सदस्य:दलित आदिवासी युवा संघ

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फोकस भारत/दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रथम वर्ष की छात्रा भावना मीणा ने अपनी फेसबुक पर आदिवासी और मूलनिवासी समाज को धार्मिक आडबंरों को लेकर कड़ी नसीहत दी है। भावना आवाज-ए-मूलनिवासी नाम से एक किताब भी लिख चुकी है। सोशल मीडिया पर भावना मीणा की पोस्ट काफी चर्चित हो रही है। भावना की पोस्ट इस प्रकार है-

मैं आदिवासी समुदाय के मीणा समाज की एक लड़की हूँ…! मैं ग्राम- टोडा, तहसील-बामनवास, जिला-सवाई माधोपुर, राजस्थान की रहने वाली हूँ..! मुझे पता है मेरी इस पोस्ट को पढ़ने के बाद मीणा समाज के कई धार्मिक आडम्बरों से ग्रसित लोग मुझे गालियाँ तक दे सकते है, लेकिन मैं फिर भी लिख रही हूँ क्योंकि जो वास्तविकता है वो है तो है और उस वास्तविकता को हमें कबूल भी करना चाहिए। 3-4 दिन से देख रही हूँ हमारे आदिवासी समाज के तथाकथित सभ्य लोग मत्स्य जयंती के आयोजन की बात कर रहे है। अब मैं आपको बताती हूँ कि इस काल्पनिक ईश्वर “मीन भगवान” की मीणा समाज में उत्पत्ति आखिर कैसे हुई है..? यह एक कड़वी हकीकत और वास्तविकता है कि आज से 20-30 साल पहले मीणा समाज में कोई भी व्यक्ति मीनेष (मीन) भगवान से परिचित नहीं था…! लेकिन अचानक से मीणा समाज में कुछ लोग यह सिद्धान्त प्रतिपादित करते है कि मीणा समुदाय के लोगों की उत्पत्ति विष्णु के मत्स्य अवतार से हुई है। मीन भगवान के पहले मंदिर की स्थापना मलारना चौड़, सवाई माधोपुर में होती है। उस के बाद मीणा समाज में मंदिर निर्माण की एक होड़ ही चालू हो जाती है। मीणा समाज के कुछ पैसे धारी और वर्चस्व धारी लोग चंदा इकठ्ठा करके मंदिरों का निर्माण करवाना शुरू करते है, मत्स्य चालीसा का निर्माण करते है, मीन भगवान की मूर्ति का निर्माण करते है। 2008 में गुर्जर आंदोलन के दौरान जब गुर्जर समुदाय के लोग देव नारायण महाराज का नारा देते है तो मीणा समाज के लोग भी उसकी प्रतिक्रिया में मीन भगवान का नारा देते है। 2009-13 के बीच मीन भगवान के मंदिरों की बाढ़ आ जाती है, सैकड़ों मंदिर लोगों द्वारा बनवाये जाने लगते है। राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक पोस्टरों पर “जय मीनेष” लिखा जाने लगता है… हर वर्ष मीनेष जयंती का शुभारंभ होता है…! . मित्रों स्पष्ट है कि कुछ लोगों ने इसी तरह काल्पनिक भगवानों (मीनेष, राम, शिव, कृष्ण, विष्णु, ब्रह्मा) का निर्माण किया है..! कार्ल मार्क्स ने कहा है कि धर्म एक अफीम है, उसी प्रकार ये ईश्वर भी एक जहर है। मेरा यह मानना है कि धर्म, ईश्वर, जन्नत, स्वर्ग, नरक, अल्लाह जैसे शब्दों की उत्पत्ति केवल इंसान के शोषण के लिए की गयी है और यह एक वास्तविकता है, इसे आप मानो या ना मानो यह आप पर निर्भर करता है। वस्तुतः मीणा समाज के सभी गाँवों में पुराने लोक देवताओ की धूनी या मंदिर मिलेंगे लेकिन एक भी पुराना मत्स्य मंदिर नहीं…! ना ही हमारे दादा-दादी को उनके माँ बाप ने मीनेष भगवान की कोई कहानी सुनाई थी और ना ही हमारे माँ बाप को हमारे दादा-दादी ने सुनाई थी…! लेकिन कुछ मानसिक गुलाम भविष्य में अपने पुत्रों और पुत्रियों को मीनेष भगवान से रूबरू करवाएंगे और वो ही विचारधारा धीरे धीरे आगे बढ़ेगी तो व्यापक रूप लेगी। इसलिए यह विचारधारा नासूर बनें उससे पहले इस मीनेष भगवान की काल्पनिक कहानी को खत्म कर दो…! इन मंदिरों में से इस मीन भगवान की मूर्ति को उखाड़ फेंको और इन मंदिरों की जगह अस्पताल, गर्ल्स हॉस्टल, स्कूल, आदि का निर्माण करवाओ। वैसे भी आदिवासी समुदाय के लोग प्रकृति पूजा (टोटेम) में विश्वास करते है ना की व्यक्ति पूजा में..! कुछ लोग कहते है कि जय मीन के उदघोष से पूरा समाज एक जूट होता है, अरे आप आदिवासी हो जय जोहार भी बोलोगे तो एक जुट ही रहोगे..! अपने समाज के ऐतिहासिक लोगों (जयपाल सिंह मुंडा, बिरसा मुंडा, कैप्टन छुट्टन लाल, गोविन्द गिरी- मानगढ़ धाम आदि) के इतिहास से पीढ़ी को रूबरू करवाओ..! . यदि आप सभी और अधिक धर्म और ईश्वर की उत्पत्ति के बारें में जानना चाहते है तो आप मेरी किताब ” #आवाज़_ए_मूलनिवासी ” पढ़ सकते है