सदस्य:ASHOK KUMAR NEGI

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कोरकू समाज के लोकदेवता – मुठवा  देव

            भारतीय संस्कृति में विविध रीति रिवाजों ,परम्पराओं ,मान्यताओं को लेकर अनेक  समाज निवासरत हैं ,इनमे मध्यप्रदेश  प्रान्त के विभिन्न अंचलों में निवास कर रहे अलग – अलग जनजाति समुदाय में विभिन्नता  न केवल के अनुवांशिकीय ,जीवन शैली और सांस्कृतिक परम्पराओं के स्तर पर परिलक्षित होती है ,बल्कि उनकी सामाजिक –आर्थिक संरचना ,धार्मिक आस्था और भाषा –बोलियों में भी स्पष्ट दिखायी देता हैl वहीँ मध्यप्रदेश का परिवेशगत, भौगोलिक , सांस्कृतिक तथा भाषिक भिन्नताओं के कारण एवं  अपनी विलक्षण जटिलताओं के कारण यहाँ का  आदिवासी संसार एक अलग  पहचान से जाना जाता है l

      मध्यप्रदेश में कोरकू ,गोंडी ,भील ,हलवा, बैगा आदि अनेक आदिवासी भाषाएँ और बोलिओं का प्रचलन है ,इन भाषा बोलिओं का कोई व्याकरण या लिखित साहित्य नहीं है l ये भाषाएँ श्रुति – स्मृति परंपरा से अज्ञात कल से प्रचलन में है l यूँ तो मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले में एक से अधिक  जनजातीय समाज निवासरत हैं पर आदिवासी विकासखंड खालवा के वनांचल में कोरकू जनजाति का बाहुल्य है,यह समाज खण्डवा जिले के अलावा  मध्यप्रदेश के अनेक स्थलों पर निवास करता है प्रमुख रूप से बैतूल, बुरहानपुर, छिंदवाडा  के अलावा मध्यप्रदेश से लगे हुए  महाराष्ट्र वनक्षेत्र  मेलघाट में भी इनका निवास पाया जाता है l

कोरकू शब्द का अर्थ है मानव ,कोरकू कोरकू शब्द में - कोरु का अर्थ है मनुष्य और कु , एक बहुवचन है जो एक समूह है जो लोगों के समूह को दर्शाता है। कोरकू जनजाति स्वयं को दुनिया की पहली मानव प्रजाति मानती है l

सरल जीवन पद्धति ,साधारण रहन सहन इनकी विशेषता है अवलोकन एवं परिचर्चा से ज्ञात होता है कि  सामान्यतह किसी भी कार्य को करने, कार्य के सफल संपन्न होने के लिये,विघ्न बड़ा दूर करने के लिए , कोरकू समाज भी कार्य की शुरुआत पहले अपने इष्ट देव का स्मरण, प्रार्थना ,अर्जी लगा कर करता है l     

मुठवा देव  मंदिर, स्थान ग्राम भगावा, आदिवासी विकासखंड – खालवा जिला खण्डवा

       मुठवा देव को कोरकू समाज में प्रथम पूज्य देवता के रूप में माना  जाता है,  भारतीय संस्कृति में किसी कार्य का शुभारम्भ पूजन ,प्रार्थना से होता है मुठवा देव को  कोरकू समाज में ,बहुल गावों में ग्राम के बीचों बीच एक चबूतरा बनाकर ऊँचे स्थान पर इनका स्थान नीम, पीपल , बड  आदि पेड़ के नीचे  समाज के पारंपरिक  विधि - विधान से   देव प्रतीक एक लकड़ी , काठ तथा  इसी के साथ देव प्रतीक पत्थर रख कर स्थापित किया जाता है l  समाज के पारंपरिक  विधि - विधान से  मुठवा देव के रूप में इनकी  पूजा समाज के शुभ कार्यों जैसे विवाह आदि के पहले प्रथम देव के रूप में की जाती है l विवाह में माता पूजन भी मुठवा देव स्थान पर ही होता है lपुष्प , अगरबती आदि पूजन सामग्री रखते हैंl

     कोरकू वर्ष भर त्यौहार मानते हैं, अमावस्या को पवित्र मानते हैं और पडवा या दूज पर भी इनके त्यौहार होते हैं ,ज्येष्ठ माह में डोडवली ,सावन में जिरोती, नागपंचमी, राखी, भाद्रपद में पोला, कवर मास में देव दशेरा कार्तिक माह में दिवाली माघ में दशेहरा और फाल्गुन के महीने में होली इनके प्रमुख त्यौहार हैं   देवताओं में महादेव को भी कोरकू समाज में पूजा जाता है l