सदस्य:प्रेम शंकर तिवारी

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रूहानी विद्या क्या है ? वह विद्या जो रूह को गुदा या मूलाधार चक्र से ऊपर उठाकर स्थूल व सूक्ष्म के चक्रों को पार करते हुए कारण के सेंटर को पार कर धुरपद पर रूह को पहुँचा दे।धुरपद यानि प्रभु का धाम ,जहाँ पहुंचने के बाद भक्त वही का वासी हो जाता है और जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। जो गुरु धुर के वासी होते है वही रूहानी विद्या की तालीम दे सकते है। spiritual गुरु कहलाने का अधिकार सिर्फ उन्ही धुर के वासी महापुरुषों को है , जो न सिर्फ खुद धुर के भेदी है बल्कि अपनी दृढ willpower से अपने योग्य शिष्यों को भी उस जगह ले जाने की क्षमता रखते है। भारत में ऐसे गुरूओं की एक विरासत आदिकाल से रही है।हाँ ! प्रत्येक समय व काल में इनकी संख्या बहुत थोड़ी रही है और ऐसे लोगो ने अपने को प्रचार प्रसार से दूर रखकर ,जो लोग प्रभु मर्जी से आ गए उनकी तालीम पूरी कर दिया। ऐसी ही एक हस्ती इस दुनियां में 3 जुलाई 1931 को अवतरित हुई। जन्म से ही विलक्षण और आध्यात्मिक संस्कारो से परिपूर्ण इन परमसंत का नाम डॉ.राजेन्द्र कुमार सक्सेना था।हम सभी आपको प्यार व अदब से भइया जी व बच्चे ताऊ जी कहते थे।आपके पूज्य पिता आपको प्यार से "सेठ" कहते थे। इसलिए आपको सेठ भाई साहब के नाम से भी जाना जाता है। प्रभु ने आपको एक ऐसे घर में जन्म दिया जहाँ शुरू से ही आध्यात्मिक मौहाल था ।आपके पूज्य पिता रूहानी विद्या से मालामाल नक़्शबंदिया खानदान से ताल्लुक रखने वाले उच्च कोटि के सूफी संत थे,जिन्हें पूज्य बाबूजी के नाम से जाना जाता हैे। पूज्य बाबूजी उर्फ डॉक्टर श्याम लाल सक्सेना समर्थ सद्गुरु व संतमत के संस्थापक परमसंत महात्मा रामचंद्र जी उर्फ लाला जी महाराज के प्रिय व लाडले शिष्य थे। मात्र 14 वर्ष की अवस्था मे अपने गुरु महाराज के चरणों मे 1914-15 में हाजिर हुए थे और 16 वर्षो तक उनकी सोहबत व सत्संग में रहकर इस अनमोल आध्यात्मिक ख़जाने को प्राप्त किया था।

पूज्य सेठ भाई साहब का जन्म पूज्य लाला जी (समर्थ सद्गुरु महात्मा रामचंद्र जी महाराज साहब) के आशीर्वाद से हुआ था।पूज्य बाबूजी महाराज के विशेष प्रेम में आकर पूज्य लाला जी महाराज ने बुलंदशहर में ये आशीर्वाद प्रदान किया था।ऐसा ही आशीर्वाद पूज्य लाला जी महाराज ने पूज्य डॉक्टर चतुर्भुज सहाय महाराज के बड़े पुत्र पूज्य डॉक्टर बिजेंद्र कुमार साहब के जन्म के लिये भी दिया था।
पूज्य सेठ भाई साहब ने अपने पूज्य पिता को जीवन के आरम्भ में ही गुरु रूप में स्वीकार कर अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया। पूज्य सेठ भाई साहब के बारे में उनके गुरुदेव पूज्य बाबूजी फरमाया करते थे कि ये जन्मजात संत है और प्रभु के धाम से प्रेम की वर्षा करने के लिए अवतरित हुए है।इनकी सोहबत व सत्संग से पत्थर भी पिघल जाये।जो कोई भी पूज्य सेठ भाई साहब के संपर्क में आया उन्होंने अपने रूहानी प्रेम से उसे मालामाल कर दिया।भक्तो के कष्टो को,उनके आंशुओं को बर्दाश्त न करने वाले पूज्य सेठ भाई साहब बरबस ही दुआ के लिए प्रभु के सामने हाथ उठाकर उनके के कष्टो को अपने ऊपर ले लिया करते थे। सृष्टि के सम्पूर्ण शक्तियों पर अधिकार रखने वाले ये महापुरुष उन शक्तियो से काम लेने के सख्त खिलाफ थे क्योंकि आपका मानना था कि इससे प्रकृति के सामान्य नियम में रुकावट आती है। हां ! विशेष परिस्थितियों में अपने प्रिय भक्तो के लिये उन्होंने नियम भी तोड़े,लेकिन अपवाद स्वरूप। 

अपने प्रियजनो की तालीम को पूरा कर, अपने परम् प्रिय गुरुदेव के दिए कार्यो को पूर्ण कर पूज्य सेठ भाई साहब अपनी नर लीला को समाप्त करना चाहते थे।बस क्या था ,एक स्वांग रचा, एक बीमारी ले लिया। अपने सारे भक्तो को जीवन भर रोग मुक्त करने वाले उन महापुरुष ने उन्ही भक्तो की बिमारियों को अपने ऊपर लेकर हँसते-हँसते उन्हें करीब एक साल तक झेला ।परंतु इन शारीरिक कष्टो के बीच भी एक सामान्य दिन चर्या, चेहरे पर एक अजीब सी ईश्वरीय मुस्कान और ये सन्देश देते रहे कि प्रभु से प्रेम हो जाने व उसमे लय हो जाने के बाद शारीरिक कष्ट पीछे छूट जाते है। उनके अंतिम समय में रोम रोम से उनके प्रियतम की आवाज आ रही थी।अपने भक्तो से 1998 से ही वापसी का इशारा करने वाले पूर्ण योगी,पूर्णपुरुष पूज्य सेठ भाई साहब 9 फरवरी 2002 को सुबह की ब्रह्मबेला में लगभग 5:20 पर अपने प्रियतम में सदा सदा के लिए लीन हो गए और अपने भक्तो को रोते विलखते छोड़ गए ,,,,साथ ही यह वादा भी कर गए की जब तक तुम लोगो को पूर्णता तक ,तुम्हारी रूह को धुरपद तक पहुंचा कर प्रभु में लय नही कर दूंगा ,तब तक तुम लोगो की सुक्ष्म व कारण रूप से निगहबानी करता रहूंगा ,,तुम लोग जब भी मुझे प्रेम से पुकारोगे मैं आऊंगा,,,,,,,। अपनी वापसी के 16 वर्षो बाद तक आपने अपने वायदे को निभाया है,ऐसा आपके प्रियजनो का अनुभव है ,आगे भी निभाएंगे ऐसा विश्वास है। आपको सत सत नमन,,,,,,