे अनगिन दिये रविदास निहारे विप्रो ने किना हल्ला भरी बन गए नीच जनेऊ धारी राज सभा मे गुरु बुलाये छाती चिर जनेऊ पाए गुरु रविदास कहे समझाई एक ही राम रमा सब माही सबका एक बनावन हरा पन्थ वरन से सतगुरु नियारा केसी विचीत्र गुरु लीला थारी कहा तक वर्णी बुद्धि हमारी जो चालीसा गुरु रविदास का गाये सब सुख भोग परम पद पाए ////गुरु समनदास जी कहे समझाये फिर नई चौरासी में आये//////

  1. संत गुरु रविदास चालीसा