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--Aishwarya bhasme (वार्ता) 04:58, 31 जनवरी 2014 (UTC)हिन्दु धर्म्

हिन्दु धर्म् श्रुश्ति का आदि धर्म् है । जिस् प्रकर् वेद् अपौरुशेय है , उसी प्रकर् हिन्दु-धर्म् अपौर्शेय है, अत: ईश्वरीय धर्म् है। अतैव् सर्वाधिक् उदार् और्  समन्वयशील् धर्म् है । यह वर्तमान् जीवी धर्म् है और् सत्य तथा क्शत् का गट् - बन्धन् है । प्रक्रुति और् मनुश्य की एकात्मता का धर्म् है । बाहर् से जो सुर्य का प्रकश् है , वही भीतर् ब्रुद्धि का प्रकश् है ; बाहर् जो अन्धकार् है , वही भीतर् का भय् है, बाहर् जो त्रुण्, विरुध् और् व्रुक्श् मै ऊपर् उटाने की प्रक्रिया है ,वही भीतर् की उमन्ग् है । क् एव सर्वशक्ति सम्पन्न् मानता है , जो उसके निर्गुण्-निराकार् होने मै सन्देह् न करते हुए भी उसे सगुण् - सकार् बनने के सामर्त्य से रहित् नहि समझ्ता ; जो उसे किसी एक् प्रत्

हिन्दु-धर्म् की परिभाशा सरल् नही; एक् वाक्य मै उसकी पहचान् कराना सम्भव् नहि। वस्तुत: ’वेदमुलक् , उपनिशद् -पुश्ट्, पुराण्- पल्लिव् हिन्दु-धर्म् वह् धर्म् है; जो परमात्मा के सबेव्यापक् एव व्यक्ति का बन्दि नहि बनाता , जो आत्मा के तत्वत्: उससे प्रुतक् नही समझत ;जो उसे किसी एक् ग्रन्त् एव व्यक्ति का बन्दी नहि बनाता जो आत्मा को तत्वत: उससे प्रुथक् नहि करता; जो मन् - वाणी कर्म् की एकता के साथ् भी प्रतीक् का प्रत्यख्यान् नहि करता : जो मन्- वाणी करने कि एकत के साथ् , ज्यान्-योग्-कर्म् भक्ति मै एक् अथवा पुरुशार्थ् की प्राप्ति को जीवन् का लक्य मानता : जो मन्-वाणी कर्म् की एकता के साथ्, ज्यन्-योग्-कर्म भक्ति मे एक् आथवा सर्व-समन्वित पथ पर् चलते हुए धर्म्-आर्थ्-काम्-मोक्श् आथवा पुरुशर्त की प्रप्ति के जीवन् का लक्श्य मानता है । किसी बिन्दु या किन्ही बिन्दुओ पर् असहमति हिन्दु-धर्म् को सत्य हो नही , रुचिकर् भी है । किसी बिन्दु या किन्ही बिन्दुओ पर् असहमति हिन्दु-धर्म् को सत्य हो नही, रुचिकर् भी है। कारण् हिन्दु-धर्म् का ब्रह्म् विश्वात्मा है, उदार् है , मुक्त् है। उस्को आत्मवादि साधना व्यावहारिक् हि नही उदार् भि है । उसका परमात्मा ’ एकमेवाद्वितीयम्’ है ।

हिन्दु-धर्म् का साधना -पक्श् आत्यन्त व्यापक् है । यहा ’मुसाल्मान् के आतिरिक्थ् आन्य सभि काफिर् है ’ का सिदन्त्त् नहि है । ईसाई-धर्म् अब् केवल् बाइबल् मे सिमट् कर् रह गया है। यहा तो आस्तिक् हो या नस्तिक् , भावुक् हो या वैद्धिक् , प्रतिक्रियावादी हो या क्रन्तिदर्शि, सभी को हिन्दु-धर्म् मै कोइ-न-कोइ पथ प्राप्त् होता है। अत: सैद्दान्तिक् और् व्यावाहारिक् साधना-पक्शो की दुश्टि से हिन्दु-धर्म् सन्सार् का सार्वाधिक् सम्पन्न् धर्म् है।

