सदस्य:प्रेम जनमेजय/प्रयोगपृष्ठ

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प्रेम जनमेजय

साहित्यिक परिचय

              व्यंग्य विधा को पूरी तरह समर्पित प्रेम जनमेजय हिंदी  व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे  लेखन के परंपरागत विषयों में स्वयं को सीमित करने में विश्वास नहीं करते हैं व्यंग्य को एक गंभीर कर्म तथा सुशिक्षित मस्तिष्क के प्रयोजन की विधा मानने वाले प्रेम जनमेजय ने हिंदी व्यंग्य को सही दिशा देने में सार्थक भूमिका निभाई है। परंपरागत विषयों से हटकर प्रेम जनमेजय ने समाज में व्याप्त अर्थिक विसंगतियों तथा सांस्कृतिक प्रदूषण को चित्रित किया है ।
   प्रेम जनमेजय का पहला संकलन ‘राजधनी में गंवार’ बहुत चर्चित रहा। इसके प्रकाशन को हिंदी जगत में महत्वपूर्ण माना गया। इनके अन्य व्यंग्य संकलन हैं- , बेर्शममेव जयते , पुलिस ! पुलिस ! , मैं नहीं माखन खायो, आत्मा महाठगिनी , मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएं , शर्म मुझको मगर क्योें आती ! डूबते सूरज का इश्क, कौन कुटिल खल कामी,मेरी इक्यावन श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएं, ज्यों ज्यों बूड़े श्याम रंग, संकलित व्यंग्य, कोई मैं झूठ बोलया, लीला चालू आहे आदि  ।’’प्रेम जनमेजय के व्यंग्य -लेखन को हिंदी साहित्य के सभी महत्वपूर्ण रचनाकारों एवं आलोचकों ने सराहा है । 
            व्यंग्य के प्रति गंभीर एवं सृजनात्मक चिंतन के चलते ही उन्होंनें सन् 2004 में व्यंग्य केंद्रित पत्रिका ‘व्यंग्य यात्रा’ का प्रकाशन आरंभ किया।  इस पत्रिका ने व्यंग्य विमर्श का मंच तैयार किया। विद्वानों ने इसे हिंदी व्यंग्य साहित्य में ‘राग दरबारी’ के बाद दूसरी महत्वपूर्ण घटना माना है । इस पत्रिका को सभी साहित्यकारों का महत्वपूर्ण सहयोग मिल रहा है । 
     प्रेम जनमेजय ने व्यंग्य-साहित्य में अपने योगदान के अतिरिक्त बाल-साहित्य और नवसाक्षर- लेखन में भी महत्वपूर्ण रचनात्मक भूमिका निभाई है । ‘शहद की चोरी’, ‘अगर ऐसा होता’ आदि बाल रचनाओं के कहानी संकलनों तथा ‘नल्लूराम’ जैसे बाल उपन्यास के माध््यम से बालमनोविज्ञान की उनकी गहरी पकड़ को रेखांकित करते हैं । नवसाक्षरों के लिए प्रेम जनमेजय ने ‘खुदा का घड़ा’,‘हुड़क’ एवं ‘मोबाईल देवता’ जैसी रचनाओं के माध्यम  से नवसाक्षर लेखन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।

प्रेम जनमेजय के व्यंग्य नाटक ‘सीता अपहरण केस ’ का सूत्रधार द्वारा अनेक राज्यों में मंचन किया गया। तरुण पांडेय ने प्रेम जनमेजय के नाटक ‘सीता अपहरण केस ’ एवं सोते रहो का भोपाल में अनेक बार मंचन किया।

