सदस्य:डॉ ० इन्दु शेखर उपाध्याय/प्रयोगपृष्ठ

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                                                प्रमुख दर्षनीय स्थल :- जयपुर  

1. हवा महल :- यह जयपुर का प्रतीक चिन्ह है। इसका निर्माण 1799 ई0 में महाराजा प्रताप सिंह ने राजघराने की महिलाओं के लिए करवाया था। इस पाँच मंजिला महल में 952 खिड़कियाँ हैं। जिसके आगे जालीदार झरोखे हैं। इन झरोंखों से महिलाएं आराम से बाहर के नजारे को देख सकती हैं। यहाँ की विशिष्टता है कि गर्मी के दिनों में भी यहाँ ठण्डी एवं शीतल हवाएं मिला करती हैं।

2. जन्तर-मन्तर (वेधषाला) :- बेजान ईट-पत्थर से बनी एक अद्भुत वेधशाला जो कि ज्योतिष यन्त्रालय या जन्तर-मन्तर नाम से जानी जाती है। इसका निर्माण 18वीं शताब्दी के प्रारम्भ में सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा प्रिपोलिया के प्रांगण में करवाया गया था। गारे-चूने के मेल से बनी यह वेधशाला आज भी अपनी सजीवता के बनाये हुए है, और अपने निर्माता द्वारा निर्मित दिल्ली, मथुरा, बनारस, उज्जैन व जयपुर की वेधशालाओं में सबसे बड़ी है। पत्थरों के इन यन्त्रों का सम्पूर्ण विश्व में कोई तुलना नहीं है। दर्शक इसमें बड़ी-बड़ी तश्तरियों, प्यालों, विशल घड़ी जैसी आकृतियों तथा संगमरमर की संकरी सीढ़ियों को देखकर अवाक रह जाते हैं। यह विज्ञान का उत्कृष्ठ प्रमाण तो है ही साथ ही स्थापत्य कला का एक अनुपम उदाहरण है। इसमें अनेक पाषाण यन्त्र हैं, जिनमें प्रमुख- सम्राट यन्त्र, जयप्रकाश यन्त्र व रामयन्त्र हैं। इस यन्त्रों के समूह में हम 1. धूप घड़ी, 2. ध्रुवनाल अर्थात उत्तरी ध्रुव संकेतक, 3. नारी वलय, 4.क्रान्ति वृत्त, 5 उन्नतांश, 6. दिश, 7. दक्षिणेदक भित्ति, 8, सम्राट, 9. व 10. षष्टांश, 11. राशिनारी वलय- राशि चक्र, 12. अन्नतांश, 13. जय प्रकाश, 14. वक्र, 15. कपाली, 16. राम, 17. दिगंश, 18. क्रांति वृत्त।

3. सिटी पैलेस :- पुराने शहर के मध्य निर्मित यह विशाल महल मुख्य शहर की चहरदीवारी के अन्दर बसे भाग के सातवें हिस्से के बराबर अकेले है। यहाँ केवल आज की भूतपूर्व राजघराने के परिवार के लोग रहते हैं। इसके मध्य में निर्मित सात मंजिला चन्द्र महल से शहर का सुन्दर स्पष्ट नजारा दिखाई पड़ता है, ऐसा लोगों से जानकारी मिली। संयोग से जब हम लोग गये थे उस समय पर्यटकों के लिए उसे बन्द कर दिया गया था।

4. केन्द्रीय संग्रहालय :- यह राम निवास बाग के बीचो-बीच स्थित है। इस शानदार इमारत की नींव ब्रिटेन के राजकुमार अल्बर्ट के हाथों रखी गयी है। जिससे इसको अल्बर्ट हाल का नाम दिया गया है। यहाँ पुरातत्व महत्व की व हस्तकला के सुन्दर नमूनों का बड़ा संग्रह है।

5. चिड़ियाघर :- संग्रहालय के ठीक बगल सड़क की दूसरी पट्टी पर एक अजगर, मगरमच्छ, शेर, चीता, बन्दर, हिरन आदि का चिड़ियाघर भी है।

6. सिटी पैलेस संग्रहालय :- इस संग्रहालय में पूर्व राजघरानों के साजो-सामान रखे गये हैं। जैसे अस्त्र-शस्त्र, पालकियाँ, बग्घी व हौदे आदि से उनके जीवन शैली की झलक मिलती है।

7. राज मन्दिर :- यद्यपि यह एक आलीशान छवि गृह ही है, लेकिन यह अपनी बनावट साज-सज्जा और आकर्षण के कारण एशिया महाद्वीप में अपना स्थान रखता है। हम लोगों ने इसमें ‘विवाह’ छायाचित्र देखा था।