सन्सार् का अन्य धर्म् मानव्-प्रणीत है। इस्लाम् के प्रवतेक् मुहम्मद् साहब् और् ईसाइयत् के प्रणेता क्राइस्ट् थे; मानव् चाहे कितना भी महान् हो, वह मानव् ही रहेगा। मानव् सदा अपुण्र् है, प्रक्रुति के सम्मुख् बना है। इइसलीए मानव्-निर्मित् धर्म् अपुर्ण् रहे, सीमाओ मे सिकुडे रहे और् आलोचना के पात्र् बने। दुसरी और् हिन्दु-धर्म् शुद्द् ईश्वरीय धर्म् है। मानव् द्वारा निर्मित् नहि। अत्: उसका सम्बन्ध् सीधा ईश्वरीय सत्ता से है।

हिन्दु-धर्म् के आदि व्याख्याता वेद् है। पदर्थ् पहले निर्मित् होगा ,तभी उसकी व्याख्या होगी। जब् हम् वेदो को अपोरुशेय् मानते है तो हिन्दु-धर्म् स्वत्: प्रक्रुत्-धर्म् हो गया। प्रह्रुथि के साथ् उत्पन्न् धर्म् बन् गया।

प्रक्रुति सतत परिवर्तन् शील् है। ईसलिए जीवन् सतत परिवर्तन् शील् हैइ, अत: हिन्दु-धर्म् भि सतत्-विकासमान् धर्म् रहा । जडाता उसे अवरुद्द् न कर् सकी; उसके प्रवाह को विचलित् न कर् सकी । एक् ग्रन्थ् प्रत्येक् युग् और् भुमन्डल्के लिए सर्वद उपयुक्त् नहि रह् सकता । एसीलिए जीवन् हिन्दु-धर्म् मे युगानुरुप् स्प्श्टी करण् हुए, मान्यताए मिली, सिद्दन्त्-सिद्द् हुए । वेद्, ब्राह्ण, आरण्यक्, उपनिशद्, पुराण्, उपपुराण्, महाभरत्, रामचरीत् मनस् इसी तथ्थ के प्रमाण् है । 

हिन्दु-धर्म् की प्राणवता , अजर्-अमरता का रहस्य है-उसकी उदार् प्रक्रुति और् समन्वय् प्रव्रुत्ति । जैन्, बौध्द्, सिख्-मत् हिन्दु-धर्म् की शखाए है। अपनी उदार् प्रक्रिति के कारण् उसने तीनो मत् प्रवत्रको को महापुरुशो मै स्थान् दिया । बुद्द् की गणना तो दशवतारो ही हो गयी है । समन्वयात्मक् प्रव्रिति का परिचय् विदेशी आक्रमण् तथा उनके धर्माक्रमण् को आत्मासात् करने मे मिलता है । युनानी , शक् ,हुण् आदि सबका हिन्दु-धर्म् मे सामन्वय् हो गया । इतना हि नहि , उनकि कुच् परम्प्राए और् सभ्यताए सभि हिन्दु-धर्म् मे पच् खप् गई। हिन्दु-धर्म् प्रेम्-धर्म् है ।जोर्-जबरदसती तलवार् के बल् पर् उसने अपना साम्राज्य् नहि फोलाया । न ही वह किसी धर्म्-ग्रन्थ् या धर्म् पुरुश् की निन्दा ही करता है और् नवाइबिल तथ कुरान् की तरह् अन्य धर्मावलम्वियो से ध्रुण् का पाट्-पदाता है।

स्त्रियो और् हच्चो को छोडकर् , सब् पुरुषो को मार् डालो, सब् मवेशियो को मार् डालो और् दुश्मन् का जो भी सामान् मिले, उसे अपनी लूट् मे शामिल् करके ऎश् करो।-बैइबल्

काफिरो को द्वारा तुम् मार् दिए जाओ, इससे पहले तुम्ही उन्हे मार् डालो। इसके बदले अल्लाह् तुम्हे जन्नत् बख्शोगा। - कुरान्