        रेडियो नाटक के क्षेत्र में भी प्रेम जनमेजय की उपलब्ध्यिां रेखांकित करने योग्य हैं। इन्होंने न केवल ‘देखो कर्म कबीर का’, ‘पेन’ ‘दीवारें’ जैसे मौलिक रेडियो नाटकों की रचना की अपितु प्रख्यात रचनाकारों की कृतियों ‘साकेत‘ ‘मृगनयनी’ ‘डोरियन ग्रे का चित्र’, रोम की नगरवधू’, किरचें’, पत्थरों के सौदागर’ आदि की भी रचना की। ये नाटक अकाशवाणी के राष्ट्रीय प्रसारण से प्रसारित हुए एवं चर्चित हुए। 
          वरिष्ठ रचनाकार श्रीलाल शुक्ल के सहयोगी संपादक के रूप मे नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी हास्य-व्यंग्य संकलन’ का प्रकाशन हिंदी -व्यंग्य- साहित्य को एक रेखांकित योगदान है । यही नहीं प्रेम जनमेजय ने ‘बीसवीं शताब्दीःव्यंग्य रचनाएं‘ का संपादन भी किया है। इसके अतिरिक्त ‘श्रीलाल शुक्लःविचार विश्लेषण एवं जीवन’,‘मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचना’, ‘ व्यंग्य सर्जक- नरेंद्र कोहली, हिंदी व्यंग्य का नावक शरद जोशी एवं ‘हिंदी व्यंग्य का समकालीन परिदृश्य’ पुस्तके इनके संपादन में प्रकाशित हुई हैं। 
 वेस्ट इंडीज विश्वविद्यालय में अतिथि आचार्य के रूप में भी हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान रहा है । इन्होनंे त्रिनिदाद और टोबैगो में अपने चार वर्ष के प्रवास के दौरान वहां के जनजीवन को गहराई से समझा और जहाजी भाईयों के योगदान को रेखांकित करती हुई ‘जहाजी चालीसा’ काव्यकृति की रचना भी की ।

रूसी सांस्कृतिक केंद्र दिल्ली की संस्था ‘इंडो रशियन लिटरेरी क्लब’ के महासचिव के रूप में प्रेम जनमेजय ने न केवल हिंदी साहित्य पर अपितु रूसी साहित्य पर अनेक संगोष्ठियों का सपफल संचालन एवं संयोजन किया । वेस्ट इंडीज़ विश्वविद्यालय , हिन्दी निधि तथा भारतीय उच्चायोग द्वारा त्रिनिडाड में17 से 19 मई 2002 तक आयोजित त्रिदिवसीय ‘ अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन ’ के आयोजन में अकादमिक - समिति के अध्यक्ष तथा आयोजन समिति के सदस्य के रूप में तथा साहित्य अकादमी, सांस्कृतिक संबंध परिषद् एवं अक्षरम् के संयुक्त तत्वावधन में आयोजित‘प्रवासी हिंदी उत्सव -2006, 2007 एवं 2008 की अकादमिक समिति के संयोजक के रूप महत्वपूर्ण भूमिका रही । प्रेम जनमेजय ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर- अमेरिका,लंदन,मिआमी,त्रिनिदाद, दक्षिण अफ्रीका आदि एवं राष्ट्रीय स्तर पर, देश के हर कोने में व्यंग्य पाठ किया है जिसमें उनको भरपूर सफलता मिली है। पिछले विश्व हिंदी सम्मेलन के ‘विदेशों में हिंदी ’ सत्र की प्रेम जनमेजय ने अध्यक्षता की। इन्हें अब तक अनेक अंतराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। जिनमे से कुछ हैं

उत्तर प्रदेश सरकार का श्रीनारायण चतुर्वेदी सम्मान,, हिंदी अकादमी दिल्ली का साहित्यकार सम्मान, हरिशंकर परसाई स्मृति पुरस्कार ‘व्यंग्यश्री सम्मान’, कमला गोइन्का व्यंग्यभूषण सम्मान, अंतराष्ट्रीय बाल साहित्य दिवस पर ‘इंडो रशियन लिट्रेरी ’सम्मान, पंडित ब्रजलाल द्विवेदी पत्रकारिता सम्मान

‘हिंदी चेतना’,‘व्यंग्य तरंग’, ‘कल्पांत’ एवं ‘यू एस एम पत्रिका’ ने प्रेम जनमेजय पर केंद्रित अंक प्रकाशित किए हैं।