8. जल महल :- मानसिंह झील के मध्य निर्मित यह महल आकर्षण का केन्द्र है। इसके ऊपर कई नीम के वृक्ष उगे हुए हैं। यह महल पाँच मंजिला है। इसमें राजा लोग शिकार खेलते थे। इस समय झील में पानी नहीं था, और महल के चारों तरफ चहरदीवारी का निर्माण हो रहा था।

9. कनक वृन्दावन :- जल महल के पास बने इस मन्दिर के प्रांगण में फूलों के सुन्दर बगीचे लगाये गये हैं, जिसमें प्रवेश-शुल्क लगता है। हम लोगों ने शुल्क से बचने के लिए उस ठीक बगल के मन्दिर में दर्शन हेतु गये वहीं से पूरा बाग स्पष्ट दिखाई दे रहा था। मन्दिर की साफ-सफाई तथा शान्ति विवेचनातीत है।

10. लक्ष्मी नारायण मन्दिर :- मोती डंगरी के पहाड़ी के बगल यह मन्दिर सफेद संगमरमर से निर्मित है। मन्दिर के शीर्ष पर तीनों धर्मों के प्रतीक बने हैं।


11. पिंक पर्ल होटल एवं फन सिटी :- पर्यटकों के बीच खास लोकप्रिय शहर जयपुर दुनियाभर के पर्यटकों को सालभर आकर्षित करता रहता है। पिंक सिटी के नाम से प्रसिद्ध इस शहर के किले और ऐतिहासिक इमारतें तो उन्हें आकर्षित करती ही हैं आस-पास का क्षेत्र भी खूबसूरत है। जयपुर-अजमेर हाइवे पर जयपुर से लगभग 15 किमी0 की दूरी पर स्थित चार सितारा सुविधाओं वाले इस होटल एण्ड फन सिटी में ठहरने के लिए उत्तम व्यवस्था है। पीने के लिए बार और काफी शाप हैं और डांस करने के लिए डिस्कोथेक भी है और तरह-तरह के खेल खेलने की सुविधाएं हैं। तमाम कमरे खूबसूरत और एअरकन्डीशन, चाहे दीवारों के रंग हों या बेड और कमरों के डेकोरेशन इन्हें देखकर रिलेक्स महसूस करते हैं।

12. आमेर का किला :- यह जयपुर से 11 किमी0 दूर है। यह कच्छवाहा राजपूतों की भूतपूर्व राजधानी थी। इस क्षेत्र को उन्होने मीणा जनजाति के लोगों से जीता था। इसका उल्लेख किले के अन्दर बने सूर्य मन्दिर के स्तम्भों पर मिलता है। यह एक पहाड़ी पर स्थित है। अपने आप में उच्च कोटि का नमूना माना जाता है। इसके भीतर बने विभिन्न महल अपने कला कृतियों के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। यहाँ शीश महल विश्व का सबसे सुन्दर शीशे का महल माना है। अनेक फिल्मों की सूटिंग यहाँ हुई है और होती भी रहती है। गर्मियों की शाम में इस तलहटी में झील के बगल सूर्य मन्दिर पर प्रकाश किरणों का नजारा अनोखा होता है। इस किले का निर्माण लाल पत्थर से किया गया है। इसके गलियारे सफेद संगमरमर से बने हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी आमेर के किले की सुन्दरता राजा महाराजाओं ने निखारा है। आज भी इसमें निरन्तर कार्य होता रहता है। इसका दीवान-ए-आम एक बहुत बड़ा हाल है जो तीन ओर से खुला है तथा सुन्दर स्तम्भों की दो पंक्तियों पर आधारित है। सामने बहुत बड़ा खुला मैदान है जो चारों तरफ ऊँचे दीवालों से घिरा है। इसी हाल में राजा सेनाओं की बैठक करते थे। दीवान-ए-खास की भीतरी सजावट अत्यन्त सुन्दर है। इसमें कांच की उत्तर पच्चीकारी की गयी है। इसमें स्थित सुख मन्दिर के मुख्य द्वार पर चन्दन का फाटक लगा है, उस पर हाथी दाँत का कार्य किया गया है। यहाँ पहाड़ी के नीचे से हाथी के माध्यम से ही यातायात एवं परिवहन कार्य होता था। अब तो बगल से पहाड़ी पर सड़क का निर्माण हो गया है, जिससे चार पहिया वाहन भी ऊपर तक जाते हैं। इसमें एक संग्रहालय है, तथा पुराना तोप कारखाना भी है। मनोरंजन के लिए कटपुतली नृत्य होती रहती है। किले का जल बहुत मीठा एवं स्वादिष्ट था।