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सदस्य:ADITITIWARI 2231119/प्रयोगपृष्ठ

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एपन[संपादित करें]

एपन (कुमाऊँनी - एपण)यह कला भारत के हिमालय क्षेत्र कुमाऊं से उत्पन्न एक स्थापित अनुष्ठान वादी लोक कला है। इस कला का प्रयोग मूलरूप से विशेष अवसरों,घर में होने वाले समारोहों और अनुष्ठानों में किया जाता है। इस कला को प्रयोग करने वालों का यह विश्वास है कि एपन से दैवीय शक्ति उत्पन्न होती है जो बुरी शक्तियों को समाप्त कर अच्छा भाग्य प्रदान करती है। यह कला इसलिए विशेष है क्योंकि इसे ख़ाली दीवारों और भूमि पर गेरू द्वारा लाल रंग कर चावल के बने हुए सफ़ेद पेस्ट से बनाया जाता है। इस कला को अक्सर की ज़मीन और पूजा कक्ष की दीवारों तथा घर के मुख्य द्वार पर बनाया जाता है।कुमाऊं की हर महिला इस कला का अभ्यास करती है। इस कला की अत्यधिक सामाजिक सांस्कृतिक तथा धार्मिक महत्व है। [1]

folk art
ऐपन

ऐतिहासिक पृष्ठभूमिः[संपादित करें]

ऐपण कला का आरंभ उत्तराखंड के अल्मोडा ज़िले से हुआ है। जिसकी स्थापना चंद वंश के शासनकाल के दौरान हुई थी। यह कला कुमाऊं क्षेत्र में चंद वंश के राजाओं के शासनकाल में ख़ूब फली-फूली । एपण में प्रयोग होने वाला चित्रांकन और डिज़ाइन कुमाऊँनी समुदाय की मान्यताओं और प्रकृति के विभिन्न पहलुओं से प्रेरित हैं।

एपण कला की उत्पत्ति:[संपादित करें]

ऐपण शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के लेपन शब्द से हुयी है। जिसका अर्थ है प्लास्टर।ऐपण कला भारत के विभिन्न क्षेत्रों में एक जैसी है, इसे अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। • ऐपण (कुमाऊं में) • एइपोना (बंगाल और असम में) • अरिपाना (बिहार और उत्तर प्रदेश में) • मांडना (राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में) • रंगोली (गुजरात और महाराष्ट्र में) • कोलम (दक्षिण भारत में) • मुग्गु (आंध्र प्रदेश में) • अल्पना (ओडिशा में चिता, झोटी और मुरुजा)

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ऐपन्

ऐपण कला का उपयोग —[संपादित करें]

ऐपण कला को अलग-अलग त्योहारों में उसके मूल रूप में प्रयोग किया जाता है । उनमें से कुछ हैं- • गणेश चतुर्थी • मकर संक्रांति • कर्क संक्रांति •महा शिवरात्रि • लक्ष्मी पूजन यह कला भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित है और हर क्षेत्र में अलग अलग रूप से भी जानी जाती है। कुमाऊं की मूल कला हमेशा लाल ईट जैसे रंग से रंगी हुई दीवार पर बनाई जाती है, जिसे अच्छे भाग्य और उर्वरता का प्रतीक भी माना जाता है। कुछ चित्रों के रूपांकन में सरस्वती चौकी, चामुंडा हस्त चौकी, नव दुर्गा चौकी, ज्योति पट्टा, दुर्गा थापा और लक्ष्मी यंत्र शामिल हैं। ऐपण कला पीढ़ियों से माताओं से लेकर उनकी बेटियों और बहुओं तक हस्तांतरित होती चली आ रही है।इसका अभ्यास मुख्य रूप से कुमाऊं की अमीर-उच्च वर्ग के ब्राह्मण महिलाओं द्वारा किया जाता था।

संदर्भ कार्य[संपादित करें]

[2]

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/Aipan_art
  2. https://en.wikipedia.org/wiki/Aipan_art